#NO_Risk!
बचपन में जब मेरी समझदानी न के बराबर थी तो सड़क वाले रास्ते को पार कराते अक्सर माता पिता मेरा हाथ मजबूती से पकड़ लेते थे । जिसका मतलब हुआ कि मैं उन पर निर्भर हैं। No Risk!
जब थोड़ा बहुत बड़ा हुआ तो समझ का भी बढ़ोतरी हुई कि मैं सड़क पार करते अपने पेरेंट्स का विश्वास तोड़ अपना हाथ छुड़वा उनकी ऊँगली को कस कर पकड़ने लगा। जबकि उनकी नज़र में तब भी मैं तब भी बच्चा था । मतलब, मुझे इतनी समझ आ गई कि ऊँगली छूटी नहीं तो चोट लग सकती है, यानि No Risk!
सो धीरे धीरे नॉलेज ने जोखिम उठाना सीखा दिया। उसके बाद समय बीतते माता पिता की ऊँगली भी छोड़ दी यानि कि अब वो रिस्क जो अब उनका कम बल्कि अपना अधिक हो गया । Risk!
यह तो रही सांसारिक रूटीन और अपनी योग्यता अनुसार जो कि जरूरी है ।
अब हम इसी बात को हम माता पिता को गुरु के संज्ञान से जोड़े, तो माता पिता की जगह गुरु की नज़र हम पर है।और उनके द्वारा दर्शाए अध्यात्मक जीवन और उसके ज्ञान से चाहे जितने समझदार है पर हम अब भी बच्चे है और रहना भी चाहिए।
क्योंकि गुरु के दिखाए रास्ते यानि उन के हाथ में अपना हाथ लिए नहीं बल्कि दिए हुए ही हम इन विकारों से भरी जोखिम वाली सड़क को पार कर सकते हैं । और हमारा स्वभाव यानि nature वैसे भी अपने स्वार्थ व् विकारों से भरा पड़ा है ।
वर्ना, जब भी हम अपना हाथ छुड़ा, उनकी ऊँगली को पकड़ने की समझ के हुए तो सारा रिस्क अपनी जिम्मेवारी पर आ जाएगा ।
तो यह बात हमारे स्वार्थ हित ही सही,आध्यात्मिक जीवन में सफलता के लिये #गंभीर'ता से सोचने समझने की जरूरत है ।.
Seriously
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