Friday, 26 October 2012

भरिए हथु पेरू तनु देह....[20] जपु जी साहिब|


भरिए हथु पेरू तनु देह || पाणी धौतै, उतरसु खेह ||
मूत पलीती कपडु होइ || दे साबुनु, लइऐ ओहु धोइ ||

भरिऐ मति पापै कै संगि || ओहु धोपै, नावै के रंगि ||

यदि हाथ पैर या शरीर मैला ही जाये, तो पानी से धोने पर यह मेल उतर जाती है |यदि कोई कपड़ा मूत्र से गंदा हो जाये, तो साबुन लगा कर उसको धो लिया जाता है | यदि मनुष्य कि बुद्धि पापों से मलिन हो जाए, तो वह पाप, परमात्मा के नाम से प्रेम करने पर ही धोया जा सकता है |

पुंनी पापी , आखाणु नाहि || करि करि करणा, लिखि लै जाहु||
आपे बिजि, आपे ही खाहु || नानक, हुक्मी आवहु जाहु ||२० ||

हे नानक ! 'पुण्यवान' तथा 'पापी' केवल नाम ही नहीं है, अर्थात केवल कहने मात्र को नहीं है, सचमुच ही तू जैसे काम करेगा वैसे ही संस्कार अपने अंदर बना क्र साथ ले जाएगा | जो कुछ तू आप बोयेगा, उसका फल आप ही खायेगा | अपने बोये अनुसार परमात्मा के हुक्म में जन्म-मरण के चक्र में पड़ा रहेगा |२०|


माया के प्रभाव के कारण मनुष्य विकारों में पड़ जाता है तथा इसकी बुद्धि मलिन हो जाती है | यह मैल इसको शुद्ध-स्वरूप परमात्मा से प्रथक (अलग ) रखती है तथा जिव दुखी रहता है | नाम-सिमरन ही एक साधन है जिस से मन कि मैल धुल सकती है | सिमरन तो विकारों कि मैल धोकर मन को प्रभु से जोडने के लिये है, प्रभु तथा उसकी रचना का अन्त पाने के लिये जिव को समर्थ नहीं बना सकता है 

जपु जी साहिब |२०|

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