जिस घर (मन) में हरी का जसकिया जाता है तथा करतार की विचार होती है , उसीमन में आनंद मयी शब्द गाओ तथा सिरजनहार का सिमरन करो / आप मेरे निर्भय हरी का जसगाओ / मैं कुर्बान हूँ ,जिस कारण सदा सुख होता है/ हरसमय जीवों की संभाल हो रही है, वो हमारी भी संभाल करेगा/ उस के दान का मूल्य नहीं पड़ सकता है/ उस दाते का लेखा-जोखा कौन कर सकता है? हरी के मेल का समय व संवत लिखा हुआ है, आप मिलकर तेल चढाओ / हे सज्जनों ! आशीर्वाद दो, जिससे मालिक से मेल हो जाए / हर घर में मौत का सन्देशहै, हमेशा न्योते आते हैं/ बुलाने वाले हरी को याद करें , हे नानक ! उस मिलाप के दिन आएं//1//
पहली पातशाही गुरु नानक देव जीआसा राग में उच्चारण करते हैं कि ६ (छे ) शास्त्र हैं, उनकोरचने वाले छे गुरु हैं तथा छे तरह के उनके उपदेश है / जिन गुरुओं का एक परमात्माहै, जिसके अनेक रूप हैं/ हे बाबा ! जिस मत में करतार का जस होता है, उस को मन में टखने में तेरी प्रशंसा है / विषयों के चसे ,फिर घडी, पहरतथा तिथि व वार बनाते हैं तथा दिनों का महीना हो जाता है / सूरज तो एक है , उसकी अनेक ऋतू होती हैं / हे नानक ! ऐसे ही सर्जनहार केकई सरूप हैं / /2//
जानो, आकाश-मयी थाल है, सूरज और चाँद दीपक बने हैं, तारों का समूह मोती हैं / चन्दन की सुगंध धूप है, हवा चवर कर रही है / हे ज्योति स्वरूप ! सारी वनस्पति मानों फूल हैं /1/ यह कैसी आरती हो रही है ! हे भय नाशवंत ! तेरी आरती एक-रस, निरंतर / ईलाही शब्द मानों, नगाड़े बज़ा रहे हैं /1/ केंद्रीय भाव / तेरे हजारों नेत्र हैं, पर असलियत में तेरी कोई आँख नहीं / तेरे हजारों स्वरूप हैं, पर तेरा एक विशेष स्वरूप नहीं / तेरे हजारों ही निर्मल चरण हैं, पर तेरा एक भी पैर नहीं / तुँह नाशहीन है, पर तेरी हजारों नाशें हैं / तेरे इस कौतुक ने मेरा मन मोह लिया है /2/ सबके अन्दर ज्योति है, यह ज्योति वे स्वयं है / उसकी चाँदनी से सब में रोशनी है / गुरु की शिक्षा से ये ज्योति प्रकट होतीं है / जो उसको मन्जूर वही आरती है /3/ हरी के चरण-कमलों के शहद के ऊपर मेरा मन भँवर की तरह मस्त है, मुझे नित्य इस की ही प्यास है / हे परमात्मा ! नानक पपीहे (पक्षी) को अपनी मेहर का जल दो, जिससे मेरा तेरे ‘नाम’ में निवास हो जाए // 4/3// रचना: गुरु नानक देव जी, राग: धनासरी, (किर्तन सोहिला) SGGS-Page.13
शरीर काम क्रोध से भरा हुआ है, सच्चे संतों से मिलने से इनका नाश हो जाता है / धुर से लिखी वाणी अनुसार गुरु को प्राप्त किया है, तथा 'मन' प्रेम-मंडल में टिक गया है//१//सच्चे संतों के आगे हाथ जोड़ो, उनकी दंडोत वंदना करो,यह बहुत बड़ा पुण्य है //१//केन्द्रीय भाव//पापियों ने हरी के रस का स्वाद नहीं चखा है, उनके अन्दर अहंकार का काँटा है, जैसे-जैसे वह चलते है, यह काँटा उनको चुभता है, वह दुःख पाते हैं तथा... वो सिर के ऊपर मौत का डंडा सहते है //२//हरी के भक्त हरी के नाम में लीन रहते हैं, उनके जन्म-मरण का दुःख व भय दूर हो जाता है, उन्होंने नाश रहित परमात्मा प्राप्त कर लिया है, उनकी सृष्टि के सभ भागों में शुशोभित होती है //३//मैं गरीब व् निमाना हूँ , हे प्रभु ! मैं तेरा हूँ , मेरी रक्षा करो, हे हरी ! तूं बड़ों से बड़ा है, दास नानक के लिए 'नाम' ही सहारा है, हरी के नाम करके ही सुख मिलता है //४//४//
रचना: गुरु राम दास जी, राग: गोड़ी पुरबी, बाणी: कीर्तन सोहेला,SGGS पेज.13
मेरे मित्रो ! सुनों ! मैं बेनती करता हूँ कि सच्चे संतों की सेवा का यह अच्छा समय है / यहाँ प्रभु का 'नाम' का लाभ कमा के ले जाओगे तो आगे परलोक में बसना सुखदायी होगा //१// दिन-रात उम्र घट रही है, हे मन ! गुरु से मिलकर सारे कार्य पूरे कर लो //२//केन्द्रीय भाव// यह दुनिया विषय-विकारों व भ्रमो में डूब रही है, प्रभु को जानने वाले का पार-उतारा हो जाता है, जिसको प्रभु जगाकर यह 'नाम-रस' का ध्यान दिलाता है, ...उस ने ब्यान न हो सकने वाले प्रभु की कथा जान ली है //२// वही कार्य करो जिसके लिए तुम आए हो, गुरु द्वारा परमेश्वर मन में आ बसता है, अपने ह्रदय में सहज ही सुख का निवास पा लो, ऐसे फिर से जन्म-म्रत्यु का फेरा नहीं होगा //३// हे दिलों को जानने वाले सर्व-व्यापी कर्ता पुरुख ! मन की मुराद पूरी करने वाले , दास नानक, तुमसे यह सुख मांगता है कि मुझे सच्चे संतों के चरणों की धूल दो //४//५//
पहली पातशाही गुरु नानक देव जीआसा राग में उच्चारण करते हैं कि ६ (छे ) शास्त्र हैं, उनकोरचने वाले छे गुरु हैं तथा छे तरह के उनके उपदेश है / जिन गुरुओं का एक परमात्माहै, जिसके अनेक रूप हैं/ हे बाबा ! जिस मत में करतार का जस होता है, उस को मन में टखने में तेरी प्रशंसा है / विषयों के चसे ,फिर घडी, पहरतथा तिथि व वार बनाते हैं तथा दिनों का महीना हो जाता है / सूरज तो एक है , उसकी अनेक ऋतू होती हैं / हे नानक ! ऐसे ही सर्जनहार केकई सरूप हैं / /2//
जानो, आकाश-मयी थाल है, सूरज और चाँद दीपक बने हैं, तारों का समूह मोती हैं / चन्दन की सुगंध धूप है, हवा चवर कर रही है / हे ज्योति स्वरूप ! सारी वनस्पति मानों फूल हैं /1/ यह कैसी आरती हो रही है ! हे भय नाशवंत ! तेरी आरती एक-रस, निरंतर / ईलाही शब्द मानों, नगाड़े बज़ा रहे हैं /1/ केंद्रीय भाव / तेरे हजारों नेत्र हैं, पर असलियत में तेरी कोई आँख नहीं / तेरे हजारों स्वरूप हैं, पर तेरा एक विशेष स्वरूप नहीं / तेरे हजारों ही निर्मल चरण हैं, पर तेरा एक भी पैर नहीं / तुँह नाशहीन है, पर तेरी हजारों नाशें हैं / तेरे इस कौतुक ने मेरा मन मोह लिया है /2/ सबके अन्दर ज्योति है, यह ज्योति वे स्वयं है / उसकी चाँदनी से सब में रोशनी है / गुरु की शिक्षा से ये ज्योति प्रकट होतीं है / जो उसको मन्जूर वही आरती है /3/ हरी के चरण-कमलों के शहद के ऊपर मेरा मन भँवर की तरह मस्त है, मुझे नित्य इस की ही प्यास है / हे परमात्मा ! नानक पपीहे (पक्षी) को अपनी मेहर का जल दो, जिससे मेरा तेरे ‘नाम’ में निवास हो जाए // 4/3// रचना: गुरु नानक देव जी, राग: धनासरी, (किर्तन सोहिला) SGGS-Page.13
शरीर काम क्रोध से भरा हुआ है, सच्चे संतों से मिलने से इनका नाश हो जाता है / धुर से लिखी वाणी अनुसार गुरु को प्राप्त किया है, तथा 'मन' प्रेम-मंडल में टिक गया है//१//सच्चे संतों के आगे हाथ जोड़ो, उनकी दंडोत वंदना करो,यह बहुत बड़ा पुण्य है //१//केन्द्रीय भाव//पापियों ने हरी के रस का स्वाद नहीं चखा है, उनके अन्दर अहंकार का काँटा है, जैसे-जैसे वह चलते है, यह काँटा उनको चुभता है, वह दुःख पाते हैं तथा... वो सिर के ऊपर मौत का डंडा सहते है //२//हरी के भक्त हरी के नाम में लीन रहते हैं, उनके जन्म-मरण का दुःख व भय दूर हो जाता है, उन्होंने नाश रहित परमात्मा प्राप्त कर लिया है, उनकी सृष्टि के सभ भागों में शुशोभित होती है //३//मैं गरीब व् निमाना हूँ , हे प्रभु ! मैं तेरा हूँ , मेरी रक्षा करो, हे हरी ! तूं बड़ों से बड़ा है, दास नानक के लिए 'नाम' ही सहारा है, हरी के नाम करके ही सुख मिलता है //४//४//
रचना: गुरु राम दास जी, राग: गोड़ी पुरबी, बाणी: कीर्तन सोहेला,SGGS पेज.13
मेरे मित्रो ! सुनों ! मैं बेनती करता हूँ कि सच्चे संतों की सेवा का यह अच्छा समय है / यहाँ प्रभु का 'नाम' का लाभ कमा के ले जाओगे तो आगे परलोक में बसना सुखदायी होगा //१// दिन-रात उम्र घट रही है, हे मन ! गुरु से मिलकर सारे कार्य पूरे कर लो //२//केन्द्रीय भाव// यह दुनिया विषय-विकारों व भ्रमो में डूब रही है, प्रभु को जानने वाले का पार-उतारा हो जाता है, जिसको प्रभु जगाकर यह 'नाम-रस' का ध्यान दिलाता है, ...उस ने ब्यान न हो सकने वाले प्रभु की कथा जान ली है //२// वही कार्य करो जिसके लिए तुम आए हो, गुरु द्वारा परमेश्वर मन में आ बसता है, अपने ह्रदय में सहज ही सुख का निवास पा लो, ऐसे फिर से जन्म-म्रत्यु का फेरा नहीं होगा //३// हे दिलों को जानने वाले सर्व-व्यापी कर्ता पुरुख ! मन की मुराद पूरी करने वाले , दास नानक, तुमसे यह सुख मांगता है कि मुझे सच्चे संतों के चरणों की धूल दो //४//५//
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