Monday, 30 July 2012

त्वप्रसादि ॥ स्वये ॥

जैन, बुध धर्म के साधु व संतों की टोली, योगी व बरहमचारीयों के घर जाकर देख चूका हूँ / सूरमे, दैत्य, निर्मल अंमर्त पीने देवतांओं व कई और मतों की संत-मंडली भी देख चूका हूँ / सारे देशों के मत को देख चूका हूँ/ शोभायमान परमात्मा की क्षर्दा, कर्पा व उसके साथ एक प्रेम के बिना हम एक रत्ती-भर मुल्य के भी नहीं हैं// 1//
I have se...en during my tours pure Sravaks (Jaina and Buddhist monks), group of adepts and abodes of ascetics and Yogi.Valiant heroes, demons killing gods, gods drinking nectar and assemblies of saints of various sects. I have seen the disciplines of the religious systems of all the countries, but seen none of the Lord, the Master of my life. They are worth nothing without an iota of the Grace of the Lord. |1|.
॥ स्रावग सु्ध समूह सिधान के देखि फिरिओ घर जोग जती के ॥ सूर सुरारदन सु्ध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥ सारे ही देस को देखि रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥ स्री भगवान की भाइ क्रिपा हू ते एक रती बिनु एक रती के ॥१॥
मस्त हाथी चाहे वो सोने से सजाया गया हो,सुंदर रंगों से संवारा गया हो/ करोड़ों घोड़े, हिरन जैसे कूदने वाले हों, चाहे वो हवा की चाल को मात देते हो/ बड़ी बाहों वाले अनेकों राजा जिनके के आगे लोग अच्छी तरह से सिर निवाजते हों जिनका अंदाजा भी हम नहीं लगा सकते/ इतने बड़े राजा भी हो तो क्या ! अंत को तो यहां से नंगे पांव ही चले जान...ा है/2/
 With intoxicated elephants, studded with gold, incomparable and huge, painted in bright colours. With millions of horses galloping like deer, moving faster than the wind. With many kings indescribable, having long arms (of heavy allied forces), bowing their heads in fine array. What matters if such mighty emperors were there, because they had to leave the world with bare feet.2.22.
चाहे जीत लो सारे देशों को जीत लो, चाहे खुशिओं में ढोल नगाड़े बजाओ, चाहे सुन्दर हाथीओं का झुण्ड झूमे, चाहे हज़ारों बढिया घोड़े हिन्हीनाएं , चाहे भूत व् भविष्य के राजे एकत्र हों , जिनकी गिनती का अंदाजा लगाना मुश्किल हो, परन्तु इस मोह माया के मालिक के सिमरन के बिना अंतत सभी मौत के घर जाते हैं . जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल म्रिदंग नगारे ॥ गुंजत गूड़ गजान के सुंदर हिंसत हैं हयराज हजारे ॥ भूत भवि्ख ...भवान के भूपत कउनु गनै नहीं जात बिचारे ॥ स्री पति स्री भगवान भजे बिनु अंत कउ अंत के धाम सिधारे ॥३॥२३॥
ਜੀਤ ਫਿਰੈ ਸਭ ਦੇਸ ਦਿਸਾਨ ਕੋ ਬਾਜਤ ਢੋਲ ਮ੍ਰਿਦੰਗ ਨਗਾਰੇ ॥ ਗੁੰਜਤ ਗੂੜ ਗਜਾਨ ਕੇ ਸੁੰਦਰ ਹਿੰਸਤ ਹੈਂ ਹਯਰਾਜ ਹਜਾਰੇ ॥ ਭੂਤ ਭਵਿੱਖ ਭਵਾਨ ਕੇ ਭੂਪਤ ਕਉਨੁ ਗਨੈ ਨਹੀਂ ਜਾਤ ਬਿਚਾਰੇ ॥ ਸ੍ਰੀ ਪਤਿ ਸ੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਭਜੇ ਬਿਨੁ ਅੰਤ ਕਉ ਅੰਤ ਕੇ ਧਾਮ ਸਿਧਾਰੇ ॥੩॥੨੩॥
With the beat of drums and trumpets if the emperor conquers all the countries. Along with many beautiful roaring elephants and thousands of neighing houses of best breed. Such like emperors of the past, present and future cannot be counted and ascertained. But without remembering the Name of the Lord, they ultimately leave for their final abode//3//23//
चाहे अच्छी फौज हो, जिसके सिपाही घोर युद्ध करके, युक्तिओं से , दुश्मनों को पछाड़ दें / चाहे उन के मन में इस बात का बहोत अहंकार हो कि पर्वत पंख की तरह से हिला दें पर वो नहीं हिलेंगे. चाहे वो दुश्मनों को काट दें, मार दें, मस्त हाथीओं के मान को मिट्टी में मिला दें. परन्तु श्री भगवान् की किरपा बिना ऐसे सूरमे भी अंत समय जगत को छोड़ कर चले जाएंगे/
ਸੁੱਧ ਸਿਪਾਹ ਦੁਰੰਤ ਦੁਬਾਹ ਸੁ ਸਾਜ ਸਨਾਹ ਦੁਰਜਾਨ ਦਲੈਂਗੇ ॥ ਭਾਰੀ ਗੁ...ਮਾਨ ਭਰੇ ਮਨ ਮੈਂ ਕਰ ਪਰਬਤ ਪੰਖ ਹਲੇ ਨ ਹਲੈਂਗੇ ॥ ਤੋਰਿ ਅਰੀਨ ਮਰੋਰਿ ਮਵਾਸਨ ਮਾਤੇ ਮਤੰਗਨ ਮਾਨ ਮਲੈਂਗੇ ॥ ਸ੍ਰੀ ਪਤਿ ਸ੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਕ੍ਰਿਪਾ ਬਿਨੁ ਤਿਆਗਿ ਜਹਾਨ ਨਿਦਾਨ ਚਲੈਂਗੇ ॥੫॥੨੫॥
सु्ध सिपाह दुरंत दुबाह सु साज सनाह दुरजान दलैंगे ॥ भारी गुमान भरे मन मैं कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥ तोरि अरीन मरोरि मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥ स्री पति स्री भगवान क्रिपा बिनु तिआगि जहान निदान चलैंगे ॥५॥२५॥
The trained soldiers, mightly and invincible, clad in coat of mail, who would be able to crush the enemies.With great ego in their mind that they would not be vanquished even if the mountains move with wings. They would destroy the enemies, twist the rebels and smash the pride of intoxicated elephants. But without the Grace of the Lord-God, they would ultimately leave the world. //5/25//
बेअंत सूरमे बड़े बलवान जो बहादुरी से शस्त्रों की मार खाते हैं ,देशों को जीत के दुश्मनों को मिट्टी में मिला देते हैं, मस्त हाथीओं के मान को तोड़ देते हैं,तथा मजबूत किलों को तोड़ने वाले ,बातों ही बातो में चार चक्कों को जीत लेने वाले, उस शोभा के मालिक जो सब के सर का साईं है, अनेक ऐसे सूरमे उस प्रभु से मांगते हैं तथा वो देने वाला है.
 ਬੀਰ ਅਪਾਰ ਬਡੇ ਬਰਿਆਰ ਅਬਿਚਾਰਹਿ ਸਾਰ ਕੀ ਧਾਰ ਭਛੱਯਾ ॥ ਤੋਰਤ ਦੇਸ ਮਲਿੰਦ ਮਵਾਸਨ ...ਮਾਤੇ ਗਜਾਨ ਕੇ ਮਾਨ ਮਲੱਯਾ ॥ ਗਾੜ੍ਹੇ ਗੜ੍ਹਾਨ ਕੋ ਤੋੜਨਹਾਰ ਸੁ ਬਾਤਨ ਹੀਂ ਚਕ ਚਾਰ ਲਵੱਯਾ ॥ ਸਾਹਿਬੁ ਸ੍ਰੀ ਸਭ ਕੋ ਸਿਰਨਾਇਕ ਜਾਚਕ ਅਨੇਕ ਸੁ ਏਕ ਦਿਵੱਯਾ ॥੬॥੨੬॥ बीर अपार बडे बरिआर अबिचारहि सार की धार भछ्या ॥ तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मल्या ॥ गाड़्हे गड़्हान को तोड़नहार सु बातन हीं चक चार लव्या ॥ साहिबु स्री सभ को सिरनाइक जाचक अनेक सु एक दिव्या ॥६॥२६॥
Innumerable brave and mighty heroes, fearlessly facing the edge of the sword. Conquering the countries, subjugating the rebels and crushing the pride of the intoxicated elephants.Capturing the strong forts and conquering all sides with mere threats. The Lord God is the Cammander of all and is the only Donor, the beggars are many. 6.26
दैंत देवते , शेष नाग , रात को घूमने वाले जीव, भूतकाल, भविष्य , वर्तमान में जिस ko जपते हैं/ जल में व् धरती के ऊपर जितने भी जीव हैं ,सब की थापना पल ही पल में करते हैं / अच्छे कामों की तेज़ व् धुनी उठती है तथा पापों के बहुत से झूंड नाश हो जाते हैं/ जगत में सारे संत ख़ुशी में विचलते हैं तथा सारे शत्रु देख कर दुबक जाते हैं /
 ਦਾਨਵ ਦੇਵ ਫਨਿੰਦ ਨਿਸਾਚਰ ਭੂਤ ਭਵਿੱਖ ਭਵਾਨ ਜਪੈਂਗੇ ॥ ਜੀਵ ਜਿਤੇ ਜਲ ਮੈ ਥਲ ਮੈ ਪਲ ਹੀ ਪਲ ...ਮੈ ਸਭ ਥਾਪ ਥਪੈਂਗੇ ॥ ਪੁੰਨ ਪ੍ਰਤਾਪਨ ਬਾਢ ਜੈਤ ਧੁਨ ਪਾਪਨ ਕੇ ਬਹੁ ਪੁੰਜ ਖਪੈਂਗੇ ॥ ਸਾਧ ਸਮੂਹ ਪ੍ਰਸੰਨ ਫਿਰੈਂ ਜਗ ਸਤ੍ਰ ਸਭੈ ਅਵਲੋਕ ਚਪੈਂਗੇ ॥੭॥੨੭॥
 दानव देव फनिंद निसाचर भूत भवि्ख भवान जपैंगे ॥ जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥ पुंन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुंज खपैंगे ॥ साध समूह प्रसंन फिरैं जग सत्र सभै अवलोक चपैंगे ॥७॥२७॥ Demons, gods, huge serpents, ghosts, past, present and future would repeat His Name. All the creatures in the sea and on land would increase and the heaps of sins would be destroyed. The praises of the glories of virtues would increase and the heaps of sins would be destroyed All the saints would wander in the world with bliss and the enemies would be annoyed on seeing them.7.27.

मनुष्यों के राजे , हाथीओं के मालिक , मनुष्य के रक्षक , जो सारी शरिष्टि ऊपर राज करते हैं /करोड़ों तीर्थों के स्नान करके , हाथी दान करके व अनेकों स्वयम्वर रचा कर विवाह करते हैं/ ऐसे मनुष्य ही नहीं , ब्रह्मा ,शिवजी , विष्णु तथा इन्दर जैसे भी अंत को मौत के फंदे में फंस गए हैं / जो नर श्री पति श्री भगवान के चरणों को परस्ते हैं , वह मनुष्य दुबारा से देह नहीं धारण करेंगे
ਮਾਨਵ ਇੰਦ੍ਰ ਗਜਿੰਦ੍ਰ ਨਰਾਧਪ ਜੌਨ ਤ੍ਰ...ਿਲੋਕ ਕੋ ਰਾਜ ਕਰੈਂਗੇ ॥ ਕੋਟਿ ਇਸਨਾਨ ਗਜਾਦਿਕ ਦਾਨ ਅਨੇਕ ਸੁਅੰਬਰ ਸਾਜ ਬਰੈਂਗੇ ॥ ਬ੍ਰਹਮ ਮਹੇਸਰ ਬਿਸਨ ਸਚੀਪਿਤ ਅੰਤ ਫਸੇ ਜਮ ਫਾਸਿ ਪਰੈਂਗੇ ॥ ਜੇ ਨਰ ਸ੍ਰੀ ਪਤਿ ਕੇ ਪ੍ਰਸ ਹੈਂ ਪਗ ਤੇ ਨਰ ਫੇਰ ਨ ਦੇਹ ਧਰੈਂਗੇ ॥੮॥੨੮॥
मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन त्रिलोक को राज करैंगे ॥ कोटि इसनान गजादिक दान अनेक सुअमबर साज बरैंगे ॥ ब्रहम महेसर बिसन सचीपित अंत फसे जम फासि परैंगे ॥ जे नर स्री पति के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥२८॥ King of men and elephants, emperors who would rule over the three worlds. Who would perform millions of ablutions, give elephants and other animals in charity and arrange many svayyamuaras (self-marriage functions) for weddings.Brahma, Shiva, Vishnu and Consort of Sachi (Indra) would ultimately fall in the noose of death. But those who fall at the feet of Lord-God, they would not appear again in physical form. 8.28.
क्या हुआ जो दोनों आँखें मूँद कर बगूले जैसे ध्यान लगा लिया, सातों तरह के समुन्द्रों में नहाता फिरे/ उसका लोक भी गया और परलोक भी गवा लिया / गलत संगत में बैठ कर विषय विकारों में साथ दिया ,उन लोगों ने
अपनी उम्र वैसे ही खो दी है/ यदि सच कहूँ ,सब सुन लो ,जिस ने प्रभु से प्रेम किया है, उसी ने प्रभु को पाया है/
ਕਹਾ ਭਯੋ ਜੋ ਦੋਉ ਲੋਚਨ ਮੂੰਦ ਕੈ ਬੈਠਿ ਰਹਿਓ ਬਕ ਧਿਆਨ ਲਗਾਇਓ ॥ ਨ੍ਹਾਤ ਫਿਰਿਓ ਲੀਏ ਸਾਤ ਸਮੁਦ੍ਰਨਿ ਲੋਕ ਗਯੋ ਪਰਲ...ੋਕ ਗਵਾਇਓ ॥ ਬਾਸ ਕੀਓ ਬਿਖਿਆਨ ਸੋ ਬੈਠ ਕੈ ਐਸੇ ਹੀ ਐਸੇ ਸੁ ਬੈਸ ਬਿਤਾਇਓ ॥ ਸਾਚੁ ਕਹੋਂ ਸੁਨ ਲੇਹੁ ਸਭੈ ਜਿਨ ਪ੍ਰੇਮ ਕੀਓ ਤਿਨ ਹੀ ਪ੍ਰਭ ਪਾਇਓ ॥੯॥੨੯॥
 कहा भयो जो दोउ लोचन मूंद कै बैठि रहिओ बक धिआन लगाइओ ॥ न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रनि लोक गयो परलोक गवाइओ ॥ बास कीओ बिखिआन सो बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइओ ॥ साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ॥९॥२९॥ .
 Of what use it is if one sits and meditates like a crane with his eyes closed. If he takes bath at holy places upto the seventh sea, he loses this world and also the next world.He spends his life in such performing evil actions and wastes his life in such pursuits. I speak Truth, all should turn their ears towards it: he, who is absorbed in True Love, he would realize the Lord. 9.29.
किसी ने पत्थर की पूजा की व उसके ऊपर सर रखा तथा किसी ने " शिव -लिंग" ले कर गले लटका लिया है , किसी ने हरी को पूर्व की ओर जाना है तथा किसी ने पश्चम की ओर सर निवाया है, कोई बेसमझ बुतों को पूजता है, तथा कोई कब्ब्रों को पूजने के लिए भागा फिरता है / सारा ही जग झूठे कामों में फस्सा पड़ा है, और परमात्मा का भेद किसी ने नहीं पाया है/
ਕਾਹੂ ਲੈ ਪਾਹਨ ਪੂਜ ਧਰਯੋ ਸਿਰ ਕਾਹੂ ਲੈ ਲਿੰਗ ਗਰੇ ਲਟਕਾਇਓ ॥ ਕਾਹੂ ਲਖਿਓ ਹਰਿ ਅਵਾਚੀ ...ਦਿਸਾ ਮਹਿ ਕਾਹੂ ਪਛਾਹ ਕੋ ਸੀਸੁ ਨਿਵਾਇਓ ॥ ਕੋਉ ਬੁਤਾਨ ਕੋ ਪੂਜਤ ਹੈ ਪਸੁ ਕੋਉ ਮ੍ਰਿਤਾਨ ਕੋ ਪੂਜਨ ਧਾਇਓ ॥ ਕੂਰ ਕ੍ਰਿਆ ਉਰਿਝਓ ਸਭ ਹੀ ਜਗ ਸ੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਕੋ ਭੇਦੁ ਨ ਪਾਇਓ ॥੧੦॥੩੦॥
 काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकाइओ ॥ काहू लखिओ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीसु निवाइओ ॥ कोउ बुतान को पूजत है पसु कोउ म्रितान को पूजन धाइओ ॥ कूर क्रिआ उरिझओ सभ ही जग स्री भगवान को भेदु न पाइओ ॥१०॥३०॥ Someone worshipped stone and placed it on his head. Someone hung the phallus (lingam) from his neck.Someone visualized God in the South and someone bowed his head towards the West.Some fool worships the idols and someone goes to worship the dead. The whole world is entangled in false rituals and has not known the secret of Lord-God 10.30.

किर्तन सोहिला (हिन्दी भाव-अर्थ)

जिस घर (मन) में हरी का जसकिया जाता है तथा करतार की विचार होती है , उसीमन में आनंद मयी शब्द गाओ तथा सिरजनहार का सिमरन करो / आप मेरे निर्भय हरी का जसगाओ / मैं कुर्बान हूँ ,जिस कारण सदा सुख होता है/ हरसमय जीवों की संभाल हो रही है, वो हमारी भी संभाल करेगा/ उस के दान का मूल्य नहीं पड़ सकता है/ उस दाते का लेखा-जोखा कौन कर सकता है? हरी के मेल का समय व संवत लिखा हुआ है, आप मिलकर तेल चढाओ / हे सज्जनों ! आशीर्वाद दो, जिससे मालिक से मेल हो जाए / हर घर में मौत का सन्देशहै, हमेशा न्योते आते हैं/ बुलाने वाले हरी को याद करें , हे नानक ! उस मिलाप के दिन आएं//1//

पहली पातशाही गुरु नानक देव जीआसा राग में उच्चारण करते हैं कि ६ (छे ) शास्त्र हैं, उनकोरचने वाले छे गुरु हैं तथा छे तरह के उनके उपदेश है / जिन गुरुओं का एक परमात्माहै, जिसके अनेक रूप हैं/ हे बाबा ! जिस मत में करतार का जस होता है, उस को मन में टखने में तेरी प्रशंसा है / विषयों के चसे ,फिर घडी, पहरतथा तिथि व वार बनाते हैं तथा दिनों का महीना हो जाता है / सूरज तो एक है , उसकी अनेक ऋतू होती हैं / हे नानक ! ऐसे ही सर्जनहार केकई सरूप हैं / /2//

जानो, आकाश-मयी थाल है, सूरज और चाँद दीपक बने हैं, तारों का समूह मोती हैं / चन्दन की सुगंध धूप है, हवा चवर कर रही है / हे ज्योति स्वरूप ! सारी वनस्पति मानों फूल हैं /1/ यह कैसी आरती हो रही है ! हे भय नाशवंत ! तेरी आरती एक-रस, निरंतर / ईलाही शब्द मानों, नगाड़े बज़ा रहे हैं /1/ केंद्रीय भाव / तेरे हजारों नेत्र हैं, पर असलियत में तेरी कोई आँख नहीं / तेरे हजारों स्वरूप हैं, पर तेरा एक विशेष स्वरूप नहीं / तेरे हजारों ही निर्मल चरण हैं, पर तेरा एक भी पैर नहीं / तुँह नाशहीन है, पर तेरी हजारों नाशें हैं / तेरे इस कौतुक ने मेरा मन मोह लिया है /2/ सबके अन्दर ज्योति है, यह ज्योति वे स्वयं है / उसकी चाँदनी से सब में रोशनी है / गुरु की शिक्षा से ये ज्योति प्रकट होतीं है / जो उसको मन्जूर वही आरती है /3/ हरी के चरण-कमलों के शहद के ऊपर मेरा मन भँवर की तरह मस्त है, मुझे नित्य इस की ही प्यास है / हे परमात्मा ! नानक पपीहे (पक्षी) को अपनी मेहर का जल दो, जिससे मेरा तेरे ‘नाम’ में निवास हो जाए // 4/3// रचना: गुरु नानक देव जी, राग: धनासरी, (किर्तन सोहिला) SGGS-Page.13
शरीर काम क्रोध से भरा हुआ है, सच्चे संतों से मिलने से इनका नाश हो जाता है / धुर से लिखी वाणी अनुसार गुरु को प्राप्त किया है, तथा 'मन' प्रेम-मंडल में टिक गया है//१//सच्चे संतों के आगे हाथ जोड़ो, उनकी दंडोत वंदना करो,यह बहुत बड़ा पुण्य है //१//केन्द्रीय भाव//पापियों ने हरी के रस का स्वाद नहीं चखा है, उनके अन्दर अहंकार का काँटा है, जैसे-जैसे वह चलते है, यह काँटा उनको चुभता है, वह दुःख पाते हैं तथा... वो सिर के ऊपर मौत का डंडा सहते है //२//हरी के भक्त हरी के नाम में लीन रहते हैं, उनके जन्म-मरण का दुःख व भय दूर हो जाता है, उन्होंने नाश रहित परमात्मा प्राप्त कर लिया है, उनकी सृष्टि के सभ भागों में शुशोभित होती है //३//मैं गरीब व् निमाना हूँ , हे प्रभु ! मैं तेरा हूँ , मेरी रक्षा करो, हे हरी ! तूं बड़ों से बड़ा है, दास नानक के लिए 'नाम' ही सहारा है, हरी के नाम करके ही सुख मिलता है //४//४//
रचना: गुरु राम दास जी, राग: गोड़ी पुरबी, बाणी: कीर्तन सोहेला,SGGS पेज.13

मेरे मित्रो ! सुनों ! मैं बेनती करता हूँ कि सच्चे संतों की सेवा का यह अच्छा समय है / यहाँ प्रभु का 'नाम' का लाभ कमा के ले जाओगे तो आगे परलोक में बसना सुखदायी होगा //१// दिन-रात उम्र घट रही है, हे मन ! गुरु से मिलकर सारे कार्य पूरे कर लो //२//केन्द्रीय भाव// यह दुनिया विषय-विकारों व भ्रमो में डूब रही है, प्रभु को जानने वाले का पार-उतारा हो जाता है, जिसको प्रभु जगाकर यह 'नाम-रस' का ध्यान दिलाता है, ...उस ने ब्यान न हो सकने वाले प्रभु की कथा जान ली है //२// वही कार्य करो जिसके लिए तुम आए हो, गुरु द्वारा परमेश्वर मन में आ बसता है, अपने ह्रदय में सहज ही सुख का निवास पा लो, ऐसे फिर से जन्म-म्रत्यु का फेरा नहीं होगा //३// हे दिलों को जानने वाले सर्व-व्यापी कर्ता पुरुख ! मन की मुराद पूरी करने वाले , दास नानक, तुमसे यह सुख मांगता है कि मुझे सच्चे संतों के चरणों की धूल दो //४//५//

अनंदु साहिब ।

 रामकली महला ३
‎"जिस मनुष्य ऊपर परमात्मा मेहर (कर्पा) की निगाह रखता है , वो मनुष्य परमात्मा की सिफत-सलाह, परमात्मा ka 'नाम' अपने अन्दर बसाता है / 'नाम' की बरकत से मनुष्य के अन्दर आत्मक आनंद पैदा होता है /" (भाव-अर्थ )

"ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਉਤੇ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਮੇਹਰ ਦੀ ਨਿਗਾਹ ਰਖਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਸਿਫਤ-ਸਲਾਹ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਆਪਣੇ ਮੰਨ ਵਿੱਚ ਵਸਾਂਦਾ ਹੈ / ਨਾਮ ਦੀ ਬਰਕਤ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਅੰਦਰ ਆਤਮਕ ਅਨੰਦੁ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ /" (ਭਾਵ-ਅਰਥ)
 3//
ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬਾ ਕਿਆ ਨਾਹੀ ਘਰਿ ਤੇਰੈ ॥ ਘਰਿ ਤ ਤੇਰੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਦੇਹਿ ਸੁ ਪਾਵਏ ॥ ਸਦਾ ਸਿਫਤਿ ਸਲਾਹ ਤੇਰੀ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਵਸਾਵਏ ॥ ਨਾਮੁ ਜਿਨ ਕੈ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਵਾਜੇ ਸਬਦ ਘਨੇਰੇ ॥ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਚੇ ਸਾਹਿਬ ਕਿਆ ਨਾਹੀ ਘਰਿ ਤੇਰੈ ॥੩॥
6//
सदा कायम रहने वाले प्रभु के चरणों की लग्न के आंनद के बिना यह मानव शरीर बे-सहारा सा ही रहता है । प्रभु के चरणों की प्रीति के बिना बे-सहारा हुआ यह शरीर जो कुछ करता है, बेकार कार्य ही करता है ।६। {ਪੰਨਾ 917}Cont...

    [प्रकृति का संतुलन]

    आज के विज्ञानिक युग में नई पीढ़ी सोचती है कि वह अपने ज्ञान से विश्व को कहाँ से कहाँ पहुंचा रही है । वह प्रकृति के हर रुप को बदलने की कोशिश मे लगी है । हम नदियों की धारा की दिशा को बदलने, वनस्पति को मनच्रहा रुप देने और द...ो भिन्न पौधों को जोड़ कर नई किस्में उगाने की कोशिश कर रहे हैं । जलवायु में परिवर्तन, प्रकृति का दुरपयोग और प्रदूष्ण अपने स्वभाविक चक्र से अपनी क्षतिपुर्ति और पुनर्जीवन लाती है । उसके पीछे एंक सुक्षम संतुलन काम करता है । हमारी दखलंदाजी से यह संतुलन टूट जाता है ।

    आभार

    'बिजली' से संबंधित व शिक्षित वयक्ति अच्छी तरह जानते हैं कि इस लाइन में 'अर्थ' की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है| इसके बगैर बिजली के क्षेत्र में विकास मायने नहीं रखता | 'अर्थ' यानि पृथ्वी | पृथ्वी के इलावा चार नेचुरल तत्व हैं पानी, आग, हवा और स्पेस (आकाश) | यहाँ तक कि विज्ञान भी इन की सहायता लिए बगैर कोई विकास नहीं कर सकता | हमारा शरीर भी इन्हीं तत्वों से बना है | सो हमें इस कुदरती नियम के अधीन रह कर गंभीरता से सोचना और समझना होगा कि इस नैचुरल ब्यूटी को बनाने वाले की कितनी कदर या आभार प्रगट करते हैं ?

    रहरासि साहिब (सो दर...)

    वो दर कैसा है ? व वो घर कैसा है ? जहाँ बैठ कर तूं सभी कासंभाल कर रहा है / तेरे बेशुमार किस्म के अनगिनत संगीतग्य साज बजते हैं व अनेकोंही तेरे बजाने वाले हैं / तुझे गाने वाले हैं तेरे कई गायक अनेकों राग-रागनी सहित, / तुझे गाते हैं, हवा, पानी व आग / गा रहा हैतेरे दर पर धर्म अधिकारी बैठ / तुझे गाते हैं चित्र व गुप्त, जो जो लिखना जानते हैं वजिनकी लिखत धर्म राज विचारता है, सब / तुझे गाते हैं, तेरे सजाये हुए सदैवसुन्दर शिवजी, ब्रह्मा व देवी आदि / तुझे गा रहे हैं अपने सिंघासनऊपर बैठे इन्दर अपने देविओं की मंडलियों सहित / तेरी शोभा कर रहे हैं, समाधियों में लीनजोगीश्वर व विचारों में लगे साधू लोग / तुझे गाते हैं, संजमशील, सच में विचरने वाले, संतुष्ट पुरुष / व जसकरते हैं ताकतवर योधा / तेरी ऊपमा करते हैं, बड़े बड़े ऋषि, सहित सारे जुगों केवेधों को पढ़ने वाले विद्वान / तुझे गाती हैं, स्वर्ग, मात व पाताल लोक की मनमोह लेने वाली सुंदरियाँ / तेरी कीर्ति करते हैं, तेरे पैदा किये हुएअमूल्य पदार्थ, सहित अठारह तीरथ / तुझे गाते हैं, बड़े-बड़े ज़ोर वालेबलवान योधे, तुझे गाती हैं, चारों तरह की जीवरचनाएं / तुझे गाता है, सारा ब्रामंड, उसके अलग अलग भाग, तुझे गाते हैं, देश, जो तुमने जगह-जगह टिकाके रखे हैं / तुझे वही गाते हैं, जो तेरे भक्त हैं, जो तुझे अच्छे लगते हैतथा जो प्रेम-मयी आनंद में तेरी मत से रंगे हैं / और भी अनेक तुझे गाते हैं जोमेरे ध्यान में नहीं आ रहे , नानक, उनके बारे में क्याविचार कर सकता है /
    वो मालिक सच्चा है, उसकी प्रशंसा सच्ची है, वो सदा कायम रहने वाला है / जिस ने इस सृष्टि की रचना की है, वो अब भी है, सदा होगा, ना वो जाता है ना जाएगा/ जिस ने अनेकों रंग व कई तरह की माया रूप सृष्टि साज़ी है/ वो अपनी प्रशंसा से आपही उसकी संभाल करता है / जो उसको भाता है वही करता है, उसको हुकुम नहीं किया जासकता / वो बादशाह है, बादशाहों का मालिक है, हे नानक ! हमें उसकीरज़ा में रहना बनता है //१//
    SGGS , रचना: श्री गुरु नानक देव जी, राग: आसा, बाणी: रहरासि साहिब (सो दर...) पन्ना:14
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    हे मेरे बड़े मालिक ! तुन अथाह गहरा गुणों का खजाना है / कोई नहीं जानता, तेरा कितना ज्यादा बड़ा पसारा है //१// केंद्रीय भाव//
    हर कोई तेरे बारे में सुन कर तुझे बड़ा कहता है / तुन कितना बड़ा है ? वहीबताये जिसने तुझे देखा है / तेरा कोई मूल्य नहीं डाल सकता, न ही तुझे ब्यान कर सकते है //१//
    वदों को जानने वालों ने मिल कर तेरी सूरत पर विचार किया / सब मूल्य डालने वालों ने तेरा मूल्य डाला /अनेकों ब्रहम बिरति जोड़ने वाले, गुरुओं के गुरु से भीतेरी तिल मात्र प्रशंसा ब्यान नहीं कर सकता //२//
    सब सच्चाईयाँ, सारे ताप, सब नेकियाँ तथा करामाती पुरुषों की प्रशंसा, तेरेबिना किसी ने ऐसी रिधि-सीधी प्राप्त नहीं की है / जब तेरी मेहर से मिलती हैं तो छुपाई नहीं जा सकती //३//
    कहने वाला बेचारा क्या है ? तेरी सिफ्तों के भंडारे भरे पड़े हैं / जिस को तूं देता है , उसकी अपनी क्या तदबीर है/ हे नानक ! वो उंचा व संवारने वाला है //४//२//
    SGGS रचना: गुरु नानक देव जी, राग: आसा, बाणी:रहरासि, पन्ना 9
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    हे माई ! वो नाम क्यों भूलुं ? वो मालिक सच्चा है //1//केन्द्रीय भाव//
    प्रभु का ‘नाम’ लेता हूँ, तो जिवित रहता हूँ, उसे भूल जाऊँ तो मर जाऊ / सच्चा नाम लेना बहुत कठिन है / पर जो सच्चे नाम की भूख लग जाए तो उस भूख से सारे दुख समाप्त हो जाते हैं // 1//
    सच्चे नाम की थोड़ी बहुत उपमा करते हुए लोग हार गए, पर उस का मुल्य ना पा सके/ यदि सभी मिलकर भी कहने लगें  तो भी ना वो बड़ा हो जाएगा ना घटेगा //2//
    वो मरता नहीं, उस के लिए कोई शौक नहीं, वो दिये जा रहा है, उसकी सामग्री समाप्त नहीं होती/ उसका विशेष गुण यही है कि उस जैसा और कोई नहीं / ना कोई हुआ है व ना कोई होगा //3//
    जितना बड़ा तूं आप है, उतनी बड़ी तेरी बक्शीश है, जिस ने दिन किया है फिर रात भी बना दी है / ऐसे मालिक को जो भुलाते हैं, वो कमजात हैं, हे नानक ! ‘नाम’ के बिना लोग अति नीच हैं //4//4//
    SGSS. रचना: क्षी गुरु नानक देव जी, राग: आसा, बाणी: रहरासि साहिब, पन्ना 15
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    हे मेरे मित्र गुरदेव जी ! मुझे राम के नाम के साथ रोशन कर दो / गुरु उपदेश द्वारा मिला नाम, मेरे प्राणों का मित्र है तथा हरि का जस मेरी रीति है //१// केन्द्रीय भाव /
    हे हरी के भगत ! सच्चे गुरु व सच्चे पुरुष गुरदेव जी ! आपके पास विनती करता हूँ कि मैं कीड़ा व नाचीज सतगुरु कि शरण ली है , किरपा कर के मुझे हरि के नाम की रोशनी दो //१//

    हरि के भक्तों के बड़े भाग्य हैं, जिनको हरि, केवल हरि के ऊपर भरोसा व हरि की ही प्यास है / ओह हरि ! जी हाँ हरि का 'नाम' मिलने से सभी तृप्त हो जाते हैं / सच्ची संगत में मिलने से अच्छे गुणों का प्रकाश होता है //२//

    ... जिन्हों ने हरि, हरि, हरि का रस ,नाम नहीं पाया , वो अभाग्य यम के पास जाते हैं / धिक्कार है, जो सच्चे गुरु की शरण व में नहीं आये / लानत है, उनकी जिंदगी को तथा उनके जीने को //३//

    जिन हरि के भक्तों को सच्चे गुरु की संगत प्राप्त हुई है, उनके मस्तिष्क ऊपर धुर से ही उत्तम लेख लिखे हैं, सच्ची संगत धन है , मुबारक है, जहां से हरी का 'नाम' प्राप्त हुआ है, हे नानक ! हरि के भक्तों को मिल कर हरि का नाम प्रकाश हुआ है //४//४//

    SGGS रचना: चोथी पातशाही श्री गुरु राम दास जी: राग: गुजरी, बाणी: रहरासि साहिब, अंक: 10
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    रहरासि साहिब (सो पुरुख ...)

    वह परमात्मा माया रहित है, बेदाग़ है, पहुँच से बाहर तथा बेअंत है /
    हे प्रभु सच्चे करतार जी  ! तुम्हें सभी सिमरते हैं /
    सारे जीव-जंतु तुम्हारे  ही हैं, तथा तुम्हीं उनके ऊपर बक्शीश करने वाले हो /
    प्रभु, आप ही मालिक हो, आप ही सेवक हो /
    हे नानक ! जीव बेचारा क्या है ? //१//
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    प्रभु जी !  तुम एक ही सर्व व्यापक ,सब जीवों के ह्रदय अन्दर हो /
    एक दाते हैं, एक भिखारी हैं, यह सब तेरे  आश्चर्यजनक कौतक हैं /
    आप स्वयं ही दाता व भोगने वाले हो जी / मैं तुम्हारे बिना किसी को नहीं जानता /
    हे जगत से पूर्ण निर्गुण रूप जी ! आप बेअंत और बे रूकावट हो, मैं तुम्हारे किस-किस गुण को ब्यान करूँ //२//
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    जो प्रभु जी, आप को सिमरते हैं वो प्राणी जगत में सुखी रहते  हैं /
    वो मुक्त हो गये, जी हाँ वो बन्धनों से आजाद हो गये जिन्होंने प्रभु को याद किया , उनकी यमों की फांसी कट गयी /
    जिन्होंने  डर से मुक्त हरि जी का सिमरन किया है, वो, उनका सब डर दूर कर देगा /
    जिन्हों ने मेरे प्रभु का नाम सिमरन किया है, वो हरि-प्रभु में समां जायेंगे /
    वो धन्य हैं, उन्हें मुबारक है, जिन्होंने प्रभु का 'नाम' सिमरन किया है; दास नानक उन पर बलिहार जाता है /३/
    SGGS रचना: श्री गुरु राम दास जी, राग: आसा , बाणी रहरासि साहिब (सो पुरुख...)
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    हे बेअंत प्रभु ! तेरी भक्ति , जी हां तेरी भक्ति के भण्डार भरे पढ़े हैं /
    हे बेअंत वाहेगुरु ! तेरे भक्त ,तेरे अनेकों भक्त, तुझे अनेकों तरीकों से सलाहते हैं /
    हे प्रभु जी ! अनेक ही, तेरे अनेक अनेक प्रकार की पूजा, तप व जप करते हैं /
    अनेक ही तेरे भक्त, अनेकों ही कई तरह की सिमिरत व शास्त्र पढ़ते है, व छः तरह के धर्म-कर्म करते हैं /
    हे नानक ! वो भक्त, वो भक्त बहुत अच्छे हैं, जो मेरे हरि करतार को अच्छे लगते हैं /
    SGGS , रचना: श्री गुरु राम दास जी, राग:आसा, बाणी: रहरासि साहिब (सो पुरुख.... भाग: ४)
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    हे दुनिया को सर्जना करने वाले ! आप आदि समय की पूर्व हस्ती, सर्व श्रेष्ट हो , तुम्हारे जितना कोई नहीं /
    तुम जुगों जुगों  से एक ही हो; तुम हमेशा-हमेशा से उसी तरह हो, जैसे तुम सदैव स्थिर सर्जन हार  हो /
    तुम्हें जो कुछ अच्छा लगता है वो हो जाता है, तुम जो आप करते हो , वही होता है /
    तुमने स्वयं ही सारे जगत की रचना की है, तथा आप ही इस जगत को नाश कर सकते हो /
    दास नानक सर्जन हार के गुण गाता है , जो सब को जानने वाला है /
     SGGS , रचना: श्री गुरु राम दास जी, राग:आसा, बाणी: रहरासि साहिब (सो पुरुख.... भाग: ५ )
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    (तित॒ सरवरड़ै...)
    हे मुर्ख मन ! तुम "एक" को नहीं सिमरते / हरि को भुलने से तुम्हारे गुण नाश हो जाते हैं //केद्रीय भाव//
    मनुष्य का उस संसार-समुन्द्र में निवास है जहाँ जल और अग्नि उसी प्रभू ने बनाए है /जहां मोह का रूप धारण किए किचड़ में फ़स कर मेरे पैर आगे नहीं बढ़ पा रहे, मैं उनको उस के अंदर डूबते हुए देखता हूँ //१//
    ना मैं जती-सती हूँ तथा ना ही इस बारे में पढ़ा है, मुर्ख व अज्ञानता वाला जन्म हुआ है / नानक उनकी शरण में रहने का ईच्छुक है, जिन्होंने तुम्हें भुलाया नहीं है //२//३//
    SGGS, रचना: क्षी गुरु नानक देव जी, राग: आसा, वाणी: रहरासि साहिब (तित॒ सरवरड़ै...)
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    (भई परापत .....) 
    हे जीव !  इस समय तुम  संसार-समुन्द्र को पार करने के प्रबंध में लग जा,/  माया के स्वाद में तेरा  जीवन   व्यर्थ  जा रहा है // केन्द्रीय भाव // १//
    हे जीव ! तुझे मनुष्य देह (शरीर) मिली है / यह अब तेरी परमात्मा को मिलने की बारी (समय) है / और कार्य  तेरे किसी भी काम के नहीं / सत- संगत में  में मिल बैठ,तथा प्रभु का 'नाम' सिमर //१//
    मैंने  सिमरन,जप- तप , (सख्त कर्म )संजम, (स्वयं पर काबू ) तथा धर्म की कमाई  नहीं की / सच्चे साधुओं की सेवा नहीं की / हरि प्रभु को नहीं जान पाए  /
    हे नानक ! ऐसे कह लो कि ये मेरे नीच कर्म हैं / मैं आप कि शरण में हूँ , मेरी लाज रखो //२// ४//
    SGGS , रचना: पांचवीं पातशाही श्री गुरु अर्जन देव जी, राग आसा, वाणी: रहरासि साहिब (भई परापत .....)
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    (तूँ करता...)

    तूँ सच्चा सर्जनहार मेरा मालिक है / वही होता है, जो तुझे अच्छा लगता है ; मैं वही प्राप्त करता हूँ जो तूँ देता है //केन्द्रीय भाव //
    सारी रचना तेरी है, सब ने तेरा सिमरन किया है/ जिन पर तू कर्पा करता है , उन्हें 'नाम रत्न' प्राप्त होता है / गुरमुखों (गुरु का कहना मानने वाले ) ने तुझे प्राप्त कर लिया है व मनमुखों ( अपनी मन मर्जी से चलने वाले ) ने तुझे खो दिया है / तूँ आप ही किसी को अपने से ब...िछोड (दूरी) देता है व आप ही अपने से मिला लेता है //१//
    तूँ दरिया जैसे विशाल है, सभी तेरे में ही हैं / तेरे बगैर कोई दूसरा नहीं है / जीव-जंतु सब तेरे ही खेल हैं / जिन के भाग्य में बिछोड़ा (दूरी) है , वो मिल के भी बिछड़ जाते हैं तथा ज जिनके कर्मों में मिलना है, उनका तेरे साथ मिलना होता है //२//
    जिसको तूँ अपनी हकीकत बताता है, सिर्फ वही मनुष्य जानता है / वह सदा ही प्रभु के गुण वर्णन करता है / जिस ने हरि का सिमरन किया है, उसको सुख मिला है / वह सहज ही हरि नाम में समां जाता है //३//
    तूँ आप ही रचना कर्ता है तथा तेरे करने से ही सब कुछ होता है / तेरे बिना और कोई दूसरा नहीं है / तूँ रचना रच-रच कर देखता व उसकी जानकारी रखता है / हे दास नानक ! उस प्रभु का भेद गुरु द्वारा ही प्रकट होता है //४//२//
    SGGS रचना: चोथी पातशाही श्री गुरु राम दास जी, राग: आसा. बाणी: रहरासि साहिब (तूँ करता...)
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    पा.१० कबियोबाच बेनती //चौपई //

    [प्रार्थना]
    हे परमात्मा ! अपना हाथ देकर मेरी रक्षा करो / मेरे मन की इच्छा पूरी हों /
    तुम्हारे चरणों में मेरा मन लगा रहे / मुझे अपना जान कर पालना करो /१//
    हे करतार ! हमारे सभी दुश्मनों को मार, हमें अपना हाथ देकर बचा लो /
    मेरे परिवार तथा सभी सिक्ख-सेवक सुखी रहें //२//
    ... अपना हाथ देकर हमारी रक्षा करें, सभी दुश्मनों को आज ही मार दें / हमारी आशा पूर्ण हो, तुम्हारे भजन की प्यास लगी रहे //३//
    तुम्हें छोड़ मैं और किसी का सिमरन न करूँ / जो मुराद चाहूँ वो तुम्हीं से प्राप्त करूँ //
    हमारे सिक्ख-सेवकों को तार (मुक्त ) कर दो, और हमारे दुश्मनों को चुन-चुन कर मार दो //४//
    हे परमात्मा ! अपना हाथ देकर हमें उबार (डूबने से बचा) लो / मरने के समय का डर दूर कर दो /
    हमेशा हमारा पक्ष लो / हे खड़क के निशान वाले प्रभु जी ! हमारी रक्षा करो //५//
    हे रक्षक ! हे मेरे मालिक ! संतों के सहायता करने वाले, प्रीतम जी ! हमारी रक्षा करो /
    हे अनाथों के साजन ! दुष्टों का नाश करने वाले ! आप चोदहं लोक ( सारी सृ...ष्टि ) के मालिक हो //६//
    समय पा कर ब्रह्मा ने शरीर धारा / समय पा कर शिव जी ने जन्म लिया /
    समय पा कर विष्णु प्रकाश हुआ / यह सभी समय का तमाशा है //७//
    जिस समय ने शिव जोगी बनाया / जिससे वेदों के राजा ब्रह्मा जी हुए /
    जिस समय ने सारा संसार संवारा / हमारी उसको नमस्कार है //८//
    जिस 'समय' (काल) ने सारे जगत को बनाया है, देवते, दैंत, राक्षस पैदा किये  हैं, जो आरम्भ से अंत तक 'एक' ही अवतार है, उसी को हमारा गुरु समझो //९//
    हमारा उस परमात्मा को  नमस्कार है ! जिसने सारी प्रजा  स्वयं आप संवारी है, / जिसने सेवकों को सब गुण व सुख दिए हैं तथा शत्रुओं को एक ही पल में 'वध' कर देता है //१०//
    वह परमात्मा हर एक के दिल की जानता है / भले-बुरे के दुःख-दर्द पहचानता है / एक चींटी से लेकर हाथी तक , सब के ऊपर दया की दृष्टि रख कर प्रसन्न होता है //११//
    भगतों के दुखी होने पर स्वयं दुखी हो जाता  है / सच्चे साधुओं के सुखी होने पर सुखी होता है / वह एक-एक के दर्द को पहचानता है/ हर एक के अंदरूनी भेद को जानता है //१२// 
    Cont... 

    सचि खंडि (सच खण्ड) क्या है ?

    इस
    परमात्मा
    अवस्था में (भाव, प्रमात्मा के साथ एक रुप हो जाने वाली अवस्था में) मनुष्य को अन्नत खण्ड, अन्नत मण्डल तथा असीम ब्रह्मणड दिखते हैं (इतने अन्नत कि) यदि कोई मनुष्य उसका कथन करने लगे तो उनका अंत नहीं होता इस अवस्था में अन्नत भवन तथा आकार दिखते हैं, (जिन सब में) उसी तरह व्यहवार चल रहा है जैसे प्रमात्मा का हुक्म होता है, (भाव, इस अवस्था में पहुंच कर मनुष्य को प्रत्येक स्थान पर परमात्मा की रज़ा काम कर रही दिखाई देती है) (उस को प्रत्यक्ष दिखाई देता है कि) परमात्मा विचार करके (सब जीवों की) संभाल करता है तथा खुश होता है गुरू नानक देव जी कहते हैं कि यह अवस्था ब्यान नहीं हो सकती, अनुभव ही की जा सकती है के साथ एक रुप हो चुकी आत्मिक अवस्था में पहुंचे हुए जीव पर परमात्मा की कृपा का दरवाजा खुलता है, उसको सब अपने ही अपने दिखाई देते हैं, हर तरफ प्रभु ही दिखाई देता है ऐसे मनुष्य का ध्यान सदा प्रभु की सिफत-सालाह (गुण-कीर्तन) में जुड़ रहता है अब माया उसे ठग नहीं सकती, आतमा बलवान हो जाती है, प्रभु से दूरी नहीं हो सकती अब उसको प्रत्यक्ष प्रतीत होता है कि अन्नत कुदरत की रचना कर के प्रभु सबको अपनी रज़ा में चला रहा है, तथा सब पर कृपा दृष्टी कर रहा है (जपु जी साहिब)