मंनैु, पावहि मोखु दुआरु।। मंनै, परवारै साधारु।।
मंनै, तरै तारे गुरु सिख।। मंनै, नानक भवहि न भिख।।
ऐसा नामु निरंजनु होइ।। जे को मनि जाणै मनि कोइ।।१५।
जपु जी साहिब |
यदि मन में प्रभु के नाम की लग्न लग जाये तो मनुष्य असत्य (कुड़) से मुक्ति का रास्ता ढूँढ लेते हैं । ऐसा मनुष्य अपने परिवार को भी परमात्मा का आक्षय दृढ़ करवाता है।
नाम में मन लग जाने से ही सतिगुरु भी आप संसार सागर से पार हो जाता है तथा सिक्खों (शिष्यों) को भी पार कराता है। नाम में जुड़ने से, हे नानक ! मनुष्य जन जन के मोहताज नहीं बने फिरते
। अकाल पुरख (परमात्मा) का नाम जो माया के प्रभाव से परे है, इतना ऊँचा है कि इस में जुड़ने वाला भी उच्च जीवन वाला हो जाता है, परन्तु यह बात तब ही समझआती है जब, कोई मनुष्य अपने मन में हरि-नाम की लग्न पैदा करे।१५।
इस लग्न की बरकत से वह सारे बंहधन टूट जाते हैं जिन्होनें प्रभु से दूरी बनायी हुयी थी । ऐसी लग्न वाला इंसान केवल आप ही नहीं बचता, अपने परिवार के सदस्यों को भी स्वामी-प्रभू के साथ जोड़ देता है । यह देन जिनको गुरू से मिलती है, वे प्रभु दर से हटकर किसी और तरफ़ नहीं भटकते।
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