Wednesday, 24 August 2016

ਜਪੁ ਜੀ ਸਹਿਬ ।


१ओंकार सतिनाम करता पुरखु निरभउ निरवैरु
अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ।।

अर्थ : अकाल पुरखु (परमात्मा) एक है, जिसका नाम 'अस्त्तिव वाला' है, जो सृष्टि का कर्ता है, जो सब में व्यापक है, भय से रहित है, बैर रहित है, जिसका स्वरुप काल से परे है, भाव, जिसका शरीर नाश रहित है) जो योनीयों में नहीं आता, जिसका प्रकाश अपने आप से ही हुआ है, तथा जो सच्चे गुरू की कृपा से मिलता है।

#Invocation

आदि (प्रारम्भ से ) सचु (अस्तित्व वाला ), जुगादि (युगों के प्रारम्भ से ) सचु, है भी सचु, नानक (कहते है), होसी (होगा, रहेगा) भी सचु /

हे नानक ! अकाल पुरख (परमात्मा ) मूल (प्रारंभ से)  अस्तित्व वाला  है, यूगों के आदि से मौजूद है/ इस समय भी मौजूद है तथा  आगे आने वाले आने समय में भी अस्तित्व में मौजूद रहेगा/१/जपु जी सहिब/

नोट : यह शलोक मंगलाचरण के रूप में है/ इस में गुरू नानक देव जी ने अपने इष्ट के स्वरुप का वर्णन किया है, जिसका जप-सिमरन करने का उपदेश इस सारी वाणीः 'जपु' जी में किया जाता है/
इस से आगे वाणीः 'जपु' जी का विषय शूरू होता है ।

सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार।। चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिवतार।।

अर्थ: यदि मैं लाख बार भी स्नान आदि से शरीर की पवित्रता रखूँ तो भी इस तरह पवित्रता रखने से मन की पवित्रता नहीं रह सकती । यदि मैं शरीर की एक-तार समाधि लगाये रखूँ, तो भी इस तरह चुप रहकर के मन में शांति नहीं हो सकती।






#किव_सचिआरा_होईऐ,

किव सचिआरा होईऐ, किव कूड़ै तुटै पालि।।

हूकमि रजाई चलणा, नानक किखिआ नालि।।१।।

अर्थ:  तो फिर हम अकाल पुरुख (परमात्मा) के प्रकाश के, योग्य कैसे बन सकते हैं ? तथा हमारे अन्दर का झूठ (असत्य) का पर्दा कैसे टूट सकता है ?

रज़ा के स्वामी परमात्मा के हुक्म में चलना--यही एक विधि है। हे नानक ! यही विधि प्रारम्भ से ही, जब से जगत बना है, लिखी चली आ रही है।१।

भाव: प्रभु से जीव का अन्तर मिटाने का एक ही तरीका है कि जीव उस की रज़ा में चले। यह नियम प्रारम्भ से ही परमात्मा की तरफ़ से जीव के लिये ज़रुरी है। पिता के कहे अनुसार पुत्र चलता रहे तो प्यार, न चले तो अन्तर पैदा होता चला जाता है।
हुकमी होवनि आकार, हुकमु न कहिआ जाई।।
हुकमी होवनि जीअ, हुकमि मिलै वडिआई।।

पद अर्थ : अकाल पुरख (परमात्मा) के हुक्म अनुसार सारे शरीर बनते हैं, (परन्तु यह) हुक्म बताया नहीं जा सकता कि कैसा है। परमात्मा के हुक्म अनुसार ही सारे जीव जन्म लेते हैं तथा हुक्म अनुसार ही (परमात्मा के दर पर) शोभा मिलती है।
#InOrderToDo

हुकमी उतमु नीचु, हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि।।
इकना हुकमी बखसीस, इकि हुकमी सदा भवाईअहि।।

परमात्मा के हुक्म से कोई मनुष्य अच्छा (बन जाता है) कोई बुरा। उसके हुक्म में ही (अपने किये हुये कर्मों के) लिखे अनुसार दुख तथा सुख भोगते हैं। हुक्म में ही कई मनुष्यों पर (अकाल पुरख के दर से) कृपा होती है, तथा उसके हुक्म में ही कई मनुष्य नित्य जन्म-मरन के चक्र में घुमाये जाते हैं ।

#जपुजीसाहिब । टीका : प्रो. साहिब सिंह जी/Cont..
#EverythingIsInOrderByGod

हुक्मै अंदर सभु को, बाहरि हुक्म न कोइ||
नानक हुक्मै जे बुझै, त हउमै  कहै न कोइ||

प्रतेक जीव परमात्मा के हुक्म में ही है, कोई जीव हुक्म से बाहर  ( भाव, हुक्म से बेमुख ) नहीं हो सकता/ हे नानक ! यदि कोई मनुष्य परमात्मा के हुक्म को समझ ले तो फिर वह स्वार्थ की बातें नहीं करता (भाव, फिर वह स्वार्थी जीवन को छोड़ देता है)/२/

भाव : प्रभु के हुक्म का सही स्वरुप ब्यान नहीं किया जा सकता, परन्तु जो मनुष्य इस हुक्म में चलता है, वह उदार हो जाता है (संकीर्ण-मन नहीं रहता )/

जपु जी साहिब / टीका : प्रो. साहिब सिंह जी (डी. लिट.)

#DivinePowers

गावै को ताणु हौवै किसै ताणु ।।
गावै को दाति जाणै नीसाणु ।।

जिस किसी मनुष्य में सामर्थ्य होती है वह परमात्मा के बल का गायन करता है (भाव, उसका गुण-कीर्तन करता है, उसके उन कार्यों का कथन करता है जिनसे उसकी अपार शक्ति प्रकट हो) । कोई मनुष्य उसके द्वारा दिये गये पदार्थों का ही गुण-गान करता है (क्योंकि इन देय-पदार्थों को वह परमात्मा की कृपा का) निशान समझता है।

जपु जी साहिब के भावअर्थ [पौड़ी ३]
Cont....
#TheQualitiesOfGod.

गावै को गुण वडिआईआ चार ।।
गावै को विदिआ विखमु वीचार ।।

कोई मनुष्य परमात्मा के सुंदर गुण तथा सुंदर बड़प्पन का वर्णन करता है।
कोई  मनुष्य विध्या के बल से परमात्मा के कठिन ज्ञान को गाता है।
भाव, शास्त्र आदि द्वारा आत्मिक दर्शन के कठिन विष्यों पर विचार करता है।

जपु जी साहिब की तीसरी पौड़ी के अर्थ-भाव।
*God'sCommands*

गावै को, साजि करे, तनु खेह ।।
गावै को, जीअ लै फिरि देह ।।

कोई मनुष्य ऐसे गाता है, 'अकाल पुरख (परमात्मा) शरीर को बना कर (फिर) राख कर देता है,।'
कोई मनुष्य ऐसे गाता है, ' हरि (शरीरों में से) आत्मा निकाल कर फिर (दूसरे शरीरों में) डाल देता है.।'

*जपु जी साहिब*] पौड़ी-३ के कुछ अंशों के भाव-अर्थ/Cont...

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