जैसे कि सबको पता है कि एक बच्चे को स्कूल की तरफ आकर्षण पैदा करने के लिए सर्वप्रथम उसे अपने घर जैसा माहौल जैसे खेल कूद, खिलौनों के साथ खेलना फिर एक अनुशासन के साथ एक क्यू में खड़ा होना, प्रार्थना, एक निश्चित स्थान पर अपने डेस्क की पहचान कर बैठना, अपने हाथों से टिफिन खोल कर खाना इत्यादि की ट्रेनिंग दी जाती है । इसी बीच उसके साथ रह रहे बच्चों से दोस्ती करवा रही उसकी टीचर की पूरी कोशिश होती है कि किसी भी तरह दो चार घन्टे उस बच्चे का मन इस प्ले स्कूल में लग जाए।
फिर साल दो साल बाद जब उस बच्चे का मन उस निर्धारित किये स्थान व करवाई जा रही किर्याओं में लग जाता है तो उसे उसकी उम्र मुताबिक खेल किर्याओं के अतिरिक्त एक कलरफुल पेन पैंसिल पकड़वा कर चित्र बनाने के साथ साथ उस भाषा के अक्षर की पहचान उन अक्षरों के नाम से मिलते जुलते जीव जंतु के चित्रों को सामने रख करवाई जाती है जिससे उस बच्चे को उस अक्षर की पहचान के साथ उसके नाम व कार्यों की जानकारी हो सके।
फिर होती है उन अक्षरों को आपस में जोड़ कर लिखने न समझने की कोशिश। बाद में उन शब्दों को वाक्यों में बदलना, उनका मतलब निकालने का अभ्यास निरन्तर वह निकलता है। साथ ही साथ और भी विषय जैसे गणित, कहानी, कल्चर की जानकारी भी जुड़ती चली गई।
धीरे धीरे उस बच्चे का मस्तिष्क ज्ञान की बढ़ती मेमोरी से विकसित होता चला जाता है । फिर जुड़ती हैं उसकी अपनी जिज्ञासाएं,। उससे उतपन्न होते हैं प्रश्न। जैसे जैसे उसे रूटीन में मिलते ज्ञान के साथ उसकी अपनी जिज्ञासाओं का हल मिलता चला गया । ज्यों ज्यों ही उसकी पढ़ाई ऊंचे स्तर पर पहुंचती गयी उसकी जिज्ञासा और बढ़ने लगी।
उस बच्चे की पढ़ते समय यदि अपने आप से उठे प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला तो उसका मस्तिस्क का विकास धीरे धीरे थमता चला गया। पर यदि जिस दिन उस बच्चे के पेरेंट्स व टीचर उसकी रुचि को समझ कर सहयोग करने लगे तो समझो उसी दिन से बेड़ा पार हो गया।
जो बच्चा पढ़ाई करते हुए उन अक्षरों से बने शब्द व वाक्यों की गहराई को स्वंय नापने लगता है वो नहीं चाहता कि कोई उस की पढ़ाई में किसी और काम की फरमाइश का विघ्न डाले जिसमे उसने बहुत से रहस्य खोजने हैं । फिर बेशक पेरेंट्स क्या स्कूल के ट्यूशन के टीचर भी सहयोग न करें।
धीरे धीरे बढ़ती उम्र की व्यवस्था को पार कर अपने मन पसंद विषय की ओर झुकता चला जाएगा। बशर्ते रास्ते में पढ़ाई छोड़ने, अथवा आर्थिक मदद न मिलने की मजबूरी न आई तो।
ऐसे बच्चे यदि समझ लो उसे इंग्लिश ग्रामर में दिलचस्पी है तो वो एक सेंटेंस जिसे हम चार शब्दों का समूह कह देते हैं। पर वो उस सेंटेंस के सब्जेक्ट भी नाउन, के इलावा प्रोनाउन, जेरुण्ड, इन्फिनिटीव के बनात हुआ वर्ब व उसके कितने प्रकार होते हैं इत्यादि की समीक्षा करने लग जाता है। जैसे ही उसको ग्रामर की गहराई का रहस्य आज ही जानना हो कि जेसे कल का दिन आएगा ही नहीं, किशोर अवस्था तक आते आते इतने उत्साहित होते देखे हैं बच्चे। कि कभी कभी हैरानगी होती है।
इसी विषय पर मैं जो बात जोड़ने जा रहा था कि जो लोग आध्यात्मिक विषय में रुचि लेने लगते हैं उन्हें भी इस बच्चे जैसी कोई सुध बुध नहीं रहती। जैसे उनके ज्ञान की पुस्तकें पढ़ते पढ़ते ज्ञान की कुंडी खुलती है वो पीछे आ खुशी मनाने को भूल अगले दरवाजे की कुंडी खोलने की जुगत में लग जाते है जैसे वो उतावले हों कि आज ही इस सृष्टि व इस सृष्टि के कर्ता को पा जाएंगे।
जो कोई अध्यन करते अधात्मक विषय की गांठें खोल भी चुके हो वो इस रहस्य का बयान नहीं करना चाहते । पर यह कतई नहीं हो सकता कि वो कुछ पाएं न हों पर उनकी व्याख्या करना न करने का जो भी कारण हो पर उम्मीद अवश्य हैं कि उनमें किसी प्रकार का कोई लालच घ्रणा नहीं होनी चाहिए।
#Seriously