वो जमाना लद गया जब कोई समाज सेवक अपने प्यार, परिवार, जाति, राज्य, धर्म से उठकर देश के लिए सैनिक, पत्रकार, नेता, व क्रांतिकारी बन लड़ने, सत्यग्रह, जासूसी व फांसी पर चढ़ने को तैयार रहते थे, पर अब पैसे,नशा, ज़मीन, व्यापार व ओहदे की खातिर अपना ज़मीर तक बेच देते हैं। इन जन सेवकों से किसी प्रकार की देश भक्ति की उम्मीद करना अपने आप को धोखा देने के बराबर है।
और आज का जमाना यह है कि अपने ही देश की मिडिया चिल्ला-चिल्लाकर दुनिया को बता रही है कि हमारी औकात दस दिनों से अधिक लड़ने की नहीं है |
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एक वह भी जमाना था जब गुप्तचरों को भेजा जाता था पता लगाने के लिए कि शत्रु देश के पास कितने दिनों तक लड़ने की तैयारी है | और अगर अपने देश का कोई नागरिक ऐसी गुप्त जानकारी शत्रु देश को भेजता पकड़ा जाता, तो उसपर देशद्रोह का आरोप लगता और मृत्युदंड से कम की सजा नहीं होती |
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