Saturday, 1 April 2017

स्त्री की परिभाषा

#स्त्री:-

किसी भी आदर्श समाज की उत्पति मे स्त्री का योगदान सबसे अधिक है. चाहे वो माँ के रूप में अपने फ़र्ज़ की पूर्ति करनी हो या आदर्श बेटी,पत्नी, बहु और सासू के रूप में समाज की अगवाई देनी हो।
पुराने समय से धर्म और समाज के ठेकेदारों की ओर से स्त्री को पैरों की जुती समझ कर घर की चारदिवारी के अंदर बंद करके उस का अपमान किया जाता था ।
स्त्री को निंदनीय, भगवान की मज़ेदार गलती कह कर पशुओं से भी बुरे स्थान, समाज ने प्रदान किए हुए थे ।
क्षी गुरु नानक देव जी ने आसा दी वार में
'सो किओ मंदा आखीऐ,जितु जंमहि राजान' ।।कह कर स्त्री को समाज में इज्जत प्रदान की तथा मर्दों के बराबर मान-सम्मान दिलाया।

जहाँ गुरु सहिबान ने नये समाज की संरचना के लिए समाज के संगठन और सुधार को प्राथमिकता दी, वहीं स्त्री को समाज के प्रति बनती उसकी जिम्मेदारी का एहसास करवाया ।

गुरु साहिब ने कहा कि स्त्री केवल श्रंगार, या भोग विलास का साधन ही नहीं बल्कि आदर्श समाज के विकास के लिए नींव का काम भी करती है। इस लिए गुरु वाली स्त्री को सहज़, संतोष तथा मीठा बोलना आदि जैसे गुण धारण करने की हिदायत दी है:-

'जाए पुछह॒ सोहागणी, तुसी राहिआ किनी गुणी ||
सहजि संतोखि सीगारीआ, मीठा बोलणी ||

#Seriously  [01-04-2012]

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