Sunday, 1 April 2012

'सो किओ मंदा आखअै. जितु जंमहि राजान'

किसी भी आदर्श समाज की उत्पति मे स्त्री का योगदान सबसे अधिक है. चाहे वो माँ के रूप में अपने फ़रज की पूरती करनी हो या आदर्श बेटी,पत्नी, बहु और सासू के रूप में समाज की अगवाई देनी हो.
पुराने समय से धर्म और समाज के ठेकेदारों की ओर से स्त्री को पैरों की जूती समझ कर घर की चारदिवारी के अंदर बंद करके उस का अपमान किया जाता था. स्त्री को निन्दनीय योग्य, भगवान की मज़ेदार गल्ती कह कर पशुओं से भी बुरे स्थान समाज ने प्रदान किए हुए थे.
क्षी गुरु नानक देव जी ने 'सो किओ मंदा आखअै. जितु जंमहि राजान' || कह कर समाज में इज्जत बख्शी तथ मरदों के बराबर सत्कार स्त्री को दिया.
जहाँ गुरु सहिबान ने नये समाज की संरचना के लिए समाज सुधार को प्राथमिक्ता दी. वहीं इस्त्री को समाज के प्रति बनती उसकी जिम्मेदारी का अहसास करवाया.
गुरु साहिब ने कहा कि स्त्री केवल श्रंगार, या भोग का साधन नहीं बल्कि आदर्श समाज के विकास के लिए नींव का काम भी करती है. इस लिए गुरु वाली स्त्री को सहज़, संतोष तथा मीठा बोलना आदि जैसे गुण धारण करने की हिदायत दी है.
'जाए पुछह॒ सोहागणी, तुसी राहिआ किनी गुणी ||
सहजि संतोखि सीगारीआ, मीठा बोलणी ||

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