Monday, 30 July 2012

पा.१० कबियोबाच बेनती //चौपई //

[प्रार्थना]
हे परमात्मा ! अपना हाथ देकर मेरी रक्षा करो / मेरे मन की इच्छा पूरी हों /
तुम्हारे चरणों में मेरा मन लगा रहे / मुझे अपना जान कर पालना करो /१//
हे करतार ! हमारे सभी दुश्मनों को मार, हमें अपना हाथ देकर बचा लो /
मेरे परिवार तथा सभी सिक्ख-सेवक सुखी रहें //२//
... अपना हाथ देकर हमारी रक्षा करें, सभी दुश्मनों को आज ही मार दें / हमारी आशा पूर्ण हो, तुम्हारे भजन की प्यास लगी रहे //३//
तुम्हें छोड़ मैं और किसी का सिमरन न करूँ / जो मुराद चाहूँ वो तुम्हीं से प्राप्त करूँ //
हमारे सिक्ख-सेवकों को तार (मुक्त ) कर दो, और हमारे दुश्मनों को चुन-चुन कर मार दो //४//
हे परमात्मा ! अपना हाथ देकर हमें उबार (डूबने से बचा) लो / मरने के समय का डर दूर कर दो /
हमेशा हमारा पक्ष लो / हे खड़क के निशान वाले प्रभु जी ! हमारी रक्षा करो //५//
हे रक्षक ! हे मेरे मालिक ! संतों के सहायता करने वाले, प्रीतम जी ! हमारी रक्षा करो /
हे अनाथों के साजन ! दुष्टों का नाश करने वाले ! आप चोदहं लोक ( सारी सृ...ष्टि ) के मालिक हो //६//
समय पा कर ब्रह्मा ने शरीर धारा / समय पा कर शिव जी ने जन्म लिया /
समय पा कर विष्णु प्रकाश हुआ / यह सभी समय का तमाशा है //७//
जिस समय ने शिव जोगी बनाया / जिससे वेदों के राजा ब्रह्मा जी हुए /
जिस समय ने सारा संसार संवारा / हमारी उसको नमस्कार है //८//
जिस 'समय' (काल) ने सारे जगत को बनाया है, देवते, दैंत, राक्षस पैदा किये  हैं, जो आरम्भ से अंत तक 'एक' ही अवतार है, उसी को हमारा गुरु समझो //९//
हमारा उस परमात्मा को  नमस्कार है ! जिसने सारी प्रजा  स्वयं आप संवारी है, / जिसने सेवकों को सब गुण व सुख दिए हैं तथा शत्रुओं को एक ही पल में 'वध' कर देता है //१०//
वह परमात्मा हर एक के दिल की जानता है / भले-बुरे के दुःख-दर्द पहचानता है / एक चींटी से लेकर हाथी तक , सब के ऊपर दया की दृष्टि रख कर प्रसन्न होता है //११//
भगतों के दुखी होने पर स्वयं दुखी हो जाता  है / सच्चे साधुओं के सुखी होने पर सुखी होता है / वह एक-एक के दर्द को पहचानता है/ हर एक के अंदरूनी भेद को जानता है //१२// 
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