Saturday, 27 June 2020

काल्पनिक चरित्र

#MyEditorial

प्रत्येक धार्मिक इतिहास की कहानियों में  परिकल्पनाओं (Fiction) का प्रभाव निश्चित है, इसमें कोई दो राय नहीं। पर जब हमें आज के वैज्ञानिक दौर में नई पीढ़ी तार्किक प्रश्नों के समक्ष अपने 50-70 दशक के अधूरे ज्ञान , जो कि स्कूल द्वारा पढ़ाई शिक्षा और मां-बाप व बुज़ुर्ग पुजारियों द्वारा सुनाई गई कथाओं के अंतर की समझ से सामने आई थी । 

इससे पहले कि हमें दुविधा और सच्चाई  में से मज़बूरी अथवा सहमती से किस का कहा माना जाए जिसकी समझ जबकि अब आने भी लगी है। जिस पर डिबेट की भी कोई गुंजाइश नहीं लगती। 

साथ ही यह कहने पर भी संकोच नहीं कि इन कथा कहानियां जिनके सार में बहुत सी शिक्षा भी है पर इन पर  देख सुनकर अगली से अगली पीढ़ी तक पहुचाने में जो काल्पनिक, चमत्कारिक , उस समय के प्रशासनिक व षड्यंत्रकारी रैपर चढ़ता गया वो उस कहानी, कथाओं से नई पीढ़ी को मिलने जा रहे सार्थक व अर्थपूर्ण ज्ञान से जुड़ने के बजाए तोड़ने के काम आने लगा क्योंकि उसमें कई प्रश्न चिन्ह उभरते गए , जिनका विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा।

इसीलिए गुज़ारिश है कि हमने जहां नए आधुनिक और तरक्की की नई प्रणालीयों के आगे घुटने टेके हैं, वहां इस तार्किक विषय पर भी सहनशीलता से समझौता कर लेते हैं।

#Seriously

Thursday, 25 June 2020

countdown

*Countdown*.

जैसे कि हम सब देख रहे हैं कि पेट्रोल-डीजल  का दाम आसमान छू रहा है यानि सौ के नज़दीक पहुचने को है। तो अब हमारा ध्यान उस के इस ग्राफ से हटता जा रहा है।   कि ऐरो का निशान कितना ऊपर को गया, बल्कि अब हमारी नज़र उस हंड्रेड पर टिक रही है कि कब वो ऐरो उस निशान को छूता है।

ऐसे ही जब महामारी के शुरुवाती दिन थे तो हम पहले अंतराष्ट्रीय ग्राफ को देखते थे। फिर इंडिया के ग्राफ पर ध्यान गया फिर जब धीरे धीरे अपने शहर के नज़दीक आया तो  नज़र गिणती पर टिक गई। जब गिनती लाख तक पहुचने लगी तो लगा कि कुल मिलाकर करोड़ लोग सकर्मित तो जरूर होंगे। मतलब मेरा कि गिनती उल्टी चलती नज़र आई कि अब पिछला रिकॉर्ड टूट कर राउंड फिगर पर आया कि आया।

यही बात हमारा गाड़ी के सफर के दौरान होती है कि सफर शुरू होते समय डिस्टिनेश की दूरी पर ध्यान रहता है फिर सफर खत्म होते होते ध्यान बाकी बची नज़दीकी पर चला जाता है।

बिल्कुल यही प्रोसीजर हमारी लाइफ का है कि शुरुआत हंसी खुशी से हुई कि सफर बहुत लंबा है और जिंदगी बहुत बड़ी। पर पचास पचपन से यही सफर काउंट डाउन होने लगते ही अपने अंदर की चिंताएं शुरू हो जाती हैं कि अब सफर पूरा हुआ कि हुआ।

*Seriously*

Wednesday, 24 June 2020

just Asking

Good one
TESTING YOUR INTELLIGENT QUOTIENT 
*Just Asking ...*

किसी को पता है, 
गलतियों पर डालने वाला 
पर्दा कहाँ मिलता है..?
और कपडा कितना लगेगा .?? 
🙄🤔
*Just Asking ...*

एक बात बताओ,
धोखा खाने के बाद 
पानी पी सकते हैं क्या ?
😜🤪
*Just Asking ...*

अगर किसी से चिकनी-चुपड़ी  
बात करनी हो तो 
कौन सा घी सही रहेगा ?
किसी को पता है ?
😋😜

*Just Asking ...*
पाप को हमेशा 
घड़े में ही क्यूँ भरते है ?
ठंडा रहता है क्या ?
🤨😜
*Just Asking ...*
ये दिल पर रखने वाला 
पत्थर कहाँ मिलता है ?
और वो कितने किलो का होता है ?
🤦🏻‍♂😂
*Just Asking ...*

किसी के जख्मों पर 
नमक छिड़कना है।
कौन सा सही रहेगा?
टाटा या पतंजलि ...?
🤨😉
*Just Asking ...*

कोई मुझे बताएगा कि
जो लोग कही के नही रहते,
आखिर वो रहते कहां हैं ?
🙄🤪
*Just Asking ...*
सब लोग "इज्जत" की 
रोटी कमाना चाहते हैं।
लेकिन कोई "इज्जत" की 
सब्जी क्यों नहीं कमाता..?
😋😜
*Just Asking ...*

भाड़ में जाने के लिए
ऑटो ठीक रहेगा या टैक्सी ?
😉😉

 *Just Asking ...*
एक बात पूछनी थी, 
ये जो *इज्ज़त* का 
सवाल होता है.... 
ये  कितने नम्बर का होता है ?

*Just Asking ...*
😜😜😜🤪🤪🤪

Tuesday, 23 June 2020

असल पूंजी धन नहीं, ज्ञान है;



पुराने समय से यह बात चली आ रही है कि किसी का मकान अचानक आग से जल जाता था अथवा कुछ अधिक नुकसान हो जात था, तो आसपड़ोस से दो तरह की सहानुभति भरे शब्द सुनने को मिलते थे।

एक तो नकारत्मक यह कि "आगे भविष्य में इस बेचारे का अपना और बीवी- बच्चों का क्या होगा ?"  इसकी तो जिंदगी भर की पूंजी समाप्त हो गई"।

दूसरा सकारात्मक वाक्य यह कि "कोई बात नहीं जान बच गई, शुक्र है , मकान-दुकान का क्या है फिर से बन जाएगा।"

'एक की सहानुभूति निराशा वादी है, दूसरे की होंसला अफ़जाई आशावादी।'

एक तो यह कि अब यदि मकान मालिक की वो धन संपति उसके बड़े बूढ़े व पुश्तों की कमाई हुई थी तो वो तो हो जाएगगी समाप्त। 

दूसरा यह कि, यदि उसने अपनी धन संपदा अपने हुनर व ज्ञान से बनाई होगी, तो वो फिर से सब कुछ बना लेगा। क्योंकि उसका ज्ञान व प्रशिक्षण ही उसकी असल पूंजी है, जो वो कभी भी किसी भी नुकसान, विपदा, या पलायन के बाद कहीं से कर्ज़ लेकर बिना किसी रिस्क के अपने ज्ञान के बलबूते फिर से बना  सकता है, जिसका न कोई घाटा हैं न कोई लूटपाट।

किसी का भारी नुकसान की वजय से 'सब कुछ' खत्म हो जाता है, नहीं खत्म होता तो वो है उसका ज्ञान। इस ज्ञान के बलबूते वो अपना 'सब कुछ' फिर से बना लेगा।

#Seriously

Saturday, 20 June 2020

रोज रोज के झगड़ों से तारीख़ भली;

रोज रोज के झगड़ों से तारीख़ भली;

वो लोग बेवकूफ नहीं है या थे जो कहते रहे हैं कि जो झगड़ेलू मसले जिनकी चिंगारी जब तक कायम है या जो हल न हो पा रहे हों उन्हें चिंगारी बुझने तक यानि वक़्त पर पेंडिंग छोड़ देना चाहिए।

हम भी जब प्रोपर्टी टाइप के अपने मसले कोर्ट ले जाते हैं तो वो भी हाथों हाथ कोई जजमेंट पास नहीं करते, एक 'स्टे' मिलता है और साथ मिलती है लंबी तारीख।

जिसने भी उन पेंडिंग केस जल्दबाजी में अपनी दखलन्दाजी की है , दूसरी पार्टी के साथ अपना भी नुकसान पाया है। इन छह सालों में छह पेंडिंग फ़ाइल के क्या निभटारे हुए ये हम जानते है। उल्टा नुकसान ही पाया है।

कोर्ट कचहरी के सभी मामलों पर कोई नज़र मारे तो अधिकतर प्रोपर्टी मसले थक हार कर पार्टियों ने आप ही बैठ कर निभटाये हैं  कोर्ट के समझाने पर वर्ना दशक बीत जाते हैं।

ऐसे मसलों को जबरदस्ती छेड़ने का कारण या तो किसी दूसरे मसले से ध्यान डाइवर्ट का होता है या यूँही किसी को पंजाबी में कहते है न "खुर्क" उठती है कि बंदा रह नहीं   पाता। 

#Seriously

मुखोटा

#मुखोटा

कुदरत को छोड़ किसी व्यक्ति के शरीर की सुंदरता व करूपता देख कोई पैमाना नहीं बना है मन की गुणवत्ता के सामने, उस व्यक्ति को पहली बार देख-बोल से कभी अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता कि उसकी सोचना, उसके नित्य कर्म, उसके जीवन के नियम-असूल कैसे हो सकते हैं। 

वो तो उस संग बिताये पल या उसके सगे-संबधियों से ही पता चल सकता है या उसके किये प्रशंसनीय अथवा निन्दनीय कार्यों की गूंज से, जो कि समाज में आग की तरह फैलते है।

कभी-कभी क्या, अब तो जब कभी भी दुविधा पड़ जाती है कि जो दिख रहा है वो सच है या वो जो सुनाई दे रहा है वो सच । इसका कारण भी है। आजकल कल की प्रयोजित शैली, जिसमें व्यक्ति स्वंय ही अपनी महिमा का जाप या तो ख़ुद करते हैं या पैसे की अत्याधुनिक मीडया मार्फ़त करवाये जाते है। जिससे असलियत का अंत पाना मुश्किल हो जाता है कि सच क्या है?

यह तो ऐसे हुआ कि जैसे एक व्यापारी किसी विपदा में फंस जाने पर उससे बच जाने की प्रार्थना करते व उससे बच जाने पर वो अपने गुरु जी को भेंट स्वरूप कुछ उपहार देने गया तो व्यापारी ने देखा कि आगे उस गुरु स्थान के आगे पीछे बीस-बाइस तरह के पाखंडी लोग उसके गुरु जैसा वेश बनाये बैठे थे तो उसे एक चाल खेल कर अपने गुरु की शिनाख्त करनी पड़ी।

ऐसा ही नये से नया ढंग जो लोग जनता को बेवकूफ बनाने के लिए अपनाते हैं । जैसे एक बार किसी ने आपको कहा कि कि एक ऐसी जगह है जहां आपको अपने मन पसन्द का खाना मिलता है, पर वहां जाकर आपने देखा कि उस स्थान पर उसी नाम की कई दुकानें खुली पड़ी हैं। जिससे आप परेशान हो गए। यहां यह तो हो नहीं सकता कि आप हर दुकान पर जाकर उस विशेष व्यंजन का स्वाद चख सकें। बस आप मन मसोस कर वापिस आ गए।

कहने का मतलब यह है कि हमें किसी के मन की सुंदरता को परखने के लिये समय लेना होगा। अचानक या पहली दृष्टि से किसी को मानना, पाना , या उस पर विश्वास कर लेना मुश्किल ही नहीं , नामुमकिन है। cont...

#Seriously 
Gurmeet Singh Gambhir III
210618

Monday, 8 June 2020

अधूरा ज्ञान

#अधूरा_ज्ञान । (गंभीर विचार)

                जो अधूरा ज्ञान है वो पूर्ण ज्ञान और अज्ञान से  खतरनाक हो सकता है। जैसे जानबूझ कर की हुई गलती से अनजाने में किए हुए अपराध की सजा कम है । किसी काम को अधूरा न छोड़ो । या तो मना कर दो या फिर पूरा करके दो ।
                 परमात्मा को पाने की इच्छा रखने वालों को या तो आखरी हद तक पूर्ण रूप से अध्यन कर ज्ञान लेना चाहिये या अज्ञानता वश कुछ भी नहीं जानना चाहिये । अधूरी शिक्षा से दुविधा बनी रहती है कि सच क्या है ।
             ज्ञान वो सीढ़ी है जिसे चढ़ने पर ही मंजिल प्राप्त होती है । जिसका निर्णय पहली सीढ़ी पर पैर रखने से पहले ही करना है । बीच रास्ते निर्णय बदलने से जो दुविधा बनती है, उससे सफलता से असमर्थ और असफलता से निराशा की हीन भावना उत्प्न होती है । जिससे आत्म बल कमज़ोर पड़ता है । 
                     इससे बेहतर था कि ज्ञान से अनजान रहते ।  जब ज्ञान की समझ ही नहीं है तो उत्सुकता कैसी । उदाहरण के तौर पर एक शिक्षित व्यक्ति को रोजी रोटी को छोड़ रोजमर्रा की देश-विदेश की समस्याओं,राजनेतिक, समाजिक उलझनों , व्यापार की तेजी, नोकरी की तरक्की की फ़िक्र है । और अशिक्षित व्यक्ति दो जून की रोटी, तन ढकने को कपड़ा और रात बिताने के लिये छत तक सिमित व् निश्चिंत हैं । उसे अपनी दैनिक मजदूरी से सन्तुष्टि हैं ।
                लेकिन मुझ जैसे अध् मंझधार बीच में छोड़ चुके अधूरी पढाई वाले व्यक्ति की कोई भी उपलब्धि ना होने की वजय से काम के साधन में ना कोई बड़े व्यापार का जोखिम ले सकता है । ना कोई अच्छी नोकरी मिलती है और ना कोई दैनिक मजदूरी वाला छोटा-मोटा काम कर सकता है । क्योंकि बड़े काम में अयोग्यता और छोटे काम में आत्म हीनता नज़र आती है ।
                  इसलिये मैं कहता हूँ कि चाहे हमे आध्यात्मिकता से प्रभु को जानना है । चाहे समाजिक दृष्टि से औरों से आँख मिलानी है। चाहे आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भरता हासिल करनी है, तो ज्ञान की बहुत आवश्यकता है । अधूरा ज्ञान चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, सफलता नहीं दिला सकता । यह मेरा व्यक्तिगत तजुर्बा है । जिसे बहुत 'गंभीर'ता से लीजिएगा ।

Thursday, 4 June 2020

समानता Similarly

God has never given any Special Attribute to a person by;
 His Name, Caste, Religion, Country, 
Rich-Poor, High-Low, Black- White, 
The Example of which is giving
 Fresh Examples these days

Seeing this Calamity, 
Man has shown no difference
In comparing his with;
Developing Country - Developed Country, Village to City, 
Bungalow to Sum, etc. 

I will get rid of this disease by moving from this stage to another stage.  
All is equal in his eyes.
 
We pray to him to give us so much wisdom that we should take lessons from this example and keep equality among our people.

#Seriously

Monday, 1 June 2020

कुंए की मेंढकी

किसी भी विचार की सीमा नहीं होती, जो कोई इन्हें एक कमरे की 10x10 के एक कमरे की चार दीवारों से बांध लेता है, वो कभी सच को खोज नहीं पाता। विचारों का गतिशील होना ही सार्थक होता है। 

कुएं की दीवारों के किनारे से किनारे मेंढक की उछलकूद दुनिया जीतना नहीं है । इसे ज्ञान की कमी और अहंकार के प्रति विश्वास कहते हैं, दोनों ही स्थितियां मानव  का मानसिक संतुलन बिगाड़ देने वाली व समाज विरोधी हैं।

You all believe or not

 मैंने अपनी इस अधेड़ उम्र में अपने तथा अपने आसपास के सगे-संबधियों व परिचितों  को, अपने बचपन से अब तक की उनके जीवन यात्रा को देख-सुन-पढ़ कर व अपने  गुरु जी द्वारा कहे मुख वचन मुताबिक "*अपने कर्मों का भुगतान यहीं इसी धरती पर होना है।*" की वास्तविकता का ज्ञान तस्दीक करता हूँ।

वो सब कर्म चाहे जानबूझ कर किये गए हों या अनजाने में अथवा मज़बूरी वश, उन सब की जानकारी परम् पुरख परमात्मा नाम की एकमात्र शक्ति के कंप्यूटर (बही खाते) में सही व सटीक का रिकॉर्ड सुरक्षित यानि सेव है । 

और मेरी बनी समझ मुताबिक उस हिसाब-किताब के अनुसार अब तक उसके इंसाफ में कोई त्रुटि भी नहीं है कि पुनः विचार की संभावना हो।

#Seriously