*"राम" संज्ञा (Noun)नहीं, विशेषण(Adjective) है*
संज्ञा (Noun) विशेषण (Adjective) गुण विशेष,संबोधित।
"राम" रमा हुआ, समाया हुआ। "तिथै जोध महाबल सूर", "तिन महि "रामु' रहिआ भरपूर।। (जिन के अंदर पूरी तरह से समाया हुआ है) पूरी पंक्ति का सार, "वहां जितने भी योद्धा, महाबली, सुरमें है (प्रभु) उनके अंदर "समाया हुआ" है।
करम खंड की बाणी जोरू || तिथै, होरु न कोई होरु ||
तिथै, जोध महाबल सूर || तिन महि *रामु रहिआ भरपूर* ||
परमात्मा की कर्पा वाली उस अवस्था की बनावट 'बल' है, भाव, जब मनुष्य पर परमात्मा की कर्पा-दृष्टि होती है तथा उसके अंदर ऐसा बल पैदा होता है कि विष्य-विकार उसे प्रबावित नहीं कर सकते क्योंकि उस अवस्था में मनुष्य के अंदर परमात्मा के बिना कोई दूसरा बिल्कुल ही नहीं रहता | उस अवस्था में जो मनुष्य हैं वे योद्धा, महाबली तथा शूरवीर हैं, उनके *रोम-रोम* में परमात्मा बस रहा है |
तिथै, *सीतो सीता+*, महिमा माहि || ता के रूप, न कथने जाहि ||
ना ओहि मरहि न ठागे जाहि || *जिन कै, रामु वसै, मन माहि ||*
परमात्मा की कर्पा कि उस अवस्था में पहुंचे हुये मनुष्यों की प्रशंसा (गुण-कीर्तन ) में लगा रहता है | उनकी *काया ऐसी *कंचन* जैसी हो जाती है कि उनके सुंदर रूप का वर्णन नहीं किया जा सकता | उनके मुख पर नूर ही नूर चमकता है | इस अवस्था में जिन के मन में परमात्मा बसता है, वे आत्मिक मौत नहीं मरते तथा माया उनको ठग नहीं सकती । 37.जपु जी (SGGS)
No comments:
Post a Comment