Tuesday, 20 July 2021

भेड़ चाल

*भेड़ चाल*

*जहां जहां पर भेड़ों का झुंड होता है, उनको चराहने को एक गड़रिया भी होता है।*

*बहुत से लोग भेड़ के झुंड की एक भेड़-सा जीवन जीते हैं कुछ एक गडरिये (चरवाह) का।*

बदक़िस्मत सा होता है उस भेड़ का जीवन जिसके लिए गड़रिये अपना ज़मीर बेच देते हैं, वो भी उस भेड़िये के हाथ जिन्हें एक एक भेड़ की कीमत झुंड से आँकनी होती है।*

*भेड़िये की नज़र में जो कीमत भेड़ के झुंड से आंकी जाती है वो स्वंय गड़रिया नहीं जानता।* 
*और भेड़िया नहीं जानता कि जिस शेर के आगे वो इस झुंड को परोसने जा रहा है वो इस झुंड की क्या से क्या कीमत वसूल करता है।*

*इस खुले बाजार के खेल में न उस भेड़  के स्वास्थ्य व जान की वैल्यू है न ही उसके जाति-पात के रंगों या वर्गों की*

*उस भेड़ की आखिरकार जो कीमत लगती है वो होती है उसकी गिनती से। जिसकी गिनती ज्यादा उसकी उतनी उस शेर की ताकत*

*हमारे आसपास इस लोकतंत्र के बाज़ार में उसी की शर्तों के तोड़ की छलांग लगाते इस बाज़ार में  दलाल की शक्ल के कई गड़रिये दिखेंगे। आप उनकी शक्ल पर मत जाओ।*

 *हमारे भारत  स्टोर में बहुत सी नस्लों की भेड़ों का झुंड है। जो अपना मुंह छोड़कर आंख, नाक, कान  यहां तक कि अपनी ज्ञान भरपूर बुद्धि तक को ताला बंद कर अपनी मस्ती में बैठे हैं।*

*जो अपने अपने वर्ग के तेज़बुद्धि गड़रिये के हांकने (एक इशारे पर) अपनी परम्परा भेड़-चाल अपनाते हुए उसके पीछे हो लेंगे।*

 *अज्ञात शेर व्यापारी की सुपुर्दगी से हलाली तक उन झुंड की भेड़ों को नहीं मालूम कि उन्हें हांकने वाला गड़रिया या वो भेड़िया जिसने उसे वोट बैंक की कीमत पर किस साजिश भरे प्रस्ताव की बहुमत में गिनवाएगा।* 😢

*Seriously*
*July 21, 2021*

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