Monday, 26 September 2016

हाई कोर्ट का जज ।

एक समय एक व्यक्ति, जो बार-बार अपना परिचय "हाई कोर्ट का जज" के नाम से कराता था ।

एक बार छुटियों में एक जंगल शिकार के लिए घूमने निकला और शाम ढलते ही रास्ता भटक गया ।

क्योंकि जंगल का माहौल था, वह रात बिताने के लिये कोई जगह ढूंढने की कोशिश करने लगा, तभी उसे दूर कहीं लालटेन की रौशनी नज़र आई और उस तरफ चल पड़ा, देखा तो वहां एक झोपड़ी नुमा मकान था, जिसका दरवाज़ा खटखटाने पर एक 30-35 साल की महिला ने खोला, जो दिखने में सुंदर थी।

जज ने महिला को अपनी मज़बूरी बताते हुए एक रात गुजारने को जगह मांगी, तो महिला ने कहा कि वो घर पर अकेली है ।
महिला की शंका भांपते हुए उसने कहा कि आप मुझ पर विशवास करें, '

मैं हाई कोर्ट का जज हूँ।"

उस सुंदर महिला ने रात बिताने की इजाजत दे दी। महिला ने जज साहिब को हाथ मुहं धुलवा कर खाना खिलाया।
जब जज साहिब आराम के लिये दूसरा बिस्तर ढूंढने लगे, तो उस महिला ने बताया कि मेरे यहां बिस्तर भी एक है, तो जज ने उस महिला को फिर से तसल्ली दी। कि मुझ पर विशवास रखिये

"मैं हाई कोर्ट का जज हूँ" ।

महिला मन मसोस कर एक तरफ पीठ कर सो गई और जज साहिब दूसरी तरफ।

सुबह हुई। जज साहिब अंगड़ाई लेते हुए उठे और बाहर टहलने को निकले, तो बाहर देखा कि इस महिला ने बहुत सारे मुर्गे पाल रखे हैं, जबकि मुर्गी एक !

उससे रहा ना गया और महिला से पूछ ही बैठा कि लोग मुर्गी पालन के धंधे में मुर्गियां अधिक रखते हैं और मुर्गे एक या दो, आपने इसके उल्ट कर रखा है।

ऐसा क्यों?

उस जज के प्रश्न का जो उत्तर इस सुंदर महिला ने जो दिया वो मेरी समझ में तो आ गया, पर आप को समझ आया कि नहीं, वो तो आपके लाइक् और कमैंट्स बतलायेंगे ।

क्लाइमेक्स में इस महिला ने जो उत्तर दिया , वो यह है "इनमें मुर्गा तो सिर्फ एक ही है,

बाकि सभी  "हाई कोर्ट के जज हैं""!

(कहानी, मेरे विषय से हटकर है, क्षमा सहित)

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