Wednesday, 14 November 2012

अंतु न सिफती......(24) जपु जी साहिब |


अंतु न सिफती, कहणि न अंतु ||अंतु न करणै, देणि न अंतु ||
अंतु न वेखणि, सुणणि न अंतु ||अंतु न जापै, किआ मनि मंतु ||

परमात्मा के गुणों कि कोई सीमा नहीं है, गिनने से भी गुणों का अंत नहीं पाया जा सकता / 
परमात्मा कि रचना तथा देन का अंत नहीं पाया जा सकता /
देखने तथा सुनने से भी उसके गुणों का पार नहीं पाया जा सकता /
उस परमात्मा के मन में कौन-सा विचार है --इस बात का भी अंत नहीं पाया जा सकता /

"अंतु न जापे कीता आकारु || अंतु न जापे पारावारु ||"


परमात्मा ने यह जगत जो दिखाई दे रहा है, बनाया है परन्तु इस का अंत, इसका पारावार कोई दिखाई नहीं देता |


अंत कारणि केते बिललाहि || ता के अंत न पाए जाहि ||



कई मनुष्य परमात्मा का अन्त (सीमा) ढूँढने के लिए व्याकुल रहते हैं, पर उसका अन्त ढूँढा नहीं जा सकता |

एहु अंतु न जाणै कोइ ||बहुता कहीऐ बहुता होइ ||

परमात्मा के गुणों की सीमा का अंत जिसकी खोज अनंत जीव करते हैं, कोई मनुष्य नहीं पा सकता | जैसे-जैसे यह बात कहते जाएँ कि वह बड़ा है, वैसे-वैसे वह और बड़ा, और बड़ा प्रतीत होने लगता है |



"वडा साहिबु, ऊचा थाउ || ऊचे उपरि ऊचा नाउ ||
एवडु ऊचा होवै कोइ || तिसु ऊचे कउ जाणै सोइ ||"

परमात्मा बड़ा है . उसका टिकाना ऊँचा है | उसका नाम भी ऊँचा है| यदि कोई और उस जितना बड़ा हो, वह ही उस ऊँचे परमात्मा को समझ सकता है कि वह कितना बड़ा है |


" जेवडु आपि जाणै आपि आपि ||
नानक, नदरी करमी दाति ||२४||"

परमात्मा आप ही जानता है कि वह स्वयं कितना बड़ा है |
हे नानक ! प्रत्येक देन कर्पा-दृष्टि रखने वाले परमात्मा की कर्पा से मिलती है |२४|


गुरू नानक, जपु जी साहिब|


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गुरू नानक, जपु जी साहिब |२४| Cont..

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