Friday, 28 April 2017

भक्त कबीर जी के श्लोक (24)

कबीर;
ता सिउं प्रीति करि,
जा को ठाकुर 'राम'।।
पंडित,राजे,भूपती,
आवहिं कउने काम।।२४।।
हे कबीर, उस मनुष्य से दोस्ती कर, जो अपना अधिकतर समय सत संगियों के साथ उस परमात्मा की याद में, जो हमारा प्रित पालक है, गुज़ारता है। इसके अतिरिक्त स्वंय ज्ञान का पंडित,अच्छी पदवी वाला व्यक्ति, या करोड़ों की जमीनों का मालिक,उस वक्त किसी काम नहीं आएंगे। जैसे कि पिछले श्लोक में कबीर जी ने 'राम पदार्थ" के व्यापारी से ही अपनी खरीदारी कर, जिसने कि अंतिम समय तक अपनी सांझ बनाए रखनी है।
Be in love & friendship with only that one, whose Master is the Lord.
The Pandit, (The Religious Scholars) Kings, Landlords--what good is love for them? #Kabeer_Says

Thursday, 27 April 2017

भक्त कबीर जी के श्लोक (23)

'राम पदारथ' पाइ कै ,
"कबीरा, गांठि न खोल।।
नही पटण, नही पारखू,
नही गाहक,नही मोल।।२३।।
इस श्लोक में भक्त कबीर जी अपने आप को समझाने की चेष्टा में कहते है कि "हे कबीर, यदि तुम्हें परमात्मा का नाम रूपी खज़ाना मिल गया है अथवा यदि तुम नाम भक्ति से उस अवस्था में पंहुच गए हो कि तुमने प्रभु को पा लिया है, तो इस संसार में जगह जगह इस बात का ढिंढोरा मत पीट, क्योंकि इस दुनिया रूपी बाज़ार में न कोई पारखी है, न कोई ग्राहक,और न ही कोई इस नाम रूपी पदार्थ का मूल्य ही पा सके। कारण हर कोई इस दुनिया के मोह पदार्थों में इतना मस्त है कि इनमें से किसी को इस अमूल्य वस्तु की कोई क़दर नहीं ।
O Kabeer, The Treasure of The Lord's Name is obtained But do not undo its knot.There is no market to sell it. No appraiser.No customer &Noprice.

Saturday, 22 April 2017

2342017

किसी ने ज्ञान बांटने के विषय पर क्या खूब कहा है कि "यदि हालात मुझे कहें कि तेरे पास जीने के मुश्किल से पांच मिनट ही बचे हैं,तो मैं चिंता करने के ढेर सा लिखना भर चाहूंगा।

कुछ लोग ऐसे भी थे, क्या अब भी हैं, जिनके कदम फुर्सत मिलते ही लाइब्रेरी की ओर लपकते हैं।

One Asked me  "Should I kill myself, or have a book of Literature ?

यदि आप कोई वस्तु हैं,तो आप किसी से अपनी तुलना या प्रतिस्पर्धा मत कीजिए,जो हर कोई आपको सम्मान करेगा । अपने अंदर "दिल" और "ज़िगरा" पैदा कीजिए।

Seriously  

भगत कबीर जी के श्लोक 15

कबीर ,
संतन की झुंगीआ भली  
भठि कुसंत  गाउ ।। 
आगि लगउ तिह  घउलहर,
जिह नाहीं हरि को नाउं।।१५।।
हे कबीर, मुझे तो सन्तों यानि धर्म के मानने वालों की कुटिया ही अच्छी लगती है, बजाए अधर्मी लोगों के तपते गाँव (डेरों) से, क्योंकि उनके आलीशान महलों में आग लगे (जरूरत नहीं) जिनमें पर्मात्मा का नाम नही है इस श्लोक में कबीर जी ने उन स्वयंभू सन्तों को भारी कटाक्ष है जिन्होंने धर्म के नाम पर पूरे पूरे गांवों पर कब्जा कर डेरा बना, अपने आराम दायक आलीशान महलों जैसी इमारतें बना रखी है। चलने के लिए बड़ी इम्पोर्टेड गाड़ियां का इस्तेमाल करते हैं।जबकि सन्तों धर्मी लोगों का निवास झुग्गियों में होना चाहिए। महलों में तो सांसारिक माया की तृष्णा पलती है।
The Dwelling of The Saints is Good & Beautiful. The Dwelling of The Unrighteous Burns like Oven.
Those Mansions in which  The Lord's Name Chanted might just as well burn down. Kabeer Says.

Friday, 21 April 2017

भगत कबीर जी के श्लोक (14)

कबीर;
जह जह° हउं फिरिओ,
कउतक ठाउ ठाइं।।
इक राम सनेही, बाहरा*,
ऊजर मेरै भांई।।१४।।
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*जह /जहां/Wherever, कउतक/कौत्तक/Wonders, सनेही/प्रेमी,भक्त/Devotee, बाहरा/बिना/Without,
*उजर/उजाड़/Wilderness,
हे कबीर,मैं जहां जहां भी गया ,प्रत्येक जगह पर दुनिया के रंग तमाशे देखे, पर मेरे प्रभु से प्रेम करने वाले भक्तों के बिना सारी दुनिया,जंगल  उजाड़ ही दिखती है, क्योंकि यहां सभी जगह माया के भौतिक पदार्थों का वास है, धर्म का कोई निशान नहीं।
Wherever I go, I See Wonders Everywhere, But Without The Devotees of The One Lord, It is all Wilderness. Kabeer Says

Friday, 14 April 2017

चिट्ठी

गुरु रूप साध संगत जी,
वाहेगुरु जी का खालसा।।
वाहेगुरु जी की फतह ।।
हम गुरद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, बी ब्लॉक, सेक्टर 15, रोहिणी, दिल्ली, सबंधी कुझ गलां, जो आप जी नाल  सम्बोधित करणा चाहूँदे हां।

1, जिवें कि आप जी जांनदे ही हो, कि गुरद्वारा साहिब दे पिछले 15  सालां तों इक्क ही प्रधान और इक्क ही  कमेटी काबिज है, जिह्ना ने अज्ज तक कोई वी इलेक्शन सोसाइटी दे रूल मुताबिक नहीं करवाया। जद कि कानून मुताबिक दो साल बाद इलेक्शन होने दा विधान है।  इसदा मतलब साफ है कि कमेटी नूं संगत ते भरोसा नहीं है।

2, साध संगत जी, तुसी जानदे हो कि गुरु दी गोलक् अते होर हिसाब किताब बारे जानन दा संगत नूं पूरा हक है। कमेटी वाले गोलक् खोलन तों बाद अते होर प्रोग्राम्स तों आई होइ माया दा हिसाब सँगता नाल सांझा नहीं करदी। इस तों लगदा है कि ओहनां दे मन विच चोर है।

3, साध संगत जी, आप जी जानदे हो कि गुरु घर दी सेवा ते दर्शन दा पूरा हक है, कोई वी बिना किसी रोक टोक दे भेदभाव दे, मर्यादा अनुसार सेवा कर सकदा है। पर कइयां नाल कमेटी भेद भाव कर दी है। जिस करके कई सँगतां गुरद्वारा साहिब तों टूट चुकियाँ हन। 
इस कमेटी ने कदी वी टुटी संगत ने जोड़न दी कोशिश नहीं किती।
4, साध संगत जी,  जिवें की तुसी जानदे ही हो कि गुरद्वारा साहिब तों लैके गुरु इतिहास तक गुरु दी गोलक् दी कितनी महत्वता है। इसदा उपयोग कमेटियां लोक भलाई दे कमा विच किती जांदी है। पर ऐथे प्रबन्धका नूं जापदा है कि ओहनां नूं गुरु इतिहास, गुरुबानी दी कोई जानकारी नहीं है होर ते होर  एह लोग गुरु दी गोलक् दा गलत इस्तेमाल कर रहे हन। जिवें कि आपने बैठन लई ए सी वाले आराम दायक कमरे  ते दफ्तर बना रखे हन। जद कि पहली जरूरत लोक भलाई है, जिस विच गरीबां नूं लंगर, बचियाँ दी पढ़ाई, अते मॉडिक्ल सहूलियत देना है । सँगतां दे आनंद कारज अते अंतिम अरदास दे प्रोग्राम विच वी लूट मचा रखी है

5, साध संगत जी, कमेटी वालियां ने अपने आफिस विच जो संगत दे दिते पैसे नाल जो ARO पानी दी मशीन लगवाई सी, उसनु मेंटेन तक नहीं करांदे जदकि  आप जानदे ही हो कि गुरद्वारा साहिब दी मोटर दा पानी पीने लायक नहीं है
इसी तरह संगत वास्ते बनाए गए वाशरूम दा वी बुरा हाल है।

6, गुरु रूप साध संगत जी, इहना अपने आराम वास्ते पैसे ते हन पर पता नहीं बाबा जी  दी पालकी साहिब जी दी रिपेयरिंग जां नवीं वास्ते कोई पैसा नहीं है।

इन सारी गल्लां दी जानकारी आप तक पहुंचाने दा मकसद किसे दे वी खिलाफ नहीं है, असी सिर्फ इतना ही चांदे हां कि गुरद्वारा साहिब दे सारे कम्म सुचारू रूप विच अते सोसाइटी दे विधान  अनुसार ही चलन।
आप सब नूं बेनती है कि आप दे जो वी सुझाव आते प्रतिकिर्या होण  ओह नीचे लिखे फोन नम्बर एते ईमेल ते भेजन दी किरपालता करनी ताकि गुरद्वारा साहिब  दी बेहतरी  आते साध संगत दी चढ़दी कला वास्ते आप सब नाल मिलजुल के कम्म किते जा सकन ।
वाहिगुरू जी का खालसा।।
वाहिगुरू जी  की फतह ।।

Tuesday, 4 April 2017

दस सिर वाला रावण ओर करुणा की मूरत राम

एक बहुत ही सुंदर घटना,जो हम बचपन से ही सुनते आए है। वो यूं है कि

राम, दशरत पुत्र, सीता पति । अयोध्या का राजा,
बात उन दिनों की जब राम ने राज गंवाया,त्याग किया,चाहे धोखे से पर शालीनता से उन्होंने कोई विरोध नहीं किया । जंगल गए, बनवास लिया, बहुत सी कठिनाइयां झेली, उनकी पत्नी सीता का अपहरण श्री लंका के राजा रावण द्वारा हुआ।

पत्नी के प्रेम, वियोग, पीड़ा, चिंता ग्रस्त रहे।
उसे ढूंढते ढूंढते दक्षिण भारत पँहुँचे, सेना बनाई, श्री लंका से युद्ध किया, उसे हराया, मार गिराया ।

इस घटना का महत्वपूर्ण क्षण यह है कि कहते हैं कि चलो! कुछ समय के लिए इस घटना के आध्यात्मिक पक्ष से मान भी लेते हैं कि श्री लंका पति रावण के दस सिर थे ।
रावण के वध और श्री लंका की जीत के बाद,अयोध्या की वापसी से पहले राम ने हिमालय जाने का निर्णय करना चाहा । क्योंकि उनके मन मे पक्षाताप था कि उन्होंने हत्या की, पाप किया, वो भी उस व्यक्ति की, जो एक लालची, वासनिक के साथ साथ धार्मिक,तपस्वी, भक्त भी था । या यूं कह लो कि उस रावण के दस सिरों के नौ सिरों में पाप के साथ एक सिर में विवेक और ज्ञान था, जो राम को पक्षाताप की आग में झुलस रहा था।
दस सिर में से कोई अहंकारी, कोई लालची, कोई क्रोध से भरा, किसी मे नफरत, वासना ओर बदसूरती इत्यादि थी, पर एक सिर जिसमें गज़ब की बहादुरी,शक्ति, धार्मिकता,भक्ति, उपासना जैसी खूबसूरती भी थी।

बस, यही एक कारण, रावण का दसवां सिर था, जो बार बार राम के ह्रदय में करुणा, उदारता, पैदा कर रहा था, जो राम पक्षाताप  करना चाहते थे कि उनसे नौ बुराई को समाप्त करने के लिए एक अच्छे सिर यानी एक अच्छाई की भी हत्या हो गई। जिसका उन्हें अफसोस जिंदगी भर रहा।

#Gambhir Says

Sunday, 2 April 2017

Who is He?

Who is He, Who Himself Creates The World
Who is He, Fashions The World ? &
Who is He, Himself Keeps it in Order?

He Having Created The Beings.
He Oversees their Birth & Death.

Unto Whom Should We Speak,
When He Himself is All in All?
Nanak Asks.

कौन है वो?
जो आप ही सृष्टि को रचना करता है,
कौन है वो?
जो आप ही इस सृष्टि की सजावट (पहाड़, नदियां,  पेड़,वादियां इत्यादि) करता है।
कौन है वो?
जो आप ही इस सृष्टि की देखभाल करता है।
कौन है वो?
जिसने इस सृष्टि में कई प्रकार के जीव-जंतु पैदा किये हैं।
कौन है वो?
जिसने इस सृष्टि में जीवन और मृत्यु का खेल रचाया हुआ है।

गुरु नानक जी पूछते है
कौन है वो?
जिस के बिना हमारी कोई और फरियाद नहीं सुन सकता।

"वह स्वंय ही है, जो ये सब कुछ करने में समर्थ है।
24 पौहड़ी, 476, आसा दी वार,SGGS

परम् पद। (Highest Position)

#परम्_पद  #Highest_Position

मनुष्य आत्मा, परमात्मा से बिछड़ने से वियोग अथवा वैराग्य (Detachment) हो गई है। इसको फिर से परमात्मा से मिलना है।  बिछड़ना वैराग है तथा मिलना संयोग। वैरागी आत्मा से संयोग स्थापित करना तथा अभेद होना परम् पद है।

Saturday, 1 April 2017

He Casts His Glance of Grace.

ਆਪੇ ਭਾਂਡੇ ਸਾਜਿਅਨ, ਆਪੇ ਪੂਰਣ ਦੇਇ,
ਇਕਨੀ ਦੁਧੁ ਸਮਾਲੀਐ, ਇਕ ਚੁਲੈ ਰਹਿਨ ਚੜੇ।।

ਇਕਿ ਨਿਹਾਲੀ ਪੈ ਸਵਨਿ, ਇਕਿ ਉਪਰਿ ਰਹਿਨ ਖੜੇ।।
ਤਿਨਾ ਸਵਾਰੇ ਨਾਨਕਾ, ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ।।

He Casts His Glance of Grace.

He himself  fashioned The Vessel of the body, & fills it.
Into some, milk is poured, while others remain on the fire.

Some lie down & sleep on soft beds, while others remain watchful.
He adorns these upon whom.

He Casts His Glance of Grace.
#Nanak_Says.

प्रभु ने जीव को शरीर रूपी बर्तन दिया है, जसमें उसने कुछ न कुछ डालना ही है, जिनकी किस्मत में उसके कर्मों के अनुसार दुःख-सुख हैं, वो परमात्मा, आप ही डालता है।
जैसे किसी के बर्तन में दूध रूपी आराम है, और किसी के बर्तन को जलते चूल्हे पर खाली ही तपते रहना है, भाव कष्ट सहने है।
कईयों के भाग्य में चैन की नींद और चादर तान के सोना लिखा है, तो कईयों के उनके बिस्तर के ऊपर खड़े रहकर,सुरक्षा के लिए सारी सारी रात चौकीदारी की ड्यूटी लगी है। भाव,
जिन पर परमात्मा की मेहर होती है, उनका जीवन सुधार देता है । #NanakSays

प्रेम_इतफाक_से_होता_है

#प्रेम_इतफाक_से_होता_है. !

मैंने अपने दोस्तों को उनकी शादी से पहले अपनी भावी पत्नी के लिए बहुत से सुंदर सपने संजोते देखा है,
पर उन्हें जो मिला उसे 'पहली नज़र' में जब उन्होंने देखा, तो उनके सारे सपने तो पूरे होते नहीं दिख रहे थे, पर अचानक अचन्चेत,से बिना शर्त "YES" हुई थी, क्योंकि सच्चा, संयोगी और सहज़ प्रेम उन पर हावी सा होता दिखा ।

बिल्कुल यही अवस्था पर्मात्मा से प्रेम की होती है। प्रभु से प्रेम भी अचानक और इतफाक के संयोग से सच्चे गुरु की शिक्षा, युक्तियों के बिना भी हो सकती हैं।
परंतु इस सहज़ अवस्था को पाने के लिए कोई कठोर परिश्रम भी नहीं करना पड़ता बल्कि अपने आप को निर्मता में लाकर पाँच अवगुण (काम, करोध, लोभ, मोह, अंहकार) को काबू करने की चेष्ठा कर उस द्वारा दिए जा रहे दुख-सुख को बराबर मान उसके कुदरती नियम को सही मानने का संकल्प करना जरूरी है । जो कि हकीकत है।

परमेश्वर की कुदरत के नियमों से छेड़-छाड़ और उसकी उल्लंघना वर्तमान और भविष्य में बहुत सी आपदाओं को जन्म दे सकतीं हैं. और उसके नियमों को झुठलाना, ज्योतिष ज्ञान की आड़ में लोगों का बेवकूफ बना, व्यर्थ के कर्मकांड में हिस्सा लेना विशेष कर शिक्षित व्यक्ति का, सुझवान बुद्धि का परिचय नहीं देता ।

#Seriously [02-04-2012]

स्त्री की परिभाषा

#स्त्री:-

किसी भी आदर्श समाज की उत्पति मे स्त्री का योगदान सबसे अधिक है. चाहे वो माँ के रूप में अपने फ़र्ज़ की पूर्ति करनी हो या आदर्श बेटी,पत्नी, बहु और सासू के रूप में समाज की अगवाई देनी हो।
पुराने समय से धर्म और समाज के ठेकेदारों की ओर से स्त्री को पैरों की जुती समझ कर घर की चारदिवारी के अंदर बंद करके उस का अपमान किया जाता था ।
स्त्री को निंदनीय, भगवान की मज़ेदार गलती कह कर पशुओं से भी बुरे स्थान, समाज ने प्रदान किए हुए थे ।
क्षी गुरु नानक देव जी ने आसा दी वार में
'सो किओ मंदा आखीऐ,जितु जंमहि राजान' ।।कह कर स्त्री को समाज में इज्जत प्रदान की तथा मर्दों के बराबर मान-सम्मान दिलाया।

जहाँ गुरु सहिबान ने नये समाज की संरचना के लिए समाज के संगठन और सुधार को प्राथमिकता दी, वहीं स्त्री को समाज के प्रति बनती उसकी जिम्मेदारी का एहसास करवाया ।

गुरु साहिब ने कहा कि स्त्री केवल श्रंगार, या भोग विलास का साधन ही नहीं बल्कि आदर्श समाज के विकास के लिए नींव का काम भी करती है। इस लिए गुरु वाली स्त्री को सहज़, संतोष तथा मीठा बोलना आदि जैसे गुण धारण करने की हिदायत दी है:-

'जाए पुछह॒ सोहागणी, तुसी राहिआ किनी गुणी ||
सहजि संतोखि सीगारीआ, मीठा बोलणी ||

#Seriously  [01-04-2012]