यदि हम दुखी हैं तो कितने दुखी हैं तो उसका एक पैमाना होता है, पर यदि हम खुश हैं तो उसका कोई पैमाना नहीं होता।
यह एक विचार है, जिस पर कई मतभेद हो सकते हैं। उन मतभेदों के कारण कई सवाल उठते हैं। आइये, इनका विश्लेषण पांच प्रकार के प्रश्न उठा कर करते हैं ।
प्रश्न भी पांच प्रकार के होते हैं; 'क्या, क्यों, कैसे, कब, व कौन'। जिनमें कौन व कहां हम सब की अपनी अवस्थाएं हैं कि 'कौन' 'कहां' व कब इन दुखों और खुशियों से गुजर रहा है या था। और 'क्या' के विषय में तो बात हो ही रही है।
रह गई बात 'क्यों व कैसे' की। ये सवाल बहुत गहन विचार वाले हैं कि जितनी गहराई में जाएगे उतने ही अधिक सवालों में उलझ जाएंगे। फिर किनारा ढूंढ पाने में परेशानी होगी। जिससे असल मुद्दे से भटकना कहा जाएगा। जैसे कि इस पोस्ट में भूमिका का इतना लंबा खींचे जाने से से आपको ही क्यों, मुझे ख़ुद को ही महसूस हो रहा है।
हमें आज थोड़े से थोड़े शब्दों में बड़ी से बड़ी घटना का पूरा विवरण नहीं बल्कि उसका सार चाहिए । पहले ऐसा न था । किसी घटना या विचार को कम से कम शब्दों में लिखना सबसे कठिन सवाल था और वो भी काव्य में ताकि रस भी बरकरार रहे वर्ना ध्यान इधर से उधर हुआ नहीं कि विषय तो दूर की बात उसे लिखने या सुनाने वाले का नाम, शक्ल व उसकी गुणवत्ता तक भुला दी जाती है।
चूंकि आज की व्यस्त जिंदगी में समय ही किसी के पास कहां है, जो हमारे 20 की उम्र पार करते ही होता था, जब यदि हम किताबी कीड़े थे तो धार्मिक पवर्ती के होने के कारण अपने ग्रन्थ व उस संबधी पुस्तकें, यदि जरा चतुर थे तो जासूसी नॉवेल, यदि रोमांटिक थे तो प्रेम कथाओं की पत्रिका, यदि दिमाग में बचपना था तो कॉमिक्स कार्टून में मस्त रहे।
इसी तरह यदि खेलकूद में रुचि रखी तो अपने शरीर को ही हुष्ट-पुष्ट बनाने में लगे रहे। यदि कमाने गंवाने के इलावा कुछ नहीं किया तो घर वालों द्वारा बांध दिया गया खूंटे से, 22-25 की उम्र तक शादी करके। फिर जब जल्दी शादी हुई तो बच्चे भी जल्दी ही होंगे। उसके बात समाज सुधार, क्या धर्म-कर्म की बातें, सब कुछ भी खूंटी से टँगा जाता है।
ये तो थे घरेलू दुख-सुख जो दो पलों से लेकर ज्यादा से ज्यादा दो दिनों तक होते हैं। पर यहां ऐसे बनावटी व टेम्पररी दुख सुख की बात नहीं हो रही है । बल्कि वो पल हैं जो अकेले बैठकर अपने आप से बात करते हुए महसूस cont..
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