कबीर ,
संतन की झुंगीआ भली
भठि कुसंत गाउ ।।
आगि लगउ तिह घउलहर,
जिह नाहीं हरि को नाउं।।१५।।
हे कबीर, मुझे तो सन्तों यानि धर्म के मानने वालों की कुटिया ही अच्छी लगती है, बजाए अधर्मी लोगों के तपते गाँव (डेरों) से, क्योंकि उनके आलीशान महलों में आग लगे (जरूरत नहीं) जिनमें पर्मात्मा का नाम नही है इस श्लोक में कबीर जी ने उन स्वयंभू सन्तों को भारी कटाक्ष है जिन्होंने धर्म के नाम पर पूरे पूरे गांवों पर कब्जा कर डेरा बना, अपने आराम दायक आलीशान महलों जैसी इमारतें बना रखी है। चलने के लिए बड़ी इम्पोर्टेड गाड़ियां का इस्तेमाल करते हैं।जबकि सन्तों धर्मी लोगों का निवास झुग्गियों में होना चाहिए। महलों में तो सांसारिक माया की तृष्णा पलती है।
The Dwelling of The Saints is Good & Beautiful. The Dwelling of The Unrighteous Burns like Oven.
Those Mansions in which The Lord's Name Chanted might just as well burn down. Kabeer Says.
Saturday, 22 April 2017
भगत कबीर जी के श्लोक 15
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