कहते हैं कि एक घडी की सावधानी हमें विजय दिला सकती है
एक घडी की असावधानी हमारी पराजय निश्चित कर सकती है
एक घडी की सावधानी हमें जीवन प्रदान कर सकती है
एक घड़ी की असावधानी हमें मृत्यु की गोद में सुला सकती है ।
साधको ! जब भी आप अपनी मंजिल की ओर बढ़ें तो हमेशा सावधानी बरतें । क्योंकि हमारे जीवन में एक क्षण की असावधानी हमारा बहुत बड़ा अहित कर सकती है । इस सम्बन्ध में एक उदाहरण प्रस्तुत है ---------- एक राज बड़ा धार्मिक था । सरस्वती पूजा के अवसर पर उसने प्रजा के मनोरंजन के हेतु किसी नट को अपनी कला प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया । निर्णायक के तौर पर राज ने एक महात्मा को भी आमंत्रित किया । राजा स्वयं ऊँचे सिंहासन पर बैठ गया । साथ वाले आसन पर उसका पुत्र बैठा था । जब महात्मा जी आये तो उनको भी उचित आसन दिया गया । राजा ने मंत्री को मुहरों की तीन पोटली बनाने को कहा ,
एक पोटली राजा ने स्वयं रखी दूसरी अपने बेटे को तथा तीसरी पोटली महात्माजी को दी । और कहा की नट के उत्तम प्रदर्शन पर पहले राजा थैली भेंट करेगा तत्पश्चात महात्मा और उसका पुत्र देगा ।
खेल आरम्भ हुआ रात्त तक चला । नट ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया परन्तु राजा ने कोई इनाम नहीं दिया । रात्रि के तीसरे पहर में नट ने कठिन से कठिन करतब दिखाए । वह पसीने से लथपथ हो गया । फिर भी राजा ने कोई इनाम नहीं दिया । अब नटनी से रहा नहीं गया उसने नट से खेल बन्द करने को कहा । नट ने अपनी पत्नी को कुछ ऐसे शब्दों में
समझाया ---------------- बहुत गई थोड़ी रही ,पल पल गई बिहाय
एक घडी के कारणे ,ना कलंक लग जाय ।
बस थोड़े से धैर्य की जरुरत है । क्या पता इस बाकी बची घडी में राजा हमें इनाम देदे ।
जैसे ही नट का यह वाक्य पूरा हुआ राजा सचेत हो गया । उसने तुरन्त मोहरों की थैली नट की ओर उछाल दी । भला इन पंक्तियों में राजा को क्या शिक्षा मिली ? असल में आज राजा का मन नट नटनी के साथ आई जवान बेटी
पर मुग्ध होगया था । वह इंतजार कर रहा था कि कब यह नट गिरकर मरे और मैं इसकी बेटी को हथिया लूँ । पर उन शब्दों ने ऐसी चोट मारी कि उसकी अंतरात्मा जग गई की चरित्रवान होकर पाप न कर ।इस प्रकार राजा ने अपने को कलंक से बचा लिया ।
उन शब्दों का राजा के बेटे पर भी असर डाला वह भी सोच रहा था कि राजा अब बूढ़ा हो गया है क्यों न इसकी ह्त्या करके राज गद्दी ले लूँ । पर उन शब्दों ने उसे विवेक बुद्धि दी कि पिताजी के जीवन के चन्द दिन बचे हैंक्यों पितृ ह्त्या करके अपने सर पर कलंक लगाऊँ ।
अब सन्यासी जी का हाल सुनो । सन्यासी जी सोच रहे थे कि भगवान् ने इतना सुन्दर जगत बनाया है मैं भी क्यों न गृहस्थ जीवन बिताऊँ ।पत्नी पुत्र धन आदि को प्राप्त करूं ।परन्तु नट के शब्दों को सुनकर वे संभले । और कहा अरे मैं यह क्या करने जारहा हूँ सारा जीवन मैंने त्याग तपस्या में बिताया है और अब भगवान् के पास जाने का समय आगया है । मैं विषय विकारों में फँसकर अपने जीवन को क्यों बत्बाद करूं ।हे !भगवान् आपका लाख लाख धन्यवाद आपने मुझे गिरने से बचा लिया ।और स्वामी जी ने भी अपनी मुहरों की थैली नट की ओर उछाल दी ।
इस प्रकार राजा के बेटे ने और संन्यासी ने अपना अपना पुरस्कार नट को दे दिया ।
पाठको समझ गए होगे कि कैसे सावधानी हटते ही दुर्घटना हो सकती है ।
Monday, 7 August 2017
एक घड़ी के कारण कलंक
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