गुरु नानक देव जी का हिन्दू धर्म से बाग़ी होने की वजय यह थी कि इस धर्म में स्वर्ण जाति की उपाधि लिए ब्राह्मण ने अपने निजी स्वार्थ हित आत्मा की शुद्धि हेतू लक्ष्य को शरीर के पवित्र होने से जोड़ दिया और कुछ ऐसे नियम बना डाले जिसके निवार्ण के लिए दूसरी जाति के लोग स्वंय ही उनके समक्ष आने लगे । जिसके बदले मिली भेंट से इनका अपना और परिवार का पालन पोषण चल निकला। जबकि आत्मा (जिसको अपना मन भी कह सकते हैं) की शुद्धि के लिए मनुष्य के अपने आचरण की शुद्धता जरूरी होती है ।
ऐसे ही अब सिख धर्म में हो रहा है गुरु नानक जी द्वारा शिक्षा मुताबिक़ शरीर के स्वास्थ्य के सुधार तक के नियम और जन्म मरण की मुक्ति के लिए आत्मा यानी मन के स्वच्छता को जरूरी बताया है, पर हम ले देकर सिख धर्म की स्थापना के समय मिले ड्रेस कोड यानि वर्दी को ही केवल अधिक महत्व देने लगे हैं और ब्राह्मण कटड़ता जैसे नियम को ही प्राथमिकता देकर ,आत्मा की हस्ती और आध्यात्मिकता को दूर छोड़ शरीर की वर्दी में मिले पांच ककार पर ही किन्तु परन्तु को पकड़,उसी कटड़ता को सहमति देकर नई पीढ़ी को जाने अनजाने सीखी से दूर करने में लग गए है ।
इस विषय को थोड़ा गंभीरता से सोचने की जरूरत है ।
यदि हम जानना चाहते हैं कि वो किन्तु परन्तु क्या है, उसके लिए आपसी विचार विमर्श कर उलझनें सुलझाई जा सकती हैं । इसके लिए मुझे आप जैसे बुद्धजीवी के सवालों तथा सुझावों का सदैव इन्तजार रहेगा । धन्यवाद।
Sunday, 1 January 2017
गुरु शिक्षा का विश्लेषण ।
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