किसी भी विचार की सीमा नहीं होती, जो कोई इन्हें एक कमरे की 10x10 के एक कमरे की चार दीवारों से बांध लेता है, वो कभी सच को खोज नहीं पाता। विचारों का गतिशील होना ही सार्थक होता है।
कुएं की दीवारों के किनारे से किनारे मेंढक की उछलकूद दुनिया जीतना नहीं है । इसे ज्ञान की कमी और अहंकार के प्रति विश्वास कहते हैं, दोनों ही स्थितियां मानव का मानसिक संतुलन बिगाड़ देने वाली व समाज विरोधी हैं।
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