#भावना #Feeling
(एक व्यंगात्मक विचार)
एक धनवान सेठ ने सुन रखा था कि उसके धर्म के पवित्र ग्रन्थ का घर में निरंतर पाठ (Continue reading) पाठ रखने से मनुष्य की पर्म गती (मुक्ति) की प्राप्ती होती है ।
उसने अपने पूजनीय स्थल के पुजारी को संपर्क कर इस प्रकिर्या को करने के लिये विनय किया ।
पुजारी ने इस :संपूर्ण प्रकिर्या' (Entire Process) में सामग्री तथा और भोजन इत्यादि खाने पीने की व्यवस्था में कुल खर्च (Package) की राशी (Amount) बता दी ।
उस धनवान सेठ ने सोचा कि (जैसा कि उसने सुन रखा था) इन 'थोड़ी' सी मात्रा की राशी खर्च करने पर यदि मुझे या मेरे परिवार को अपने किये बुरे कर्मों, अपराधों, पापों से माफ़ी या मुक्ति मिलती है , तो 'सौदा' (deal) बुरी नहीं है, और "इससे सस्ता सौदा, भला, क्या हो सकता है!
उधर पुजारी के मन में यह चल रहा था कि इस प्रकिर्या के करने से 'भारी' मात्रा की राशि की आमदन से मेरा कुछ दिन घर चलता है तो "क्या हर्ज है!"
अतः , यह 'धार्मिक प्रकिर्या' (Process) संपूर्ण हुई ।
उस धनवान सेठ को बाद में, जब उसका लेखा-जोखा (हिसाब-किताब) हुआ, तो परिणाम में नर्क भेज दिया गया ।
जिसका कारण यह बतलाया गया कि इस पाठ के पठन की प्रकिर्या में 'वक्ता(speaker) और श्रोता (listner) दोनों ही की असल में कोई धार्मिक "भावना" ,नहीं थी, दोनों ही प्रभु से एक किस्म की "सौदेबाज़ी' कर रहे थे ।
जबकि, यदि भावना होती, उस पर विचार होता । जोकि बुद्धि का विषय है ।
अर्थात, 'भावना' जो है, वो ह्रदय से निकलती है। परमात्मा, न किसी धातु की वस्तु में होता है, न मिट्टी की मूरत में । वो तो हमारी 'भावना' में निवास करता है । 'भावना' ही भक्ति की मूल चेतना है । इसीलिए हमारी प्रभु से की गई 'प्रार्थना', भावना से होनी चाहिए ।
आज संसार में संचार साधन (media) के विकास में धार्मिक कथा-कीर्तन का बहुत अच्छा माहौल तैयार हुआ है, पर इसका समाज के आचरण में कोई प्रभाव नहीं देखा जा रहा । इसका कारण भी वक्ता और श्रोता में "भावना" का अभाव (lack) है ।
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Gurmeet Singh Gambhir
#OnThisDay_06oct2012
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