Saturday, 30 May 2020

अनहद

सिमरन का अर्थ है स्मरण यानि याद करना,याद रखना । आप कहीं भी किसी भी समय, किसी भी के साथ प्रभु ओर उसकी रचनाओं को , उसके फायदों को , उसके गुणों को विषय बना अपने विचारों को आधार बना, आदान प्रदान करते हुए आभार प्रकट करते हुए  भी कर सकते हैं, न कोई भूखा रहने की जरूरत, न मौन रहने की , न तप की। 

रही बात जप की, उसका आधार नाम है। किसी भी उपनाम को जिसमें प्रभु के गुणों की खुशबू आए महसूस हो, स्पर्शता की झलक आए। मीठा लगे, धड़कन की लह से लह मिला ऐसे बोलो कि सभी इन्द्रियाँ  साज़ बन सुर से सुर मिलाएं जिनका कोई गणित नहीं हो । समय की सीमा न हो।

Monday, 25 May 2020

अपना अपना सुख

कुछ लोगों का क्या है, अकेला रहना पसंद करते हैं, कुछ किसी बंधन में खुश हैं। जरूरी नहीं कि यह उनकी आदतों का शूमार हैं कि जो अपने साथ ढल रहा है उसी को अपनी मजबूरी व उसकी मर्जी समझ अपना लिया। और अपनी उभरती हुई इच्छाओं का गला घोंट बैठे। या वो इच्छाएं पनप ही न पाईं।

जिसने जिंदगी भर अकेले रह आजादी देखी, उसे परिवार का सुख क्या होता है, पता नहीं होता है। जो सारी उम्र परिवार की जिम्मेवारियों में फंसे रहे, उसे अकेले रह जंगल पहाड़ों में घूमने का सुख क्या होता है, उसकी जानकारी नहीं। 

पर दोनों में से कोई पढ़ लिख कर अपने मिले ज्ञान से कल्पना में ही सही दूसरे के सुख का अंदाजा लगता है तो फिर ही उसके मन में उस को पाने या एक झलक भर की इच्छा जागृत होती है। यदि जिंदगी के समय रहते उन दोनों में से किसी एक को भी मौका मिला दूसरे के सुख पाने का तो वो या तो उतावला पन दिखलाता है या डर व घबराहट से जल्द बाजी नहीं दिखलाता। 

मैं फिलहाल इस विषय में उन व्यक्तियों की श्रमता जैसे आर्थिकता व समय की उपलब्धता को दूर रखता हूँ। वो व्यक्ति उन इच्छाओं को पाकर भी अधिक समय तक उस विपरीत जीवन को सुख से अपना नहीं पाएगा। 

रुक रुक कर बीच बीच में वो इस नए सुख को पुराने वाले सुख की कसौटी पर तौलने की कोशिश करेगा क्योंकि वो व्यक्ति अपने पुराने सुख में अपने अधिक दिन गुजार चुका होता है। जितना भी कह लो वो मजबूर अवश्य होगा पर अपनी असल आजादी वापिस उसी दिशा में दिखेगी जिसका वह अभ्यस्त है।

#Seriously

Wednesday, 20 May 2020

Target of education

जैसे कि सबको पता है कि एक बच्चे को स्कूल की तरफ आकर्षण पैदा करने के लिए सर्वप्रथम उसे अपने घर जैसा माहौल जैसे खेल कूद, खिलौनों के साथ खेलना फिर एक अनुशासन के साथ एक क्यू में खड़ा होना, प्रार्थना, एक निश्चित स्थान पर अपने डेस्क की पहचान कर बैठना, अपने हाथों से टिफिन खोल कर खाना इत्यादि की ट्रेनिंग दी जाती है । इसी बीच उसके साथ रह रहे बच्चों से दोस्ती करवा रही उसकी टीचर की पूरी कोशिश होती है कि किसी भी तरह दो चार घन्टे उस बच्चे का मन इस प्ले स्कूल में लग जाए। 

फिर साल दो साल बाद जब उस बच्चे का मन उस निर्धारित किये स्थान व करवाई जा रही किर्याओं में लग जाता है तो उसे उसकी उम्र मुताबिक खेल किर्याओं के अतिरिक्त एक कलरफुल पेन पैंसिल पकड़वा कर चित्र बनाने के साथ साथ उस भाषा के अक्षर की पहचान उन अक्षरों के नाम से मिलते जुलते जीव जंतु के चित्रों को सामने रख करवाई जाती है जिससे उस बच्चे को उस अक्षर की पहचान के साथ उसके नाम व कार्यों  की जानकारी हो सके। 

फिर होती है उन अक्षरों को आपस में जोड़ कर लिखने न समझने की कोशिश। बाद में उन शब्दों को वाक्यों में बदलना, उनका मतलब निकालने का अभ्यास निरन्तर वह निकलता है। साथ ही साथ और भी विषय जैसे गणित, कहानी, कल्चर की जानकारी भी जुड़ती चली गई।

धीरे धीरे उस बच्चे का मस्तिष्क ज्ञान की बढ़ती मेमोरी से विकसित होता चला जाता है । फिर जुड़ती हैं उसकी अपनी जिज्ञासाएं,। उससे उतपन्न होते हैं प्रश्न। जैसे जैसे उसे रूटीन में मिलते ज्ञान के साथ उसकी अपनी जिज्ञासाओं का हल मिलता चला गया । ज्यों ज्यों ही उसकी पढ़ाई ऊंचे स्तर पर पहुंचती गयी उसकी जिज्ञासा और बढ़ने लगी। 

उस बच्चे की पढ़ते समय यदि अपने आप से उठे प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला तो उसका मस्तिस्क का विकास धीरे धीरे थमता चला गया। पर यदि जिस दिन उस बच्चे के पेरेंट्स व टीचर उसकी रुचि को समझ कर सहयोग करने लगे तो समझो उसी दिन से बेड़ा पार हो गया। 

जो बच्चा पढ़ाई करते हुए उन अक्षरों से बने शब्द व वाक्यों की गहराई को स्वंय नापने लगता है वो नहीं चाहता कि कोई उस की पढ़ाई में किसी और काम की फरमाइश का विघ्न डाले जिसमे उसने बहुत से रहस्य खोजने हैं । फिर बेशक पेरेंट्स क्या स्कूल के ट्यूशन के टीचर भी सहयोग न करें।

धीरे धीरे बढ़ती उम्र की व्यवस्था को पार कर अपने मन पसंद विषय  की ओर झुकता चला जाएगा।  बशर्ते रास्ते में पढ़ाई छोड़ने, अथवा आर्थिक मदद न मिलने की मजबूरी न आई तो। 

ऐसे बच्चे यदि समझ लो उसे इंग्लिश ग्रामर में दिलचस्पी है तो वो एक सेंटेंस जिसे हम चार शब्दों का समूह कह देते हैं। पर वो उस सेंटेंस के सब्जेक्ट भी नाउन, के इलावा प्रोनाउन, जेरुण्ड, इन्फिनिटीव के बनात हुआ  वर्ब व उसके कितने प्रकार होते हैं इत्यादि  की समीक्षा करने लग जाता है। जैसे ही उसको ग्रामर की गहराई  का रहस्य आज ही जानना हो कि जेसे कल का दिन आएगा ही नहीं, किशोर अवस्था तक आते आते इतने उत्साहित होते देखे हैं बच्चे। कि  कभी कभी हैरानगी होती है।

इसी विषय पर मैं जो बात जोड़ने जा रहा था कि जो लोग आध्यात्मिक विषय में रुचि लेने लगते हैं उन्हें भी इस बच्चे जैसी कोई सुध बुध नहीं रहती। जैसे उनके ज्ञान की पुस्तकें पढ़ते पढ़ते ज्ञान की कुंडी खुलती है वो पीछे आ खुशी मनाने को भूल अगले दरवाजे की कुंडी खोलने की जुगत में लग जाते है जैसे वो उतावले हों कि आज ही इस सृष्टि व इस सृष्टि के कर्ता को पा जाएंगे।

जो कोई अध्यन करते अधात्मक विषय की गांठें खोल भी चुके हो वो इस रहस्य का बयान नहीं करना चाहते । पर यह कतई नहीं हो सकता कि वो कुछ पाएं न हों पर उनकी व्याख्या करना न करने का जो भी कारण हो पर उम्मीद अवश्य हैं कि उनमें किसी प्रकार का कोई लालच घ्रणा नहीं होनी चाहिए।

#Seriously

Tuesday, 19 May 2020

क्रोनो वायरस व गलतफहमी

एक बात जो आम है व हम जानते भी हैं, पर कभी समझने की कोशिश नहीं की, पर अब जो विपदा आई तो ध्यान गया कि जब भी हम एक देश/प्रदेश से दूसरे देश/प्रदेश आते जाते हैं तो कई बार क्या होता है कि हम उस दूसरे वातावरण को अलग से हवा -पानी व मौसम के हज़म न होने के कारण एडजस्ट नहीं  कर पाते। और बीमार हो जाते हैं।

अब क्योंकि क्रोनो वायरस फैलने, व्यापार/रोजगार के समाप्ति के व भूखमरी के कारण  लाखों लोगों की गिणती के इधर-उधर पलायन होने को हैं अथवा होने जा रहे हैं तो जाहिर है उस विशेष बीमारी के लक्षण के बेशक न हों पर इस उपरोक्त लक्षण के कारण तकलीफ अथवा परेशानी तो होगी ही।

तो ऐसा है कि यदि सरकारें दोनों लक्षणों को एक तराजू  में तौल कर अपनी रिपोर्ट कार्ड में हर एक बीमार को एक ही सूची में डाल देती है । तो हमें जो कि उस मामले में ठीक हैं जो कि सकर्णमित नहीं है , अपने आप को उस लिस्ट में लिखे जाने के कारण भयभीत, घबराहट, या कोई वहम पाल लेते हैं । उनको निश्चिन्त रहना चाहिये। कि ऐसा नहीं है जिसका उन्हें ख़तरा लग रहा है।

पर कई बार सरकारें उनका मेडीकल स्टाफ भी इसी बात से अनजान होने के कारण दूसरी किस्म की बीमार को सकर्णमित जान जाने अनजाने एकांतवास दे देती है। तो उस पीड़ित की घबराहट और बड़ जाती है।

ऐसा कुछ हो रहा है जिसकी जानकारी पंजाब के मशहूर विशेष ट्यूबर (वीडियो बनाने वाले) से  उसकी वीडियो से मिली। तो सोचा आप सब को भी अवगत करवा दूँ। वो क्योंकि पंजाब के गाँव, खेत खलिहान, कल्चर, पर अक्सर वीडियो फ़िल्म बनाते रहते हैं, तो उनकी जानकारी भी सटीक होती दिखती है तो कंटेंट राइटर होने के नाते मैंने भी अपना फर्ज समझ आपको अपने ब्लॉग पर लिखित रूप में पोस्ट कर दिया।

Gurmeet Singh Gambhir II
#Seriously
20520

Monday, 18 May 2020

comment Popli 's Speech

आप की हिदायतें काफी हद तक ठीक हैं। जहां तक क्रोनो वायरस की बात है उसको लाने में तो हम और आप जैसे आम लोगों का कोई हाथ नहीं है कि किसी प्रदूषण इत्यादि  की वजय से ऐसा हुआ हो। वो तो ऊंचे लेवल व विश्व स्तरीय वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा हासिल करने का हथियार है या कोई कुदरती कहर। 
दूसरी बात इसके इलाज अथवा बचाव संबधी जो संघर्ष हमारे वैज्ञानिक व चिकित्सक स्टाफ अपनी पुर ज़ोर अपने ज्ञान व पिछली ऐसी ही वायरस से बचाव के तजुर्बे से अपनी जान हथेली पर लेकर कर रहा है उनके लिये दुआएं  व शुभकामनाएं हैं कि जल्द सफल हों
रही तीसरी बात गरीब व मजदूर तबके की कि उनकी भी बहुत मजबूरियां हैं जो एक बीमारी के बचाव की एवज में जाने अनजाने कितने रिस्क ले रहा है। एक  लॉकडौन की वजय से दिहाड़ी का नुकसान, दूसरा बच्चों की भूख व तीसरा पीछे छोड़ कर आए अपनी आधी  फैमिली की चिंता जिन्हें वे पहले पैसा बचाकर भेज करते थे आज मजबूरी वश वापिस मंगाना पड़ रहा है। या तो जिस मकान में रह रहे उसके किराये के लिए या वापसी जाने के खर्चे के लिए। वर्ना उसे पहले थोड़ी बहुत जानकारी होती तो वो चाहकर भी ऐसी भीड़ या भीड़ के कारण होती दुर्घटना या फिर उस भयानक अंदाजा जो हम सब ही भविष्य का लगाए बैठे हैं का कारण नहीं बनता। 
इसका कारण में उन सभी सरकारों को मानता हूँ जिन्होंने समय रहते उन्हें सूचना, समय, व समय पर राशन नहीं पहुचाया। मेरे कहने का मतलब है कि जब उनको भेजना चाहिए था सरकारों की ढील मिल नीति के रहते जा न सके जबकि अब लॉक डाउन खुलने का प्रोग्राम बनाए बैठे हैं अब उन मजदूरों के आने व कमाने का टाइम है।  
बाकी रही मध्यम दर्जे की वो पूरा पूरा सहयोग देने को तैयार हैं। जब तक यह महामारी काफी हद तक ठीक होने के आसार नजर नहीं आते।

सच्चाई छुप न सकेगी

#सच्चाई_छुप_न_सकेगी

अपने समय के कुशासक, मुगल राज़,ब्रिटिश कंपनी तथा सत्तारूढ़ पार्टियों ने गुरुओं तथा महान सिखों की जीवनी, साखियाँ शहादतों भरे  इतिहास को चाहे,काफी हद तक छुपा तथा बदल दिया हो, पर उनकी गुरमति विचारधारा,संस्कार तथा संस्क्रति जो कि गुरु ग्रन्थ में दर्ज है,को नष्ट नहीं कर सकती।

 जिनके आधार पर गुरु का मौजूदा सिख तथा उनकी आने वाली जरनेशन अपने गुरुओं तथा ऐतिहासिक सिखों  की कथनी करनी व कुर्बानियों के दिखाए गए अंतर व फेरबदल को अवश्य ही पहचान सकती है।

#Seriously

Sunday, 17 May 2020

जन्म_क्या_है

अनुवाद
#जन्म_क्या_है ?

बाहर की नज़र से लगता है कि माता-पिता के मिलन से कुछ भौतिक/रसायनिक किर्याओं द्वारा जीव/मनुष्य का जन्म हो गया।

पर इस तरह नहीं है। भौतिक किर्या द्वारा तो मनुष्य/जीव का भौतिक शरीर ही बनता है, पर मनुष्य केवल शरीर नहीं है। 
भौतिक शरीर के अतिरिक्त बिना शारीरिक (नॉन-फिज़िकल) भी इससे कुछ जुड़ा हुआ है।, बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि भैतिक संसार में रहते साधनों की वजय, जीव को आकार रहित (नॉन-फिज़िकल) जीव को भौतिक शरीर मिला है। जीव/मनुष्य के साथ कई और नॉन-फिज़िकल पहलू जुड़े हैं। जैसे:--
जीव/मनुष्य, आत्मा या जीव-आत्मा।
यह जीव/मनुष्य का स्वंय का आप है। जीव उस प्रभु का ही अंश है तथा उसकी अंश होने के कारण इसके सारे गुण ही परमात्मा वाले ही हैं।
मनुष्य  मौजूदा समय जिस अवस्था में है, यह प्रभु का अंश होने के बावजूद भी प्रभु नहीं है। प्रभु अथाह सागर समान है तथा जीव एक छोटी-सी पानी की बूंद के समान है। प्रभु , सूरज तथा जीव एक छोटी किरण समान है।
मनुष्य को प्रभु से अलग करने वाली सबसे पहली चीज़ है, उसका अहंकार (प्रभु से अपनी हस्ती अलग समझना)

Jasbir Singh Virdi

साढे_तीन_गज़_जमीन

#साढे_तीन_गज़_जमीन

मनुष्य बैठता, सोता तीन हाथ ज़मीन घेरता है। लगभग इतना ही मन (वज़न) के मुर्दा शरीर को खाक-ए-सुपूर्द करने के लिए भी जमीन इतनी ही लगती है। 
तीन साढ़े तीन का क्षेत्रफल के पैमाने वाला शरीर , अन्न-पानी की पूर्ति से गतिशील होता है। जब मौत का फरिश्ता अचानक दरवाज़ा खड़खाता है, अपने प्यारे भाई, जिनके लिए कभी झगड़े,ठगियां करता था,आज वही उसे बांधने को तैयार खड़े हैं । कहते हैं कि बहन की डोली की तरह मृतक देह को कंधा पहले भाई देते है--

"साढे त्रै मण देहुरी, चलै पाणी अंनि।।
आइउ बंदा दुनी विचि,वत आसूणी बंनि।।
मलकल मउत जा आवसी सभि दरवाजे भंनि।।
तिंना पिआरिआ भाईआं अगै दिता बंनि।।
वेखहु बंदा चलिआ चहु जाणिआ दै कंनि ।।
बाबा फरीद (भगत) #SGGS

गुरु का याद ,सम्मान व उनने दिखाए उद्देश्य।

गुरु का याद ,सम्मान व उनने दिखाए उद्देश्य।

बचपन से जवानी तक न जाने कितने शिक्षक, अर्थात गुरु हमारे रास्ते ज्ञान रूपी रोशनी देते उन स्ट्रीट लाइट की तरह आये होंगे जो अपने सिमित दायरे में रह हमें फोकस कर साथ छोड़ जाते रहे। उनकी शिक्षा रूपी रोशनी का दायरा आगे दूसरी स्ट्रीट लाइट तक का था । वे पोल हमें एक दूसरे के हवाले करते चले गए।

और न ही इधर हम उन शिक्षको  से शिक्षा ग्रहण करने के बाद न कभी मिले न वहां कुछ समय ठहर कर उनकी सुध बुध ली। क्योंकि उनकी शिक्षा ही हमारे लिये ऐसी प्रेरणा थी कि हम अपना लक्ष्य प्राप्त करें न कि उनके साथ बैठ अपना समय व्यर्थ गवाएं । 

उनकी यादें वह सम्मान अपनी जगह है और रहेगा।

#Seriously

बैलेंस

Naturally, जब भी हम किसी बात पर ध्यान न देने पर Conceived होते हैं, क्या कारण है कि हमारा ध्यान बार बार वहीं जाता है?

ऐसा बचपन में तब महसूस होता है जब साइकल चलाते समय किसी संकरे रास्ते से निकलना हो और लगे कि ज़रा सा भी बैलेंस बिगड़ा नहीं कि साईकल  हम धड़ाम से नीचे। बाद में यही बात रास्ते पड़े किसी पत्थर पर अपनाई कि टायर उस पर न चढे तो हुआ उल्टा ही ।

ऐसे ही अपने जो अच्छे-बुरे विचार होते हैं उनके चूज़ करने में भी अपना हाथ कतई तब तक नहीं है जब तक कि हम न चाहने वाले विचारों को सीरियस में कंट्रोल करने के लिए रखे रहते हैं । हालांकि उपाय भी है कि हम उन बुरे वातावरण में रहना छोड़ नहीं देते। यह सब संगत का असर है। 
समझ लो आज की डेट में इंटरनेट है जो सही लोगों में एक से बढ़ कर ज्ञान वर्धक है। पर बुरी संगत में हो तो आप जरूर ही दूसरी वेबसाइट पर चक्कर लगा कर आओगे।

एक उपाय और भी है कि हम खुल कर आने दें । आखिर देखो कि वो किस हद तक हमसे जोर आजमाइश करते हैं पर जो अच्छे विचार हैं उनकी रूटीन को भी बरकरार रखना है। इससे क्या होगा कि हमारी यदि दो प्रकार की सोसाइटी भी है तो हम जब भी अपनी किसी सोसाइटी में उस दर्जे की बात बार बार करेंगे तो धीरे धीरे आपका सर्कल घटता या बढ़ता चला जाएगा। कारण यह है कि बुरी  लत या कह लो जो तृष्णा है वो बुझती है और अच्छे विचारों की तृष्णा और जागृत होती है। यदि और खुल कर समझना है तो एक बार कमेंट बॉक्स पर यस कहिये। तो ही वो बात रखूंगा।

अधेड़ उम्र

अधेड़ उम्र में देखा जाता है कि शरीर के बुढ़ापे की ओर बढ़ते कदम से इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं। शिथिल इंद्रियां शक्ति खो देती हैं। इंद्रियां शिथिल हो जाने के कारण दर्द करने लगती हैं, तो मन का ध्यान पूजा-आराधना की ओर नहीं जा पाता।

इसलिये यह धारणा गलत निकलती है कि खेल-कूद, खान-पान, मौज-मस्ती,काम-काजी जीवन के बाद बहुत समय है नाम-जाप करने का, जिससे उस शक्ति की प्रशंसा हित इस जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति-मार्ग मिले। पर यह तब संभव हो पाए, जब शरीर साथ दे, पर इस निर्बल से ऐसा मुमकिन नहीं।

यदि किसी को मेरी इस बात पर विश्वास हो, तो "वे क्षण जो आत्म-ध्यान में व्यतीत हो और शरीर की स्मृति व शक्ति न जाए, वही क्षण मनुष्य को जीवन की ऊंचाइयों भरे वास्तविक लक्ष्य की तरफ ले जाते हैं।"

#Seriously

मैं ईष्ट हूं,

"मैं ईष्ट हूं, मेरे पास तुम्हारी चल रही धड़कन की चाबी है, यदि मैं साथ नहीं, तो तुम्हारे साथ  कुछ अप्रिय हो सकता है,। जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, दुःख, दुर्भाग्य, तथा पीड़ाएं, तुम्हारे शरीर द्वार से बाहर हैं।"

ये सभी बातें घर का मुखिया कहे तो कोई मायने नहीं, सृष्टि के कर्ता के मुख से हों, तो शोभा देती हैं।

#Seriously

सफेद झूठ

हम यदि सफेद झूठ बोल सकते हैं, तो  हम कतई किसी पर विशवास करना नहीं सीख सकते ।, लेकिन खुद पर अपना भरोसा दिलाना हो तो?

हम खुद से दूसरों के बोले जाने वाले झूठ को पहचानेंगे तभी स्वयं में विश्वास रखना और अपनी भावनाओं पर भरोसा करना सीखेंगे।

हालाँकि, यह बहुत ज़रूरी है कि हम खुद पर, अपने निर्णयों पर और अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना सीखें।

 इससे दूसरों द्वारा आप पर विश्वास करने की और भरोसा करने की संभावना भी बढ़ जाएगी।

Seriously

निंदा

कोई कहे कि 'कोई' आप की पीठ पीछे निंदा करता है, तो आपको खुश होना चाहिये कि  कोई तो है जो आपके पीछे है, बराबरी का होता सीधे निंदा करता ।👇

मिसाल के तौर पर हमारा कोई नेता है जिसकी हम लोग किसी न किसी बात की निंदा करते हैं, मजाक उड़ाते हैं । यदि उसकी हाथी की चाल में कोई फर्क नहीं आता तो वह प्रशंसनीय है । इसलिये नहीं कि  उसके कर्तव्य निष्ठा या निष्ठाहीन हैं बल्कि इसलिये कि उस का रुतबा  इतना ऊंचा है कि वो हम जैसे ऐरे गैरे को पर्सनली जानता तक नहीं। और हमे भी पता है कि जब तक उसके पास पावर है हम सीधे रास्ते उसका कुछ बिगाड़ भी नहीं सकते।  यही बड़े आदमियों की बेपरवाही कहलाती हैं और हमारी बेबसी।