#MyEditorial
प्रत्येक धार्मिक इतिहास की कहानियों में परिकल्पनाओं (Fiction) का प्रभाव निश्चित है, इसमें कोई दो राय नहीं। पर जब हमें आज के वैज्ञानिक दौर में नई पीढ़ी तार्किक प्रश्नों के समक्ष अपने 50-70 दशक के अधूरे ज्ञान , जो कि स्कूल द्वारा पढ़ाई शिक्षा और मां-बाप व बुज़ुर्ग पुजारियों द्वारा सुनाई गई कथाओं के अंतर की समझ से सामने आई थी ।
इससे पहले कि हमें दुविधा और सच्चाई में से मज़बूरी अथवा सहमती से किस का कहा माना जाए जिसकी समझ जबकि अब आने भी लगी है। जिस पर डिबेट की भी कोई गुंजाइश नहीं लगती।
साथ ही यह कहने पर भी संकोच नहीं कि इन कथा कहानियां जिनके सार में बहुत सी शिक्षा भी है पर इन पर देख सुनकर अगली से अगली पीढ़ी तक पहुचाने में जो काल्पनिक, चमत्कारिक , उस समय के प्रशासनिक व षड्यंत्रकारी रैपर चढ़ता गया वो उस कहानी, कथाओं से नई पीढ़ी को मिलने जा रहे सार्थक व अर्थपूर्ण ज्ञान से जुड़ने के बजाए तोड़ने के काम आने लगा क्योंकि उसमें कई प्रश्न चिन्ह उभरते गए , जिनका विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा।
इसीलिए गुज़ारिश है कि हमने जहां नए आधुनिक और तरक्की की नई प्रणालीयों के आगे घुटने टेके हैं, वहां इस तार्किक विषय पर भी सहनशीलता से समझौता कर लेते हैं।
#Seriously