Tuesday, 3 April 2012

ढूँढते रह जाओगे !

कल ही मैं Zee Punjabi चैनल पर 7:30 PM बजे कोई बोटनी संबंधित फूल, पत्ती, पेड़, पोधों का परोगराम देख रहा था. जिसमें एक विज्ञानिक डा. आर. के. कोहली ने बहुत-सी महत्वपूर्ण बातों का जिक्र किया. कुछ बातें जो मुझे जानकारी पूर्ण लगी जिनको में आपके स...मक्ष रख रहा हूँ :-

1) पोधों के नजदीक कहीं हल्का संगीत बज रहा हो तो उनकी गरोथ बड़ती है.

2) उनसे जितना अधिक फूल मांगोगे मतलब तोड़ोगे. वो और अधिक फूल तो जरुर देगा पर उसकी अपनी गरोथ कम रह जाएगी. यानि अपना आप (होंद) खो देगा.

3) हमारे अपने देश के पेड़ पोधों की नस्ल का मेजर पार्ट एक्सपोर्ट हो जाता है.

4) जोड़ें पोधों में किसी एक को काट दिया जाए या मर जाए दूसरा अपने आप मर जाता है.

5) एक शेर से उन्होंने अपनी बात समाप्त की, जो कुछ इस तरह है :-

" ढूँढते रह जाओगे, लापता हो जाउंगा मैं.
यहीँ कहीँ हूँ, ढूँढ लो, दुनिया की भीड़ में."

Sunday, 1 April 2012

मूर्ति पुजा और भगत धन्ना जी

सिक्ख धर्म की विचारधारा में स्पष्ट रूप में मूर्ति पुजा का खंडन किया गया है. तो सवाल उठता है कि भगत धन्ना जी के बारे में आम धारणा बनी हुई है कि 'इन्होंने पत्थर की पूजा से प्रमेश्वर को प्राप्त किया था' जब्कि गुरु ग...ोबिंद सिंह जी ने कहा है : 'किछ पाहन (पत्थर) मै परमेशर नाहीं |' ये कैसे हुआ ?
भगत धन्ना जी, जिनके कुल तीन शब्द क्षी गुरु गरंथ साहिब में दर्ज हैं. दो आसा तथा एक धनासरी राग में. यह तीनों शब्द गुरबाणी की विचारधारा से पूर्ण रूप से मिलते हैं. इनमें कहीं भी भगत जी ने यह नहीं कहा कि उन्होंने पत्थर या मूर्ति पूजा करके परमेश्वर की प्राप्ती की है. भगत जी तो स्पष्ट कहते हैं कि 'मैं (धंन्ने ने), प्रभू प्यारों की संगत से प्रभू के नाम-धन को प्राप्त किया है और उस प्रभू में लीन हो गया हूँ:
धंने धनु पाइआ धरणीधर, मिलि जन संत समानिआ ||४||१|| (४८७)

प्रेम नज़र.('ਪਰੇਮ ਨਜ਼ਰ)

ਥੋੜੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਜਿੰਦਗੀ, ਦੋੜਦਾ ਉਮਰ ਦਾ ਸਫ਼ਰ.
 ਕੁਝ ਆਭਾਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ, ਬੁੜਾਪੇ ਦੀ ਵੇਖੀ ਡਗਰ.
 ਮੌਤ ਦੀ ਘੜੀ ਕਰੀਬ, ਪਿੱਛੇ ਜੇ ਵੇਖਿਆ ਅਗਰ.
ਕੀਤਾ ਮਹਿਸੂਸ ਉਨ ਪਲਾਂ ਨੂੰ, ਵੇਖੀ ਜੋ 'ਪਰੇਮਨਜ਼ਰ'.


थोड़े समय की जिंदगी, दोड़ता उम्र का सफ़र.
कुछ आभास होने से पहले, बूढ़ापे की दिखी डगर.
मृत्यु की घड़ी करीब, पिछे जो देखा अगर.....
किया महसूस उन पलों में, देखी जो प्रेमनज़र.
गंभीर@ [31-Mar-2012]

'ਪਰੇਮ ਨਜ਼ਰ'

'ਪਰੇਮਨਜ਼ਰ'.

'सो किओ मंदा आखअै. जितु जंमहि राजान'

किसी भी आदर्श समाज की उत्पति मे स्त्री का योगदान सबसे अधिक है. चाहे वो माँ के रूप में अपने फ़रज की पूरती करनी हो या आदर्श बेटी,पत्नी, बहु और सासू के रूप में समाज की अगवाई देनी हो.
पुराने समय से धर्म और समाज के ठेकेदारों की ओर से स्त्री को पैरों की जूती समझ कर घर की चारदिवारी के अंदर बंद करके उस का अपमान किया जाता था. स्त्री को निन्दनीय योग्य, भगवान की मज़ेदार गल्ती कह कर पशुओं से भी बुरे स्थान समाज ने प्रदान किए हुए थे.
क्षी गुरु नानक देव जी ने 'सो किओ मंदा आखअै. जितु जंमहि राजान' || कह कर समाज में इज्जत बख्शी तथ मरदों के बराबर सत्कार स्त्री को दिया.
जहाँ गुरु सहिबान ने नये समाज की संरचना के लिए समाज सुधार को प्राथमिक्ता दी. वहीं इस्त्री को समाज के प्रति बनती उसकी जिम्मेदारी का अहसास करवाया.
गुरु साहिब ने कहा कि स्त्री केवल श्रंगार, या भोग का साधन नहीं बल्कि आदर्श समाज के विकास के लिए नींव का काम भी करती है. इस लिए गुरु वाली स्त्री को सहज़, संतोष तथा मीठा बोलना आदि जैसे गुण धारण करने की हिदायत दी है.
'जाए पुछह॒ सोहागणी, तुसी राहिआ किनी गुणी ||
सहजि संतोखि सीगारीआ, मीठा बोलणी ||