How is the food Sacred ?
भोजन पवित्र कैसे हो?
First, puriflying himself, The BRAHMIN comes & Sits in his Pure filed enclosure.
The Pure foods which no one else has Touched; are placed before him.
Being Purifiled he takes his food & Beings to read his Sacred Verses.
But is then thrown into a filthy place- Whose Fault is this?
The Corn, Sacred.The Water is Sacred;
The Fire & Salt are Sacred as well;
Then The Filth thing, The Ghee is added.
Then The Found becomes Pure & Sanctified.
Coming into contect with The Sinful Human body,
The Found becomes so impure that is is spat upon.
That Mouth which doesn't Chant The NAAM, & Without The Name eats tasty Food.
Oh Nanak, know this;
Such a Mouth is to be Spat upon
सबसे पहले पुजारी (ब्राह्मण )अपनी पूजा विधि की मान्यता अनुसार नहा-धो कर केअपनी गाय के गोबर से लेप की हुई पवित्र अवस्था से बनी रसोई (चौका) में बैठता है। उसके आगे यजमान (मेज़बान) भोजन लाकर रखता है, इस शर्त पर कि मुझसे पहले इस रसोई के भोजन को चख कर किसी यजमान ने अपवित्र न किया हो। वह इस भोजन को तभी खाता है। और विधि अनुसार कुछ श्लोक पढ़ता है।
चलो, मान लेते हैं कि पवित्र ब्राह्मण ने पवित्र यजमान की पवित्र रसोई से पवित्र भोजन भर-पेट खा लिया।
पर जब भोजन पेट में गया, तो उस गंदे पेट में रह कर भोजन पवित्र कैसे रह गया, तो इस अपवित्र भोजन का जो दोष है, वो किस पर आया।
उस पंडित के विश्वाश से पांच अन्न देवता,जल देवता अग्नि देवता, व लूण (नमक) देवता, पवित्र पदार्थ हैं, पांचवा घी भी पवित्र है, जोकि चारों को मिलाकर भोजन बनाने में डाला जाता है, तो ही जो भोजन बना है, उसे पवित्र माना गया है।
पर इन पांचों देवताओं को इस शरीर की भूख के लिए इस्तेमाल करने से जो मनुष्य की थूक की संगत पड़ती है, जो क़ि माना जाता है कि पाचन किर्या में सहायक है। उसका क्या?
गुरु नानक जी आसा राग की उन्नीसवीं पोहड़ी में समझाते है कि इस भोजन को पवित्र मानने से अच्छा है कि इस भोजन को खाते हुए मुहं से प्रभु का नाम का ही जाप करलें तो भोजन पवित्र ही क्या स्वादिष्ट भी निकलेगा ।
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