उत्तर : बृहामणी मत के अनुसार 'मंगलीक' उस को कहा जाता है जिस की जन्म कुंडली में चोथे, आठवें, या बारहवें सथान (घर) पर मंगल गृह हो. जन्म कुंडली पंडित या जयोतिषी बनाते हैं.
सिकख धर्म गृह पुजा को नहीं मानता. इसलिए गृह से संबंधित मंगलीक आदि भरम की इस धर्म में कोई जगह नहीं.
दुनिया के कई देश ऐसे हैं जो जयोतिषी द्वारा टेवे व कुंडली नहीं बनवाते..., तो उनको कैसे जानकारी मिलती है कि कौन मंगलीक है कि नहीं ? कया वो लोग ऐसे भरमों से प्रभावित होते हैं ? बिल्कुल नहीं ! यह विचार ही सिरे गलत है कि लड़के-लड़की में जो एक मंगलीक है तो दूसरा नहीं तो कुछ बुरा होता है.
सिकख धर्म के अनुसार जन्म तथा मृत्यु प्रमातमा के वश में है. इसलिए कोई गृह आदि प्रभाव नहीं डाल सकते. गुरु रामदास जी फरमाते हैं कि :
"हरि आपे मारै, हरि आपे छोडै, मन हरि सरणी पड़ि रहीअै ||
हरि बिनु कोई मारि जीवालि न सकै, मन होए निचिंद निसलु होए रहीअै ||
सिकख धर्म गृह पुजा को नहीं मानता. इसलिए गृह से संबंधित मंगलीक आदि भरम की इस धर्म में कोई जगह नहीं.
दुनिया के कई देश ऐसे हैं जो जयोतिषी द्वारा टेवे व कुंडली नहीं बनवाते..., तो उनको कैसे जानकारी मिलती है कि कौन मंगलीक है कि नहीं ? कया वो लोग ऐसे भरमों से प्रभावित होते हैं ? बिल्कुल नहीं ! यह विचार ही सिरे गलत है कि लड़के-लड़की में जो एक मंगलीक है तो दूसरा नहीं तो कुछ बुरा होता है.
सिकख धर्म के अनुसार जन्म तथा मृत्यु प्रमातमा के वश में है. इसलिए कोई गृह आदि प्रभाव नहीं डाल सकते. गुरु रामदास जी फरमाते हैं कि :
"हरि आपे मारै, हरि आपे छोडै, मन हरि सरणी पड़ि रहीअै ||
हरि बिनु कोई मारि जीवालि न सकै, मन होए निचिंद निसलु होए रहीअै ||
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