#हुक्म (Command) Part-2
#मानै_हुकम_सोहै_दरि_साचै...
हुक्म, मन् की #उक्ति_युक्ति द्वारा बुझा नहीं जा सकता,बल्कि इसको समझ कर तथा जीवन में अपनाने से जाना जाता है कि निरंकार (formless), जो करता है, सही करता है । वह #अभूल है, उसकी ओर से कोई बात #इत्तफ़ाक़ नही हो सकती। वह #सच्चा_न्यायधीश है तथा #अचूक इंसाफ करता है। हमें बेशक पता नहीं,कि उसका अच्छा-बुरा #अचंचेत_हुकम हमारे ही किसी किये का पूर्ण तौर पर #भेद (Mystery) है,।
इसीलिए यह बुझ लेना कि परमात्मा ने जो कुछ किया है, वो ठीक किया है। तथा हमें इसको प्रसन्नता से मानना है । यही वास्तव में परमात्मा के हुकम को बुझना है।
यह "हुकम रजाई चलणा" है ।
"मानै हुकम_ सोहै दरि साचै
आकी मरहि अफारी"।।
हुकम मानने का सीधा प्रभाव #स्वभाव पर पड़ता है । जिसका हुक्म मानने से स्वभाव, सहजे ही परमात्मा के अनुसार हो जाता है । पत्नी , पति का स्वभाव सहज ही अपना लेती है ।
खोजी (वैज्ञानिक) का स्वभाव में भी हुक्म मानना तथा #हुकमी_बंदा बनने का स्वभाव #अचेत ही कहा जाता है । इसी तरह गुरु का हुकम मानने से गुरु का स्वभाव अपना लेना भी स्वभाविक है । गुरु उपदेश तथा गुरु द्वारा बताई गई मर्यादा पर चलने का स्वभाव ही कुदरती नियम को मुख्य रखकर दिया गया है :-
#निर्णय
1. निरंकार के हुक्म को सत्य करके, ख़ुशी से, (यह समझते हुए कि) वो अभूल है, उसका न्याय अचूक है, मानना है।
2. परमात्मा का हुक्म भी बिना किसी किंतु-परन्तु के मानना है क्योंकि गुरु का स्वभाव ही प्रभु की समझ है । उसका हर हुक्म, उसके किये तजुर्बे पर आश्रित है तथा सिख को, निरंकार के हुक्म दृढ़ करवाता है, जिसका फल स्वरूप सिख का परमात्मा स्वभाव वाला होना है ।
3. गुरु का हुक्म, गुरु उपदेश को कमाना तथा गुरु मर्यादा का पालन करना है ।
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