"सालाही सालाहि, एती सुरति न पाइआ ||
नदीया अतै वाह, पवहि समुंदि, न जाणीअहि ||
सराहने-योग्य परमात्मा के बड़प्पन के बारे में कह कह कर किसी मनुष्य में इतनी समझ प्राप्त नहीं की कि परमात्मा कितना बड़ा है, गुण-कीर्तन कने वाले मनुष्य उस परमात्मा में ही लीन हो जाते हैं |
नदियाँ तथा नाले समुन्द्र में गिरते हैं, पर फिर अलग से वह पहचाने नहीं जा सकते, बीच में ही लीन हो जाते हैं तथा समुन्द्र की थाह नहीं प्राप्त कर सकते |
" समुंद साह सुलतान, गिरहा सेती मालू धनु ||
कीड़ी तुलि न होवनी, जे तिसु मानहु न वीसरहि ||"
भाव : बंदगी करने वाले का अंत नहीं पाया जा सकता, परन्तु इस का मतलब यह नहीं की परमात्मा की सिफत-सालाह करने का कोई फायदा नहीं | प्रभु की भक्ति की बरकत से मनुष्य शाहों, बादशाहों की भी परवाह नहीं करता | प्रभु का नाम के सामने अनन्त धन भी तुच्छ लगता है |
" समुंद साह सुलतान, गिरहा सेती मालू धनु ||
कीड़ी तुलि न होवनी, जे तिसु मानहु न वीसरहि ||"
समुन्द्रों के बादशाह तथा सुलतान, जिन के खजानों में पहाड़ों जितने धन पदार्थों के ढेर हों, प्रभु का गुण- कीर्तन करने वालों की नज़रों में एक चींटी के बराबर भी नहीं होते, यदि हे परमात्मा ! उस चींटी के मन में से तू न निकल जाए |२३|
भाव : बंदगी करने वाले का अंत नहीं पाया जा सकता, परन्तु इस का मतलब यह नहीं की परमात्मा की सिफत-सालाह करने का कोई फायदा नहीं | प्रभु की भक्ति की बरकत से मनुष्य शाहों, बादशाहों की भी परवाह नहीं करता | प्रभु का नाम के सामने अनन्त धन भी तुच्छ लगता है |
गुरु नानक, जपु जी साहिब |२३|Cont..
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