Tuesday, 31 January 2017

मन (psyche)

#मन (psyche)

गुरु को #तन और #धन, #मन को फॉलो करते है। यदि 'मन' समर्पण हो तो तन और धन सौपना कठिन नहीं है, मुश्किल मन सरेंडर करने में  ही है, पर सिख का प्रथम धर्म  मन को #गुर_अर्पण (Surrender) करना है । गुर अर्पण होते ही मन सहज ही निर-आकार निरंकारी हुक्म को समझ लेता है, तथा अपने जीवन #रास (आनंदित )कर लेता है ।

"मन बेचै सतिगुर के पासि।।
तिस सेवक के कारज रासि ।।"

मन', संकल्पों-विकल्पों की एक पोटली है। यह आत्मा तथा #हउमै (Ego) का मिश्रण है इसीलिए इसके सारे काम हउमै के अधीन पैदा होते हैं , ख्याल मन में ही आते हैं । यदि ख्याल मात्र ही मन को निरंकार  के अर्पण कर दें तो मन सहज स्वभाविक ही भेंट हो जाता है । ख्याल, स्वभाविक ही दूसरा नाम #भाणा_मनणा यानि रज़ा में रहना है । रज़ा में ही रहने का आंतरिक भाव हुक्म समझना है । हुक्म समझ पाना ही अपनी हउमै (ego) का अभाव है। इसी को ही #आपा_निवारन (Self-Control) यानि अपने पर प्रतिबंध और #हउमै_मेटणा (अहंकार मिटाना) कहा जाता है । जब हउमै मिट जाए, तब फिर;-

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