#Karma-khand" (Work/Task-Section) In this stage the devotees, who are always happy,
करम खंड की बाणी जोरू ।।
तिथै, होरु न कोई होरु ।।
तिथै, जोध महाबल सूर ।।
तिन महि रामु रहिआ भरपूर ।।
परमात्मा की कृपा वाली उस अवस्था की बनावट 'बल' है, भाव, जब मनुष्य पर परमात्मा की कृपा-दृष्टि होती है तथा उसके अंदर ऐसा बल पैदा होता है कि विष्य-विकार उसे प्रबावित नहीं कर सकते क्योंकि उस अवस्था में मनुष्य के अंदर परमात्मा के बिना कोई दूसरा बिल्कुल ही नहीं रहता ।
उस अवस्था में जो मनुष्य हैं वे योद्धा, महाबली तथा शूरवीर हैं, उनके रोम-रोम में परमात्मा बस रहा है ।
तिथै, सीतो सीता, महिमा माहि ।।
ता के रूप, न कथने जाहि ।।
ना ओहि मरहि न ठागे जाहि ।।
जिन कै, रामु वसै, मन माहि ।।
परमात्मा की कृपा कि उस अवस्था में पहुंचे हुये मनुष्यों की प्रशंसा (गुण-कीर्तन ) में लगा रहता है ।
उनकी काया ऐसी कंचन जैसी हो जाती है कि उनके सुंदर रूप का वर्णन नहीं किया जा सकता ।
उनके मुख पर नूर ही नूर चमकता है ।
इस अवस्था में जिन के मन में परमात्मा बसता है, वे आत्मिक मौत नहीं मरते तथा माया उनको ठग नहीं सकती ।
तिथै भगत वसहि, के लोअ ।।
करहि अनंदु, सचा मनि सोइ ।।
इस अवस्था में कई भवनों के भक्त जन बस्ते हैं. जो सदा प्रफुल्लत रहते हैं, क्योंकि वह सच्चा परमात्मा उनके मन में मौजूद है ।
सचि खंडि वसै निरंकारु ।।
करि करि वेखै, नदरि निहाल ।।
सच्च खंड में भाव, परमात्मा के साथ एक रूप होने वाली अवस्था में मनुष्य के अंदर वह परमात्मा आप ही बसता है, जो सृष्टि को रचकर कर्पा कि दृष्टि से उसकी संभाल करता है ।
तिथै, खंड मंडल वरभंड ।।
जे को कथै, त अंत न अंत ।।
तिथै लोअ लोअ आकार ।।
जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार ।।
वेखै विगसै, करि वीचारु ।।
नानक, कथना करड़ा सारु ।।३७।।
इस अवस्था में, भाव, परमात्मा के साथ एक रूप हो जाने वाली अवस्था में मनुष्य को अनन्त खण्ड, अनन्त मंडल तथा असीम ब्रहमंड दीखते हैं ।
इतने अनन्त कि यदि कोई मनुष्य उनका कथन करने लगे तो उनका अन्त नहीं होता ।
उस अवस्था में अनन्त भवन तथा आकार दीखते हैं, जिन सब में उसी तरह व्यवहार चल रहा है जैसे परमात्मा का हुक्म होता है ।
भाव, इस अवस्था में पहुँच कर मनुष्य को प्रत्येक स्थान पर परमात्मा कि रज़ा काम कर रही दिखाई देती है ।
उसको प्रत्यक्ष दिखाई देता है कि परमात्मा विचार करके सब जीवों की संभाल करता है तथा खुश होता है ।
हे नानक ! इस अवस्था का वर्णन करना बहुत कठिन है | भाव, यह अवस्था ब्यान नहीं हो सकती , अनुभव ही की जा सकती है ।।३७।।
भाव:- परमात्मा के साथ एक रूप हो चुकी आत्मिक अवस्था में पहुंचे हुये जीव पर परमात्मा कि कर्पा का दरवाज़ा खुलता है, उसको सब अपने ही अपने दिखाई पड़ते हैं , हर तरफ प्रभु ही दिखाई देता है ।
ऐसे मनुष्य का ध्यान सदा प्रभु कि सिफत-सालाह (गुण-कीर्तन) में जुड़ा रहता है । अब माया उसे ठग नहीं सकती, आत्मा बलवान हो जाती है, प्रभु से दूरी नहीं हो सकती ।
अब उसको प्रत्यक्ष प्रतीत होता है कि अनन्त कुदरत की रचना कर के प्रभु सबको अपनी रज़ा में चला रहा है तथा सब पर कृपा-दृष्टि कर रहा है ।
#जपूजिसहिब, #गुरुनानक Cont..
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