*The misfortune of the wise is better than the prosperity of the fool*.”
"मूर्ख व्यक्ति की समृद्धता से समझदार व्यक्ति का दुर्भाग्य कहीं अधिक अच्छा होता है.”
एक मुर्ख व्यक्ति, एक समझदार व्यक्ति से कहीं ज्यादा परमात्मा के नज़दीक हैं, क्योंकि उसमें दुनिया के कहे जाने वाले विकार दूर-दूर तक नहीं है ।
एक मुर्ख व्यक्ति को ख़ुशी-ग़मी, दुःख -सुख, दोस्त -दुश्मन, जीवन-मरण इत्यादि की समझ ना हो पाने से, सबसे अधिक निश्चिन्त है ।
एक मुर्ख व्यक्ति केवल बोलना-सुनना, भूख-प्यास , सोना-उठना और नितकिर्या के अतिरिक्त ऐसा कुछ नहीं जानता, जिससे उसका इस संसार की वस्तुओं से मोह पैदा हो।
रही बात, प्यार की । वो अगर जो मिले, उसे वापिस लौटाना जानता है, वो प्यार चाहे मां-बाप, भाई-बहन, मित्र का हो या प्रभु की चाहत का ।
तभी हम अक्सर इस सांसारिक भाषा में मुर्ख कहे जाने वाले व्यक्ति को मंदिर, मस्जिद अथवा गुरद्वारे की सीढ़ियों पर बैठा देखा करते हैं।
क्योंकि हम , मोह-माया, लोभ, काम-क्रोध व असन्तोष की अग्नि या जिसे धार्मिक भाषा में विकार कहते हैं, के परिणाम को जानते बुझते भी, पालते हैं, इनके गुलाम हैं,फिर भी अपने को बुद्धिमान कहते है । और ये 'मुर्ख' (मन्दबुद्धि) हमसे कई दर्ज़ा अच्छे, भले और हमसे अधिक परमात्मा के नज़दीक हैं । जारी......
*गुरमीत सिंह 'गंभीर'*
No comments:
Post a Comment