Friday, 12 October 2012

Gambhir's says.......!


जब किसी राज्य में अकाल पड़ जाये या बाढ़ आ जाये तो केन्द्र सरकार, दूसरे राज्य के मुख्य मंत्री तथा अधिकार गण अन्न, कपड़े आदि कि जरूरतें पूरी करते हैं | पर यदि कहीं 'सत्य' का अकाल पड़ जाये तो इस आवश्यकता को वो ही मनुष्य पूरा करेगा जिसके पास पहले से ही 'सत्य' होगा |
भुत-प्रेत कोई कोई अलग से जून नहीं है | मनुष्य के जीवन में जब सत्य पंख लगा कर उड़ जाता है | मनुष्य से बड़ा कोई भुत बेताल नहीं |सत्य न होने से यह मनुष्य अपने जीवन को कोड़ जैसी बिमारी लगा बैठा है | गुरू ग्रन्थ साहिब में 'आसा की वार' नाम की वाणी में इस सच्चाई को बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है |




मनुष्य स्वयं ही अपना भाई तथा दुश्मन है | मनुष्य को अपने आप से ही अपना उद्दार करना चाहिये | यदि मनुष्य अपनी जगन सही हो जाए तो वह स्वयं ही श्रेष्ट हो जाएगा |
लोग मेरे को अच्छा कहें, यह आशा न रखो | कोई मेरे को बुरा न कह दे , यह भय भी पतन करने वाला है | अच्छा कहलाने कि इच्छा छोड़ दो , अच्छे बनो |




कभी आप खाली समय किन्ही अनगिनत नोटों की गडी लेकर उसकी गिनती करते हुए १०० की गिनती तक गिनें और हर गिनती के साथ-साथ अपने इष्ट का नाम भी ले | यदि आप की गिनती और प्रभु का नाम लेते गडबडाते नही हैं तो आप में प्रभु के मिलन की क्षमता ओरों से अधिक है वर्ना अभ्यास जारी रखिए |


संसार में संतों, महात्माओं, उपदेश देने वालों कि कमी नहीं है, परन्तु अपना कल्याण करने में हमारी स्वयं कि लग्न एवं श्रद्दा ही काम आती है |

जो व्यक्ति पूर्ण आस्था व श्रद्दा के साथ अपने इष्ट प्रभु का स्मरण करता है, बड़ी से बड़ी शक्ति भी उसका अहित नहीं कर सकती |

आत्म तत्व का साक्षात्कार किया हुआ व्यक्ति ही सच्चा गुरू कहलाने लायक है | वही हमारी जीवात्मा को परमपिता परमात्मा का रहस्य बता सकता है | इस गुण का धारणी शत-प्रतिशत गुरू नानक देव जी है

कभी हमने सोचा है कि मन्दिर-गुरदवारे में बजाई जाने वाली ढोलकी या तबला किसी जानवर की चमड़ी से बनाया जाती हैं । और इन्हें बनाने वाले लोग निम्न जाति के समझे जाते हैं ।

छुआ-छूत को मानने वाले लोग तथा आपस में भेद-भाव रखने वाले लोग इस स्पर्शता को क्या कहेंगे ?



क्या कभी हमनें सोचा है कि जब हमारे किसी नजदीकी सगे-सम्बंधी का अंतिम समय आता है, तो हमारे बड़े-बूढे उस जा चूके मनुष्य का बोरिया-बिस्तर, पहने हुये कपड़े घर से बाहर रखने को क्यों कहते हैं ?

या फिर उस शरीर पर पहने हुये कीमती गहनें तथा उस द्वारा छोड़ी गई जमीन-जयदाद को भी फैंक देने को कयूँ नही कहते ?



महंगाई की असल मार उन लोगों पर पड़ती है जिनके पास इसके विरोध और अनशन के लिए टाइम ही नहीं है, उनके लिए वो टाइम बहुत कीमती है / और जो लोग अनशन इत्यादि में वक्त जाया करते हैं वो या तो एक खाली बैठने के शौकीन लोग हैं या मौकापरस्त / क्योंकि महंगाई के साथ रोजगार के अवसर भी बहुत हैं, बस आवश्यकता है मेहनती लोगों की /


महंगाई उन लोगों के किये है जो दो टाइम भोजन के लिए दैनिक मजदूरी करते हैं न की उनके लिए जिन्होंने अपनी सात पुश्तों की रोजी-रोटी का ठेका ले रखा है/
  • महंगाई उन लोगों के किये है जो दो टाइम भोजन के लिए मजदूरी करते हैं न कीउनके लिए जिन्होंने अपनी सात पुश्तों की रोजी-रोटी का ठेका ले रखा है/


    जब तक हम स्वयं अपने घर पड़ा जरूरत से अधिक सोना और जरूरत से ज्यादा खाली जमीन का मोह नहीं छोड़ेंगे या वह वस्तु जिनकी कीमतें आसमान छू रही हैं, महंगाई का स्तर गिरना असंभव है/यह भी एक किस्म की जमाखोरी है/




बीस-पच्चीस वर्ष पहले जो व्यक्ति ५०००/- रूपए मासिक वेतन पाने से सुखी था, आज वह ६००००/- तनखाह से भी नाखुश है / क्योंकि वो व्यक्ति अपनी आमदन का ५० % खर्च अपनी सम्पन्नता और दिखावे के लिए कर रहा है /

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