इस
परमात्मा अवस्था में (भाव, प्रमात्मा के साथ एक रुप हो जाने वाली अवस्था में) मनुष्य को अन्नत खण्ड, अन्नत मण्डल तथा असीम ब्रह्मणड दिखते हैं । (इतने अन्नत कि) यदि कोई मनुष्य उसका कथन करने लगे तो उनका अंत नहीं होता । इस अवस्था में अन्नत भवन तथा आकार दिखते हैं, (जिन सब में) उसी तरह व्यहवार चल रहा है जैसे प्रमात्मा का हुक्म होता है, (भाव, इस अवस्था में पहुंच कर मनुष्य को प्रत्येक स्थान पर परमात्मा की रज़ा काम कर रही दिखाई देती है) (उस को प्रत्यक्ष दिखाई देता है कि) परमात्मा विचार करके (सब जीवों की) संभाल करता है तथा खुश होता है । गुरू नानक देव जी कहते हैं कि यह अवस्था ब्यान नहीं हो सकती, अनुभव ही की जा सकती है । के साथ एक रुप हो चुकी आत्मिक अवस्था में पहुंचे हुए जीव पर परमात्मा की कृपा का दरवाजा खुलता है, उसको सब अपने ही अपने दिखाई देते हैं, हर तरफ प्रभु ही दिखाई देता है । ऐसे मनुष्य का ध्यान सदा प्रभु की सिफत-सालाह (गुण-कीर्तन) में जुड़ रहता है । अब माया उसे ठग नहीं सकती, आतमा बलवान हो जाती है, प्रभु से दूरी नहीं हो सकती । अब उसको प्रत्यक्ष प्रतीत होता है कि अन्नत कुदरत की रचना कर के प्रभु सबको अपनी रज़ा में चला रहा है, तथा सब पर कृपा दृष्टी कर रहा है । (जपु जी साहिब)
परमात्मा अवस्था में (भाव, प्रमात्मा के साथ एक रुप हो जाने वाली अवस्था में) मनुष्य को अन्नत खण्ड, अन्नत मण्डल तथा असीम ब्रह्मणड दिखते हैं । (इतने अन्नत कि) यदि कोई मनुष्य उसका कथन करने लगे तो उनका अंत नहीं होता । इस अवस्था में अन्नत भवन तथा आकार दिखते हैं, (जिन सब में) उसी तरह व्यहवार चल रहा है जैसे प्रमात्मा का हुक्म होता है, (भाव, इस अवस्था में पहुंच कर मनुष्य को प्रत्येक स्थान पर परमात्मा की रज़ा काम कर रही दिखाई देती है) (उस को प्रत्यक्ष दिखाई देता है कि) परमात्मा विचार करके (सब जीवों की) संभाल करता है तथा खुश होता है । गुरू नानक देव जी कहते हैं कि यह अवस्था ब्यान नहीं हो सकती, अनुभव ही की जा सकती है । के साथ एक रुप हो चुकी आत्मिक अवस्था में पहुंचे हुए जीव पर परमात्मा की कृपा का दरवाजा खुलता है, उसको सब अपने ही अपने दिखाई देते हैं, हर तरफ प्रभु ही दिखाई देता है । ऐसे मनुष्य का ध्यान सदा प्रभु की सिफत-सालाह (गुण-कीर्तन) में जुड़ रहता है । अब माया उसे ठग नहीं सकती, आतमा बलवान हो जाती है, प्रभु से दूरी नहीं हो सकती । अब उसको प्रत्यक्ष प्रतीत होता है कि अन्नत कुदरत की रचना कर के प्रभु सबको अपनी रज़ा में चला रहा है, तथा सब पर कृपा दृष्टी कर रहा है । (जपु जी साहिब)
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