Saturday, 19 August 2017

Intent To / Intented to इरादा है, इरादा था

How To use of Intent To in english grammar

I.d. :- इरादा है, इरादा था
मेरा बाईक चलाने का इरादा है|
I intent to drive the bike.
I do not intent to drive the bike.
Do I intent to drive the bike?
Why do I intent to drive the bike?

Intented to (इरादा था)

मेरा बाईक चलाने का इरादा था!
I intented to drive the bike.
I did not intent to drive the bike.
Did I intent to drive the bike?
Why did I intent to drive the bike?
मेरा इंगलिश सीखने का इरादा है|
I INTENT TO LEARN ENGLISH
मेरा शिमला जाने का इरादा है|
I INTENT TO GO TO THE SHIMLA
क्या तुम्हारा किताब खरीदने का इरादा है?
DO YOU INTENT TO BUY THE BOOK 
मेरा लड़ने का इरादा नही है|
I DO NOT INTENT TO FIGHT
मेरा विदेश जाने का इरादा था?
DID I INTENT TO  GO TO  ABROAD

Thursday, 17 August 2017

Will have...

Will have...  ऐसा कोई काम जो मज़बूरी वश करना पड़ेगा।
पड़े-गा
पड़े-गी

Would like to

Would like to......
चाहूंगा
चाहूंगी
चाहेगे

Saturday, 12 August 2017

QUESTION MARK

शिक्षाप्रद

#शिक्षाप्रद
गुरु ग्रन्थ साहिब जी की शिक्षा है कि हर एक मनुष्य के जीवन में न तो सदैव सुख है और न ही सदैव दुःख । सुख और दुःख एक दूसरे के पूरक हैं ।
             खुशियों के बाद उदासी तथा उदासी के तुरन्त बाद खुशियाँ आना निश्चित है । इसीलिए दोनों ही समय सामान्य भाव बनाए रखना ही से वास्तविक सुख है,शांति और आनंद की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है ।
                   #ਸਿਖਿਆ
             ਗੁਰੂ ਗਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਸੀ ਸਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਹਰ ਇਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅੰਦਰ ਨ ਤਾਂ ਸਦਾ ਸੁੱਖ ਹੀ ਸੁੱਖ ਹੈ ਅਤੇ ਨ ਹੀ ਦੁੱਖ ਹੀ ਦੁੱਖ ।
 
            ਸੁੱਖ ਅਤੇ ਦੁੱਖ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਪੂਰਕ ਹਨ ।ਸੁੱਖ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੁੱਖ ਅਤੇ ਦੁੱਖ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸੁੱਖ ਆਓਣਾ ਨਿਸਚਿਤ ਹੈ । ਸੋ ਦੋਨਾਂ ਹੀ ਸਮੇਂ ਸਮਤਾ ਭਾਵ ਧਾਰਨ ਕਰਨਾ ਹੀ ਵਾਸਤਵਿਕ ਸੁੱਖ, ਸ਼ਾੰਤੀ ਤੇ ਆੰਨਦ ਦੀ ਅਨੁਭੂਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

दस्वन्ध        बरकत

एक ग्राहक एक फ्रूट की शॉप पर गया। शॉपकीपर सिख था। उसने सेब व केले का रेट पूछा। शॉपकीपर ने बताया कि सेब 80 ₹ केजी और केले 30 ₹ दर्जन।
इससे पहले कि ग्राहक भावतौल करता, एक औरत दुकान पर आई। उसने सेब और केले का भाव पुछा।
सरदार जी ने कहा कि केले पांच रुपए दर्जन और सेब बीस रुपए किलो।
जो ग्राहक पहले से खड़ा था और उसने पहला रेट सुना था,दूसरा रेट सुन हक्का बक्का रह गया कि दोनों कीमतों में इतना फर्क! उसने सरदार जी को प्रशात्मक आश्चर्यजनक निगाहों से देखा। सरदार जी मंद मंद मुस्कराए ओर उस बूढ़ी औरत को फ्रूट पैक कर पैसे ले लिए।
इस से पहले ग्राहक सरदार जी से कुछ कहते उन्होंने अपनी सफाई देनी शुरू कर दी कि यह बूढ़ी औरत विधवा है, इसके चार बच्चे हैं। मैंने बहुत मदद करने कोशिश की, पर नाकामयाब रहा, यह खुद्दार औरत किसी से मदद नहीं लेती।
फिर मेरे गुरु जी की कृपा से यह तरकीब सूझी।
अब यह औरत जब भी बच्चों के लिए फ्रूट खरीदने आती है। मेरे से जितना बन पड़ता है, रिआयत कर कम रेट पर फ्रूट बेच देता हूँ। इसी बहाने मेरा दस्वध निकल जाता है।
ਹੁਣ ਜਦੋਂ ਵੀ ਇਹ ਔਰਤ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆ ਲਈ ਫਰੂਟ ਲੈਣ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਮੈ ਇਸ ਨੂੰ  ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਰੇਟ ਤੇ ਫਰੂਟ ਦੇ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ। ੲਿਹ ਵੀ ਮੇਰੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਸਵੰਧ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਹੈ।
ਹਫਤੇ ਚ ਇਕ ਵਾਰੀ ਜਰੂਰ ਆਉਂਦੀ ਹੈ,, ਵਾਹਿਗੁਰੂ  ਗਵਾਹ ਹੈ ਜਿਸ ਦਿਨ ੲਿਹ ਅਾਂੳੁਂਦੀ ਹੈ ਉਸ ਦਿਨ ਬਹੁਤ ਗ੍ਰਾਹਕ ਆਉਂਦੇ ਨੇ ਉਸ ਦਿਨ ਰੱਬ ਦੀ ਬਹੁਤ ਕਿਰਪਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।

ਦੁਕਾਨ ਤੇ ਅਾੲੇ ਗ੍ਰਾਹਕ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਦੇ ਪਰੳੁਪਕਾਰ ਤੋਂ ਖੁਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਸਰਦਾਰ ਨੂੰ ਘੁੱਟ ਕੇ ਜੱਫੀ ਪਾ ਲਈ ਅਤੇ ਦੋ ਤਿੰਨ ਕਿਲੋ ਫਰੂਟ ਲੈ ਕੇ ਤੁਰਨ ਲੱਗਾ
"ਵਾਹ ਸਰਦਾਰ ਤੇ ਵਾਹ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦਾ ਗੁਰੂ"
ਕਹਿ ਕੇ ਖੁਸੀ ਖੁਸ਼ੀ ਚਲਾ ਗਿਆ।

ਜੇਕਰ ਦਿੱਲੋਂ ਖੁਸੀਆ ਵੰਡਣਾ  ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ ਤਾਂ ਦਸਵੰਧ ਦੇ ਕੲੀ ਤਰੀਕੇ ਮਿਲ ਜਾਣਗੇ,  ਜੱਗ ਤੇ ਖੁਸ਼ੀਅਾਂ ਵੰਡੋ ਜੀ।

ਕੲੀ ਛੋਦੇ ਬੰਦੇ ਕਿਸੇ ਦੀ ਦੁੱਕੀ ਦੀ ਮਦਦ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਪਰ ਪਰੳੁਪਕਾਰੀਅਾਂ ਦੀ ਨਿੰਦਿਅਾ ਜ਼ਰੂਰ ਕਰਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ੲਿਹੋ ਜਿਹੇ ਅਲੋਚਕਾਂ ਤੋਂ ਬਚ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਬਚੋ ਜੀ।
(ਨੋਟ: ਚੰਗਾ ਸੁਨੇਹਾ share ਜ਼ਰੂਰ ਕਰਿਅਾ ਕਰੋ ਜੀ। ਕੂੜਾ ਕਰਕਟ share ਕਰਨ ਤੋਂ ਪ੍ਰਹੇਜ਼ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ)

Thursday, 10 August 2017

888

chd
8000
1000
grri
500

daya
2500
1500

shunti
7500   1.8
4000   88

5000

raju
500

chintu
1500

boby
500
400




Jagmohan
1500
1000

Proposition

At ->परBy ->द्वारा
To ->कोInto ->के बीच में
During ->के दोरानThroughout ->से गुजरकर
Till ->तकUntil ->जब तक
Above ->के ऊपरAcross ->के पार
Over ->के ऊपरUnder ->के नीचे
Towards ->की तरहWithout ->बगैर (बिना)
Inspite of ->के बावजूदYet / Still ->अभी तक

Monday, 7 August 2017

एक घड़ी के कारण कलंक

कहते  हैं  कि  एक घडी की  सावधानी हमें विजय  दिला  सकती है 
एक घडी की असावधानी हमारी  पराजय  निश्चित कर सकती है 
एक घडी की  सावधानी  हमें  जीवन  प्रदान  कर सकती है 
एक घड़ी की असावधानी  हमें  मृत्यु की  गोद में  सुला सकती है ।
साधको  !   जब भी  आप  अपनी  मंजिल  की  ओर बढ़ें तो हमेशा  सावधानी बरतें । क्योंकि हमारे  जीवन  में  एक क्षण की  असावधानी हमारा बहुत बड़ा  अहित  कर सकती है ।    इस  सम्बन्ध में  एक   उदाहरण  प्रस्तुत है ----------         एक  राज बड़ा  धार्मिक था । सरस्वती पूजा  के  अवसर पर  उसने  प्रजा  के  मनोरंजन के  हेतु  किसी नट को  अपनी  कला  प्रदर्शन के लिए  आमंत्रित  किया । निर्णायक  के  तौर पर  राज ने  एक महात्मा  को   भी  आमंत्रित  किया ।  राजा  स्वयं ऊँचे सिंहासन पर बैठ गया ।  साथ  वाले  आसन  पर  उसका  पुत्र बैठा  था ।  जब  महात्मा जी  आये  तो  उनको  भी  उचित आसन  दिया गया । राजा ने  मंत्री को  मुहरों  की  तीन   पोटली  बनाने को कहा ,
एक  पोटली राजा ने  स्वयं रखी   दूसरी  अपने  बेटे को  तथा  तीसरी  पोटली  महात्माजी को दी । और  कहा की  नट के   उत्तम  प्रदर्शन पर पहले  राजा  थैली  भेंट करेगा  तत्पश्चात  महात्मा  और  उसका पुत्र देगा ।  
        खेल  आरम्भ  हुआ रात्त  तक  चला  । नट ने  बहुत  ही  अच्छा  प्रदर्शन किया  परन्तु  राजा  ने  कोई  इनाम नहीं  दिया ।  रात्रि  के  तीसरे  पहर  में  नट ने  कठिन  से  कठिन  करतब  दिखाए  ।  वह  पसीने से  लथपथ  हो गया  ।  फिर भी  राजा ने कोई  इनाम  नहीं  दिया ।  अब  नटनी से  रहा नहीं गया   उसने  नट से  खेल बन्द करने  को  कहा ।  नट ने  अपनी पत्नी को  कुछ  ऐसे  शब्दों में
समझाया ----------------  बहुत  गई  थोड़ी रही ,पल पल गई बिहाय
                                   एक घडी के  कारणे ,ना  कलंक लग जाय  ।
बस थोड़े से धैर्य की  जरुरत है । क्या  पता इस बाकी बची  घडी में  राजा हमें  इनाम  देदे । 
जैसे ही नट का यह  वाक्य  पूरा हुआ  राजा  सचेत हो गया । उसने तुरन्त  मोहरों की थैली  नट की ओर उछाल दी ।  भला  इन  पंक्तियों में  राजा  को  क्या शिक्षा मिली  ?   असल में  आज  राजा  का मन नट नटनी के साथ  आई  जवान बेटी
पर  मुग्ध होगया था । वह  इंतजार कर रहा था कि कब यह  नट गिरकर मरे और  मैं इसकी बेटी को  हथिया  लूँ  । पर  उन  शब्दों  ने ऐसी  चोट  मारी कि उसकी  अंतरात्मा  जग  गई  की चरित्रवान होकर पाप न कर ।इस प्रकार राजा ने  अपने को  कलंक से बचा लिया । 
उन शब्दों  का  राजा के बेटे  पर भी  असर  डाला वह भी  सोच  रहा था  कि राजा  अब  बूढ़ा हो गया है  क्यों न इसकी  ह्त्या करके  राज  गद्दी  ले लूँ  । पर  उन  शब्दों  ने  उसे  विवेक  बुद्धि दी  कि पिताजी के  जीवन के  चन्द दिन  बचे हैंक्यों पितृ ह्त्या करके  अपने  सर पर  कलंक  लगाऊँ  ।  
     अब  सन्यासी जी का हाल सुनो   । सन्यासी  जी  सोच रहे थे  कि भगवान्  ने  इतना  सुन्दर  जगत बनाया है  मैं भी  क्यों  न गृहस्थ  जीवन  बिताऊँ ।पत्नी  पुत्र धन  आदि  को  प्राप्त करूं  ।परन्तु नट के शब्दों को सुनकर  वे संभले । और कहा  अरे  मैं यह क्या  करने  जारहा  हूँ   सारा जीवन  मैंने  त्याग तपस्या में  बिताया है   और अब भगवान् के पास  जाने  का  समय  आगया है  ।  मैं  विषय विकारों  में  फँसकर  अपने  जीवन को  क्यों बत्बाद करूं ।हे  !भगवान्  आपका  लाख  लाख  धन्यवाद  आपने  मुझे  गिरने  से  बचा लिया ।और  स्वामी  जी  ने  भी  अपनी मुहरों  की  थैली  नट  की  ओर  उछाल  दी  ।  
  इस प्रकार  राजा के  बेटे  ने  और  संन्यासी  ने  अपना  अपना  पुरस्कार  नट को  दे दिया । 
   पाठको  समझ  गए  होगे कि  कैसे  सावधानी  हटते ही  दुर्घटना  हो  सकती  है ।

बुढ़ापा

दुख होता है जब बुढ़ापे को ठसक लगती है।

उसे सबकी चिंता है, उसकी किसी को नहीं। वह आज भी अपनों के मोह में जकड़ा है। अपने उससे कब की दूरी बना चुके। मोह का खेल पुराना है। बच्चों को खुश देखकर वृद्ध खुश हैं। अपनों की खुशी ऐसी ही होती है ।
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कौन कहता है बूढ़े कमजोर हैं?

नहीं है ऐसा, बस हालातों ने न्हें ऐसा बनाया है। उनकी स्थिति कभी खराब न हो, यदि बुढ़ापा उन्हें न घेरे। हम जानते हैं कि उनमें अनुभव भरा है, उनमें सीखों का भंडार है और वे ही नई पीढ़ी का उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं। फिर क्यों हम उनसे किनारा करने की कोशिश करते हैं?

समस्या नौजवान पीढ़ी में है।

समस्या संस्कारों में है, तभी व्यवहार बदल रहे हैं। जनरेशन गैप एक बहाना भर है। मेरे नाना और दादा मेरे लिए मित्र की तरह हैं। जितने वृद्धों से मेरी मुलाकात होती है, वे मुझसे और मैं उनसे घुलमिल जाता हूं। होना भी यही चाहिए। बूढ़े हमसे अलग नहीं हैं। उनके साथ हमें उतनी ही खु्शी का अनुभव करना चाहिए जितना हम नौजवान आपस में करते हैं। फिर देखिये जीवन में आपको बदलाव के संकेत मिलते हैं कि नहीं।

बुजुर्गों से उनके जीवन के अनगिनत पहलुओं पर चर्चा बहुत कुछ सिखा सकती है। उन्होंने जीवन को काफी जी लिया। संसार छोड़ने से पहले हम उनके अनुभवों को जरुर जानें।

बुजुर्गों का हौंसला हमसे अधिक होता है। वे इतना सहते हैं, पर चुपचाप रहते हैं। यहीं आकर ज्ञान होता है कि बुढ़ापे को कितना सब्र है। बर्दाश्त करने की भी कोई हद होती है, लेकिन बुढ़ापा अंतिम समय तक बर्दाश्त ही तो करता है।

वृद्धों की आंखें सारा नजारा देखती हैं, बिना किसी से कुछ कहे। कहकर फायदा ही क्या? उधर नया खून कुलाचें मारता है। मालूम है कि बुढ़ापा राह देख रहा है, लेकिन खुली आंखें धुंधली नहीं और जानकर अनजान बन रही है जवानी।

दुख होता है जब बुढ़ापे को ठसक लगती है। उसे सबकी चिंता है, उसकी किसी को नहीं। वह आज भी अपनों के मोह में जकड़ा है। अपने उससे कब की दूरी बना चुके। मोह का खेल पुराना है। बच्चों को खुश देखकर वृद्ध खुश हैं। अपनों की खुशी ऐसी ही होती है।

प्रेम और इतना प्रेम छलकता है उनकी आंखों से। कुछ बूंदें इतराती-सी गिर पड़ती हैं आंचल में। प्रेम के मायने तब समझ आते हैं।

हर समय तैयार है बुढ़ापा अपनों के लिए। उन्हें मरते दम तक समृद्ध करने की कोशिश में, ताकि उन्हें दुख न हो। चाहें वह कितनी पीड़ा सह जाए।

जीवन कितना लंबा है, यह सोचने की जरुरत नहीं। जीवन में किया क्या जाए, महत्व यह रखता है। हमारे बड़े-बूढ़े थक कर भी हमारे साथ हैं, सिर्फ साथ नहीं हैं हम।