Thursday, 18 October 2012

असंख मूरख अंध घोर .....[18] जपु जी साहिब |


असंख मूरख अंध घोर ||

असंख चोर हरामखोर ||

असंख अमर करि जाहि जोर ||



निरंकार कि बनाई हुई स्रष्टि में अनेक ही महा मूर्ख हैं, अनेक ही चोर हैं, जो पराया माल चुरा चुरा कर व्यवहार में ला रहे हैं तथा अनेक ही ऐसे मनुष्य हैं जो दूसरों पर हुक्म चलाते तथा जबरदस्ती करते हुए अन्त में इस संसार से चले जाते हैं |

असंख मूरख अंध घोर ||
असंख चोर हरामखोर ||
असंख अमर करि जाहि जोर ||



निरंकार कि बनाई हुई स्रष्टि में अनेक ही महा मूर्ख हैं, अनेक ही चोर हैं, जो पराया माल चुरा चुरा कर व्यवहार में ला रहे हैं तथा अनेक ही ऐसे मनुष्य हैं जो दूसरों पर हुक्म चलाते तथा जबरदस्ती करते हुए अन्त में इस संसार से चले जाते हैं |

असंख कुड़िआर, कूड़े फिराहि||
असंख मलेछ, मलु भाखि खाहि ||

अनेक ही झूठ बोलने के स्वभाव वाले मनुष्य झूठ में ही व्यस्त हैं तथा अनेक ही खोटी बुद्धि वाले मनुष्य मल अर्थात अखाघ ही खाये जा रहे हैं /


असंख निंदक, सिरि करहि भारु ||
नानकु निचु कहै विचारू ||


अनेक ही निंदक (निंदा करने वाले) अपने सिर पर निंदा का भार उठा रहे हैं | 
हे निरंकार ! अनेक अन्य जीव कुकर्मों में फसे हुए होंगे, मेरी क्या ताकत है कि तेरी कुदरत का पूर्ण विचार कर सकूँ | नानक बेचारा (तुच्छ-सा ) तो विचार पेश करता है | 


वारिया न जावा एक वार ||
जो तुधु भावै साई भली कार ||
तू सदा सलामति निरंकार ||१८||

हे परमात्मा ! मैं तो तुम पर एक बार भी कुर्बान होने  योग्य नहीं हूँ , अर्थात मैं तेरी अन्नत कुदरत का पूर्ण विचार करने योग्य नहीं हूँ | 

हे निरंकार ! तुन सदा स्थिर रहने वाला है |जो तुझे अच्छा लगता है वही कार्य भला है, अर्थात, तेरी रजा में रहना ठीक है, तेरी प्रशंसा करते हुए तेरी रजा में रहें, हम जीवों के लिये यही ठीक है|१८|

परमात्मा कि सारी कुदरत का अन्त ढुंढना तो एक तरफ़, यदि आप संसार के केवल चोर, जुआरी, ठग, निंदक आदि लोगों का ही हिसाब लगाने बैठें तो इनका भी कोई अन्त नहीं है/ जब से जगत बना है , अनन्त जीव विकार ग्रस्त ही दिखाई देते हैं /Cont...

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