#नाम (पार्ट-9) #अपरंपर
मनुष्य के मनोरथ में #अंतरस्थ_नाम को साक्षात करके #अपरंपर_नाम" तक पहुंचना है।
अब प्रश्न यह है कि "कैसे" ?
नीचे दी गई गुरु नानक जी की #सीध_गोष्ट" में लिखी प्रश्नोत्तरी इस लॉक को खोलने में सहायक सिद्ध हो सकती है ।
गुरु नानक जी एक ओर जगह फ़रमाते हैं कि हर कोई #शब्द_सुरति के भेद को नहीं जान सकता , पर जब तक इस भेद को बुझ के अमल में न लाया जाए ।
#गुर_शब्द में ध्यान करना तथा अपने आप को लेकर 'शब्द' को कमाना ही #शब्द_सुरति_संजोग है। यह एक ऐसी #कला है, जिस में कलाकार अपना आप गवां कर जो ज़ज़्बा पैदा करता है कि केवल और केवल कलही रह जाती है, कलाकार नहीं रहता । इसको "शब्द" में मर मिटना भी कहते हैं यही है दरअसल "शब्द-सुरति-संजोग ।
"शब्द गुरु है और सुरति चेला है ।" प्रेम के रास्ते चल कर सुरति ने गुरु उपदेश को धारण करना है । शब्द सहारे सारा अहं मिटाकर ' नाम' में विलीन होना है । पर प्रश्न उठता है "यह सब कुछ कैसे हो?-- 'सुरति के टिकाव के लिए जरूरी है--- एक ध्यान अवस्था की। "सावधान एकाग्र चित्त" होने की । "मन को मन में टिकाने की" । यह केवल कहने मात्र से नहीं, करने योग्य है ।
अगला चैप्टर #साधना" है ।
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