Monday, 18 December 2017

गुरु

गुरु में एक विशेष गुण होता है, वो न कभी अपनी प्रशंसा करता है,और न ही चाहता है कि कोई उसकी प्रशंसा करे।

गुरु का उद्देश्य सदैव यही होता है, कि  शिक्षा ग्रहण करने वाला मनुष्य उसके दिखाए मार्ग अनुसार अपना जीवन व्यतीत करे, चाहे वो मार्ग सामाजिक जीवन का हो या अध्यात्मक जीवन।

गुरु के कहे अनुसार प्रशंसा,  गुणगान, शुक्रिया का पात्र केवल एक परमात्मा है, वो भी उसकी बनाई विशाल सृष्टि, सुंदरता, संतुलन, कृपा,और उसका अनुशासन के कारण, जो हम नहीं मानते।

यदि हम उसकी बनाई कुदरत के लाभ-हनि, सुन्दरता को असुन्दर, सुख के साथ मिले दुःख, सन्तुलन को प्रलह  से तुलना कर उस गुरु के कहना नहीं मानते, तो उसका कारण हम स्वंय हैं ।

जिन्होंने उस अनुशासन का पालन जाने-अनजाने नहीं किया है और हमारे वो कर्म हैं जो हम  जानते बूझते हुए लापरवाही दिखाते हैं।
जिसका कारण हमारे अंदर का अहंकार' है।

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