Thursday, 30 June 2016

Short form

People often use abbreviations on chat and WhatsApp. Although, they are not proper English words, people often use them as it makes typing faster. Here are the full forms of these common abbreviations

WhatsApp पर या Chat पर बात करते समय लोग अक्सर संक्षिप्त शब्दों (abbreviations) का इस्तेमाल करते हैं. यह विशिष्ट रूप से अंग्रेजी के शब्द नहीं होते, मगर, जल्दी लिखने के लिए लोग इनका इस्तेमाल करते हैं.

कुछ संक्षेप शब्द और उनके मतलब:

1. LOL: Laugh Out Loud = ज़ोर से हसना

2. BRB: Be right back = मैं अभी वापस आता हूँ

3. TTYL: Talk to you later = बाद में बात करते हैं

4. BTW: by the way = वैसे; Example: By the way, you were looking good today! (वैसे, आज तुम अच्छी लग रही थी)

5. BFF: Best friend(s) forever = सबसे अच्छी/अच्छा दोस्त हमेशा के लिए; Example: She is my BFF. (वह मेरी हमेशा के लिए अच्छी दोस्त है)

6. DM: Direct Message = सीधे मैसेज करना; Example: If you have something important, just DM me. Don't message anything publicly. (अगर आपको मुझसे कोई ज़रूरी काम हो तो सीधा मुझे मैसेज करें, सब लोगों के सामने ना लिखें)

7. IDK: I don't know = मुझे नहीं पता

8. IMHO: in my humble opinion = मेरी नज़र में

9. ROFL: rolling on the floor laughing = पेट पकड़कर हसना (इतना हंसना कि आप हँसते हँसते गिर जाओ)

10. w/o: without = के बिना; Example: I will be going to the mall w/o my friend. (मैं अपने दोस्त के बिना मॉल जाऊंगा)

11. XO: hugs and kisses = झप्पियां और पप्पियाँ; Example: I will see you later, XO! = मैं तुमसे बाद में मिलता हूँ, झप्पियां और पप्पियाँ!

Wednesday, 29 June 2016

संत बिहावै हरि नाम अधारा

हे भाई !

किसी मनुष्य की उम्र दुनिया के रंग-तमाशों, दुनिया के सुंदर रूपों और पदार्थों के रसों-स्वादों में बीत रही है;

किसी मनुष्य की उम्र माँ पिता पुत्र आदि परिवार के मोह में गुजर रही है;

किसी मनुष्य की उम्र राज भोगने, भूमि की मालिकी, व्यापार आदि करने में निकल  रही है ।

किसी मनुष्य की उम्र वेद आदि धर्म-पुस्तक पढ़ने और (धार्मिक) चर्चा में गुजर रही है;

किसी मनुष्य की जिंदगी जीब के स्वाद में बीत रही है;

किसी मनुष्य की उम्र स्त्री के साथ काम-पूर्ती में निकलती जाती है।

किसी मनुष्य की उम्र जूआ खेलते निकल जाती है;

कोई मनुष्य अफीम आदि नशे का आदी हो जाता है उस की उम्र नशों में ही गुजरती है;

किसी मनुष्य की उम्र पराया धन चुराते बीतती है;

किसी मनुष्य की उम्र योग-साधन करते हुए, किसी की धूणी तपाते, किसी की देव-पूजा करते हुए गुजरती है;

किसी मनुष्य की उम्र रोगों में, ग़मों में, अनेकों भटकन भटकने में बीतती है;

किसी मनुष्य की सारी उम्र प्राणायाम करते हुए निकल जाती है;

हे भाई !
सिर्फ सच्चे सन्त रूपी मनुष्य की उम्र परमात्मा के नाम के सहारे बीतती गुजरती है ।

परमात्मा सदा कायम रहने वाला है। यह सारी सृष्टि उसे की पैदा की हुई है। एक वही हरेक जीव का स्वामी है।1

कहीं पढ़ा है ।

*Read Somewhere*  विज्ञान ने अपनी आविष्कार की हुई खोज में एक *Robert*  तैयार  किया हुआ है, जो भविष्य में क्या अब भी एक गाडी चला सकता है । उसका *control*  रिमोर्ट से होता है ।

*Because* उस में दिल, दर्द, अहसास जज़्बात तथा अपना अस्तित्व नहीं होता है । वह सिर्फ या केवल उपकरण *machine*  है, जो उस में फीड करोगे या *command* दोगे, वही रिपीट करेगा ।

*So* जिस *शब्द* के साथ अहसास *Feeling* नहीं, वो सिर्फ और सिर्फ दिखावा *Formality* है ।

Monday, 27 June 2016

उम्मीद

*उम्मीद*

कहते हैं, उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए / उम्मीद रहती हैं तो चीजें भी मुमकिन होती है/

• उम्मीद का मतलब यह है कि एक दुसरी दुनिया भी मुमकिन है / - रेबेका सोलिंट

• जैसी उम्मीद होती है, उसी के मुताबिक हमारा काम भी होता है /- आंद्रे गोदो

• उदास रहने से कहीं बेहतर है किसी बात की आस (उम्मीद) लगाए रखना /- मारग्रेट एटवुड

• उम्मीद जागती आंखों का सपना है /-अरस्तू
• उम्मीद सबसे बड़ी संपत्ति है /-विलियम हैज्लिट

• हमारी उम्मीदें संभावनाओं में बसती है /- ए.वी.विलकॉक्स

• उम्मीद हमारे विश्वासों की छाया है /- अ. ओज्मैली

• बीते कल से सिखो, आज के लिए जिओ और आने वाले कल से उम्मीद रखो /-आइंस्टाइन

• ऐसा अक्सर होता है कि हम सबसे अंधेरी रातों में ही सबसे चमकते सितारे दिखते हैं /-रिचर्ड इवांस

• जिंदगी है तो उम्मीदें भी रहेंगी / ठीक वैसे ही जैसे उम्मीदें हैं तो जिंदगी / ई. ई. होम्स

• छोटी से छोटी चीज़ उम्मीद का सबब बनती है / मिसाल के लिए अंधेरे में मोमबत्ती की रोशनी / कर्स्टियन मोसर्ट

Saturday, 25 June 2016

This is your chance to meet the Lord of Universe

*हे_जीव* !
इस समय तुम 
संसार-समुन्द्र को पार करने के प्रबंध
में लग जा ।
माया के स्वाद में
तेरा जीवन व्यर्थ  जा रहा है।
*pause* ।

*हे जीव*!
तुझे मनुष्य देह (शरीर) मिली है । यह अब
तेरी परमात्मा को मिलने की बारी (समय) है । और कार्य  तेरे किसी भी काम के नहीं
सत- संगत में  में मिल बैठ,
तथा प्रभु का 'नाम' सिमर ।1।

मैंने  सिमरन,जप- तप , (सख्त कर्म ) संजम, (स्वयं पर काबू ) तथा धर्म की कमाई  नहीं की सच्चे साधुओं की सेवा नहीं की ।
हरि प्रभु को नहीं जान पाए ।
*हे नानक* !
ऐसे कह लो कि ये मेरे नीच कर्म हैं ।
मैं आप कि शरण में हूँ ,
मेरी लाज रखो ।2।4।

*SGGS* , रचना: पांचवीं पातशाही श्री गुरु अर्जन देव जी, राग आसा, वाणी: *रहरासि साहिब #भई_परापत*.....

Friday, 24 June 2016

The Lord is One

*In Your mind,You Do Not Remember, The Lord is One*

*हे_मन!*
हे मुर्ख मन !
तुम एक को नहीं सिमरते ।
हरि को भुलने से तुम्हारे गुण नाश हो जाते हैं ।
*Pause*

मनुष्य का उस संसार-समुन्द्र में निवास है,
जहाँ जल और अग्नि उसी प्रभू ने बनाए है ।
जहाँ मोह का रूप धारण किए
किचड़ में फ़स कर
मेरे पैर आगे नहीं बढ़ पा रहे,
मैं उनको उस के अंदर डूबते हुए देखता हूँ ।

ना मैं जती-सती हूँ
तथा ना ही इस बारे में पढ़ा है,
मुर्ख व अज्ञानता वाला जन्म हुआ है ।
नानक उनकी शरण में रहने का ईच्छुक है, जिन्होंने तुम्हें भुलाया नहीं है ।2।3।
*SGGS* रचना: क्षी गुरु नानक देव जी, राग: आसा, वाणी: *रहरासि_साहिब*
*तित॒_सरवरड़ै......।*

गुरद्वारा साहिब के पांच उद्देश्य

#गुरद्वारा_स्थान_के_पाँच_उद्देश्य ;

                    कल रात को एक एप्प पर एक भाई जी की कथा चल रही थी । जिसमे उन्होंने "गुरद्वारा साहिब" के पांच उद्देश्य बताए । एक, कथा कीर्तन, दूसरा "भूखे" को लंगर, तीसरा बच्चों को शिक्षा, चौथा, राहगीर को बिस्तरा, पांचवां, डिस्पेन्सरी ।

1,#कथा_कीर्तन;  गुरद्वारा स्थान छोटा भी है, ग्रन्थी सूझवान पढ़ा-लिखा होना चाहिये । जो हमारे बच्चों के गुरबाणी और इतिहास के सवालों के सही सही जवाब दे सके । यदि ग्रन्थी स्टाफ को प्रबंधक पर्याप्त तनखाह नहीं दे सकते तो संगत स्वंय मिलकर  दस्वन्ध एकत्र कर के दे ।

2, #लंगर;  किसी विशेष समागम के साथ साथ आए गए गरीब गुरबे, भूखे के लिये लंगर ना सही कम से कम रसद (राशन) की व्यवस्था हो जिसे जरूरत मंद वहीं पका ले या दो- चार समय के लिये राशन घर ले जाए ।

3, #शिक्षा; यदि गुरद्वारा स्थान में स्कुल के लिये जगह नहीं, कोई बात नहीं ।  दरबार साहिब हाल में ही ग्रन्थी सहित सभी संगत में से सूझवान, रिटायर्ड अधिकारी, पढ़ी-लिखी बीबीआं (बहनें) समय निकाल कर अपनी अपनी ड्यूटी लें और किसी भी समाज के बच्चों को पढ़ा कर अपना योगदान दें ।

4, #बिस्तरा; यदि गुरु स्थान में अतिरिक्त कमरे ना भी हों, कुछ बिस्तरे जरूर होने चाहिए जो राहगीर को दो-चार घण्टे के लिये अपनी थकावट उतारने को उचित जगह मिल सके ।

5, #डिस्पेंसरी; यदि गुरु स्थान छोटा है तो कोई बात नहीं, दो-चार घण्टे के लिये डॉक्टर और जरूरत मन्द दवाइयाँ उपलब्ध होनी चाहिए । यदि हम में से कोई डाक्टर है तो सही किसी पेशेवर से यह सेवा ली जा सकती है । गोलक से या संगत आपस में सहयोग करके ।

Gurmeet Singh Gambhir

Thursday, 23 June 2016

You are The True Creator, My Lord and Master

तूँ सच्चा सर्जनहार मेरा मालिक है । 
वही होता है, जो तुझे अच्छा लगता है ।
मैं वही प्राप्त करता हूँ जो तूँ देता है ।1।

सारी रचना तेरी है,
सब ने तेरा सिमरन किया है ।
जिन पर  तू कर्पा करता है  ,
उन्हें 'नाम रत्न' प्राप्त होता है ।
गुरमुखों ने तुझे प्राप्त कर लिया है ।
मनमुखों ने तुझे खो दिया है ।
तूँ आप ही किसी को अपने से दूर करता है । आप ही अपने से मिला लेता है ।1।

तूँ दरिया जैसे विशाल है,
सभी तेरे में ही हैं ।
तेरे बगैर कोई दूसरा नहीं है ।
जीव-जंतु सब तेरे ही खेल हैं ।
जिन के भाग्य में दूरी है ,
वो मिल के भी बिछड़ जाते हैं ।
जिनके  कर्मों में मिलना है,
उनका तेरे साथ मिलना होता है ।2।

जिसको तूँ अपनी हकीकत बताता है,
सिर्फ वही मनुष्य जानता है ।
वह सदा ही प्रभु के गुण वर्णन करता है ।
जिस ने हरि का सिमरन किया है,
उसको सुख मिला है ।
वह सहज ही हरि नाम में समां जाता है ।3।

तूँ आप ही रचना कर्ता है,
तेरे करने से ही सब कुछ होता है ।
तेरे बिना और कोई दूसरा नहीं है ।
तूँ रचना रच-रच कर देखता व,
उसकी जानकारी रखता है ।
हे दास नानक ! उस प्रभु का भेद,
गुरु द्वारा ही प्रकट होता है ।4।2।
 
SGGS रचना: चोथी पातशाही श्री गुरु राम दास जी, राग: आसा. बाणी: रहरासि साहिब (तूँ करता...)

रट्टा लगाना

रटा हुआ (repeating) ज्ञान दिलो-दिमाग को स्थिर नहीं करता । पूजा-पाठ के दौरान ध्यान दूसरी दिशा में जाए,लाजमी है । अंतर्ध्यान के लिये ज्ञान को अपनाना होगा।

ड्राइविंग, टाइपिंग की जब आदत बन जाए तो हाथ पांव अपना काम करते हैं और दिमाग अपना कोई दूसरा काम करता है जैसे मोबाइल सुनना, दूसरे से बातचीत करना । क्योंकि आपके पास ध्यान और ज्ञान दोनों हैं । जिसकी हमें आदत सी हो गई है । यही अवस्था (पाठ या मन्त्रों का उच्चारण) प्रभु को ध्यान करने में है । पर यदि हमें ज्ञान नहीं तो ध्यान कैसे लग सकता है ?

सो पूजा-पाठ के सम्मान के साथ प्रभु के गुणों का बखान, उसके नियम का पालन, उसके हुकूम की तामील, व् उसका कृतज्ञ होना जरूरी है ।

प्रभु को सिर्फ जानना ही जरूरी है । अंतर्ध्यान की शिक्षा अपने आप से मिलेगी ।

Wednesday, 22 June 2016

ਸਾਈਨ ਬੌਰਡ

#ਸਾਇੰਨ_ਬੋਰਡ

ਕਿਸੇ ਅਨਜਾਨ ਬੰਦੇ ਜਾਂ ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਸਮਝਾਉਣ ਖਾਤਰ ਬਿਲਕੂਲ ਸਿੱਧੇ ਅੱਖਰਾਂ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਸਾਕਸ਼ਾਤ ਗੁਰੂ, "ਇੱਕ" ਅਕਾਲ ਪੁਰੁਖ ਦਾ ਗਿਆਨ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਅਤੇ ਜੀਵਨ ਜਾਚ ਸਿਖਾਓਣ ਵਾਲੀ ਪੁਸਤਕ ਤੇ ਕਹਿੰਦੇ ਹੀ ਹਾਂ ।

ਪਰ ਇੱਕ ਹੋਰ ਸ਼ੋਰਟ ਵਰਡ ਹੈ 'ਸਾਈਨ ਬੋਰਡ' । ਜੋ ਸੂਚਕ ਇਸ ਭਾਵ ਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸੱਚੇ ਮਾਰਗ ਦਾ ਜੋ ਰਾਹ ਇਸ ਤਰਫ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਲਈ ਇਹ 'ਸਾਈਨ ਬੋਰਡ' ਸਿਰਫ ਪੜਨ ਸੁਣਨ ਦੀ ਹੀ ਵਸਤੂ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਇਸ ਮਾਰਗ ਤੇ ਚਲਣ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਹੈ ।

ਜੇ ਅਸੀਂ ਇਸ 'ਸਾਈਨ ਬੋਰਡ' ਨੂੰ ਸਿਰਫ ਪੜੀ ਹੀ ਜਾਵਾਂਗੇ ਜਾਂ ਸੁਣੀ ਹੀ ਜਾਵਾਂਗੇ, ਚਲਾਂਗੇ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਕੋਈ ਲਾਭ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ।

Widow day

The first International Widows’ Day was observed on 23 June 2011, providing an opportunity to give special recognition to the plight of widows and their children in order to restore their human rights and alleviate poverty through empowerment.

In December 2010, the General Assembly declared 23 June as International Widows’ Day (A/RES/65/189). The General Assembly decided, with effect from 2011, to observe International Widows’ Day on 23 June each year, and called upon Member States, the United Nations system and other international and regional organizations, within their respective mandates, to give special attention to the situation of widows and their children.

Tuesday, 21 June 2016

सर्व सांझी गुरबाणी

#सर्व_सांझी_गुरबाणी

गुरबाणी के अंदर विभिन्न धर्मों, मतों, समाज के वर्गों के महापुरूषों की बाणी मौजूद है जो सिख धर्म को सभी का सांझा धर्म बनाती है। दुनिया, में अन्य ऐसा कोई भी धर्म ग्रंथ नहीं है जिसमें अलग-अलग मजहबों के महापुरूषों की बाणी मौजुद हो, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, दलित, ब्राहमण, राजपुत आदि कई वर्गों के महापुरूषों की बाणी मौजुद हो, जिसमें एक भाषा ना होकर कई भाषाओं हिन्दी, ब्रज भाषा, संस्कृत, फारसी, सिंधी, अरबी, बंगाली, मराठी आदि भाषाओं के शब्द हों, जिसमें एक प्रभु के लिये हरि, राम, वाहेगुरू, ओंकार, गोबिंद, नारायण, अल्लाह, खुदा, गोपाल, दामोदर, बनवारी, करता, ठाकुर, दाता, परमेश्वर, निरंजन, केशो, निरंकार, मोहन, गोसाई, रघुनाथ, मुरारि, अंतरजामी आदि शब्दों (पदों) का प्रयोग किया गया हो। लेकिन इतने महापुरूषों की बाणी होने के बाद भी, इतनी भाषाएं होने के बाद भी, भगवान के लिये इतने पद होने के बाद भी गुरमत व गुरबाणी की विचारधारा केवल और केवल एक प्रभु व वास्तविक सच्चाई के साथ जोडती है।
लेकिन दुख की बात यह है कि ना तो हम गुरबाणी की शिक्षाएं ही किसी को बता पाये हैं और ना ही सिख इतिहास। दूसरों को तो क्या बताएं हम तो अपने सिख बच्चों को भी यह अनमोल खजाना नहीं दे पाये हैं और आज बहुत से सिख परिवार गुरबाणी व सिख इतिहास के इस खजाने से बहुत दूर जा चुके हैं, आज हमारे बच्चों को विक्रम-बेताल, भीम, अर्जुन, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, डोरेमॉन आदि सबका पता है परंतु बहुत ही कम सिख बच्चे जानते होंगें कि बीबी शरण कौर कौन थीं। हमारे बच्चों को सारे गायकों के नाम, हीरो-हीरोईनों के नाम याद हैं, परंतु गुरु ग्रंथ साहिब जी में कितने राग हैं, गुरबाणी में किन धर्मों के कौन-कौन से महापुरुषों की वाणी है, गुरबाणी में कितनी भाषाएं हैं, गुरबाणी में कितने गुरूओं की वाणी है यह सब हमें नहीं पता है| सभी सिख बच्चों को अकबर, बीरबल तथा तानसेन का भी पता होगा परंतु तानसेन के गुरू स्वामी हरिदास को भी शिक्षा देने वाले उनके गुरू थे भाई मरदाना जी यह सिख बच्चों को नहीं पता है। आज हमारे बच्चों ने भाई चित्तर सिंह, भाई बचितर सिंह,भाई हकीकत सिंह, भाई तारु सिंह, भाई जस्सा सिंह, भाई बघेल सिंह, हरि सिंह नलवा आदि को भुला दिया है लेकिन सारे गंदे गाने वाले गायक याद हैं। हमने उन भाई मनी सिंह जी को भुला दिया है जिन्होंने अपने परिवार के 60 से भी अधिक सदस्यों को सिख धर्म के लिए शहीद करवाया था|
शायद हमें यह सब इसलिए नहीं पता क्योंकि हम अपने घरों में अच्छी पुस्तकें नहीं रखते (अक्सर यह भी कहा जाता है कि सरदारों के बच्चे तो पढ़ते ही नहीं हैं लेकिन जब हमारे बच्चे  कार, मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर ,फोन, लैपटॉप आदि चलाना सीख जाते हैं  तो वे सिख इतिहास के साथ क्यों नहीं जुड़ते, शायद इसलिये नहीं जुड़ते क्योंकि हम अपने घरों में अच्छी पुस्तकें नहीं रखते| हम दीवाली पर हजारों रुपए के पटाखे चला देते हैं लेकिन हजारों रुपये के पटाखे चलाने वालों के घरों में अच्छी पुस्तक एक भी नहीं होती!! फिर बच्चे गुरमत व सिख इतिहास से कैसे जुड़ेंगे?? जैसे बल्ब या रोशनी के बिना अंधेरा दूर नहीं हो सकता उसी प्रकार से अच्छी पुस्तकों के बिना ज्ञान भी प्राप्त नहीं हो सकता| अगर हम अपने घरों में अच्छी पुस्तकें रखेंगे तो हमारे बच्चे व घर के अन्य सदस्य उनको पढ़ेगें भी जरुर)|

शायद हम गुरबाणी व सिख इतिहास के साथ जुड़ना ही नहीं चाहते और इसलिये हम गुरबाणी के अंदर मौजुद ज्ञान के खजाने से बहुत दुर हैं| हमें यह याद रखना चाहिए जब तक पत्ता पेड़ की टहनी के साथ जुड़ा हुआ है तब तक वह हरा व जीवित है पेड़ से टूटने पर वह पत्ता अपना जीवन नष्ट करके हवा के साथ यहां-वहां उड़कर भटकता है और अपना वजुद खो देता है| हमारे बच्चे भी पत्तों की तरह गुरमत व गुरबाणी से टूटने पर अवगुणों में फंस जाते हैं, नशे करने लगते हैं, झगड़े करने लगते हैं, अपने धर्म से पतित हो जाते हैं, माता पिता या अन्य घर के सदस्यों का सम्मान नहीं करते, अच्छे से पढ़ाई नहीं करते, अवगुणों में फंसकर जीवन में   रह जाते हैं और सफल नहीं हो पाते|
हम अवगुणों से स्वयं को केवल और केवल गुरबाणी के ज्ञान के द्वारा बचा सकते हैं| गुरबाणी के ज्ञान को घर-घर तक पहुंचाने के लिए, बच्चों को गुरमत से जोड़ने के लिए, उनको सिख इतिहास के साथ जोड़ने के लिए हम अपनी पुस्तक "सिक्खी: कल, आज और कल" (Sikhism: Past, Present & Future) में से सिख इतिहास के कुछ चुनिंदा लेख आने वाले दिनों में आपके साथ साझे करेंगे| आपने सिख इतिहास के इन  लेखों को अपने अन्य मित्रों के साथ साझा अवश्य करना है जी ताकि सिख इतिहास हमारे सभी परिवारों तक पहुंच सके| हम ये लेख हिंदी में post करेंगे ताकि सिख इतिहास आपके गैर सिख मित्रों तक भी पहुंच सके| कृपया हमारा साथ दें जी|
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Yoga

Yoga is a secular nature. It was not religious. But a spiritual practice and did not a practitioners lose his religious identity. Read somewhere.

Monday, 20 June 2016

I miss you

10 ways to say 'I miss you':

1. It is not the same without you.
(आपके बिना कुछ भी वैसा नहीं है.)

2. I wish you were here.
(काश आप यहाँ होते.)

3. There is a void in my life without you.
(आपके बिना मेरी ज़िन्दगी में खालीपन सा है.)

4. My life isn't complete with you gone.
(आपके जाने से मेरी ज़िन्दगी अधूरी हो गयी है.)

5. I think about you constantly, whether it's with my mind or my heart.
(मैं हरदम आपके बिना सोचता रहता हूँ चाहे वह मेरे ख्यालों में हो या दिल में.)

6. All I want is you to be here.
(मैं बस इतना चाहता हूँ कि आप यहाँ रहे.)

7. Feels like forever since I last saw you.
(लगता है जैसे आपको देखे अरसा हो गया.)

8. Counting days till I get to see you again!
(मैं बेसब्री से आपको देखने का इंतज़ार कर रहा हूँ.)

9. Can't wait to see you again.
(आपको दोबारा देखने के लिए इंतज़ार नहीं कर सकता.)

10. You've been on my mind / You are always on my mind
(आप हमेशा मेरे ख्यालों में होते हो.)

Sunday, 19 June 2016

What to do ?

(एक दुसरे की की कमियां या गलतियां सभी बताते रहते हैं, एक दुसरे के साथ धार्मिक स्थानों पर, social sites पर comments के रुप में सभी झगड़ते रहते हैं, लेकिन करना क्या है यह कोई नहीं बताता, इस लेख को पढ़िए की अब आगे करना क्या है,)

करना क्या है??
गुरू साहेबान ने सदियों से दबे कुचले, पाखंडों, अंधविश्वासों, जात-पात में फंसे समाज को एक नई सोच, एक नई दिशा दी। गुरू साहेबान ने हमें एक बड़ी आसान सी विचारधारा दी जिसके अनुसार पत्थरों, मूर्तियों, पहाड़ों, नदियों, ग्रहों, तारों, पेड़ों, जानवरों आदि की पूजा के स्थान पर सिर्फ एक अकाल पुरूख प्रभु को याद करना है तथा वह प्रभु कहीं बाहर तीर्थों, सरोवरों, जंगलों में नहीं रहता वह तो सदैव हमारे साथ, हमारे अंदर रहता है। गुरबाणी को सुनकर, पढ़कर, समझकर, विचारकर, मानकर और जीवन का अंग बनाकर ही अकाल पुरूख प्रभु के साथ जुड़ा जा सकता है। उस प्रभु से कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता क्योंकि वह प्रभु तो हमारे अंदर ही रहता है और सब कुछ जानने वाला है। गुरू की शिक्षा अथवा गुरमत के द्वारा प्रभु की कृपा प्राप्त की जा सकती है। प्रभु ने सभी दिन, महिनें, समय को समान बना रखा है तथा मुहूर्त, शगुन-अपशगुन या किसी खास दिन का गुरबाणी के अनुसार कोई भी महत्व नहीं है। अकाल पुरूख वाहेगुरू के ध्यान तथा नाम सिमरन के द्वारा मन में सच्चा रस पैदा होता है और मन प्रभु के साथ जुड़ जाता है।
गुरबाणी की शिक्षाओं के द्वारा हमें अपने मन को काबु करना है तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, निंदा, चुगली आदि से बचना है। सभी को एक समान समझना है और अपने नाम के पिछे अपनी जाति या गोत्र ना लगाकर केवल ‘सिंह’ लिखना है। जो व्यक्ति प्रभु को भुला देते हैं वे टूटे पत्ते की तरह कच्चे गुरूओं के पास भटकते रहते हैं। गुरबाणी मन की मैल को प्रभु के नाम से धोने का उपदेश करती है ना की नदियों, तीर्थों के स्नानों के द्वारा। गुरबाणी जात-पात, ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त करती है और स्त्रियों को भी व्रतों आदि फोकट कर्मों से बाहर निकालकर समान अधिकार प्रदान करती है। गुरबाणी झूठे दिखावे, मान-अभिमान, मोह-माया, लोभ को त्यागकर ईमानदारी से परिवार की पालना करने की शिक्षा देती है क्योंकि अंत समय में प्रभु के नाम के अलावा कुछ भी साथ नहीं जाता। गुरबाणी बुढापे की अवस्था तथा मृत्यु के विषय में समझाकर यह उपदेश करती है की मौत कभी भी आ सकती है इसलिए प्रभु को सदा याद रखो।
गुरबाणी विभिन्न कर्मकांडों तथा पाखंडों का भी विरोध करती है जिनको प्रभु की कृपा प्राप्त करने का साधन माना जाता था। अगर किसी से अनजाने में कोई गलती या अवगुण हो भी जाए तो प्रभु के सच्चे प्रेम के द्वारा उन अवगुणों को माफ कराया जा सकता है। गुरबाणी सुख- दुख को एक समान मानकर प्रभु की इच्छा तथा भाणे को मानने का भी उपदेश देती है। गुरबाणी केवल अंधविश्वासों को ही दूर नहीं करती बल्कि विज्ञान की तरह अद्भुत तार्किक ज्ञान भी प्रदान करती है।
अन्य धर्मों की विचारधारा की तुलना में गुरबाणी की विचारधारा बहुत ज्यादा सरल है। गुरबाणी बाकी सभी पदार्थों, ग्रहों, नक्षत्रों, मूर्तियों की पूजा के स्थान पर केवल एक प्रभु को सदा याद रखकर ईमानदारी से काम करने की शिक्षा देती है। गुरबाणी फोकट कर्मों, तीर्थ स्नान, व्रत रखना, दीये लगाना, फूल चढाना, बलि देना, सती प्रथा, मुहुर्त निकलवाना आदि का विरोध करती है और एक प्रभु को मन में बसाकर, अवगुणों से बचकर, सभी को समान समझकर, ईमानदारी से मेहनत करके परिवार की पालना करने का संदेश देती है। गुरमत सभी को मेहनत व कार्य करने और बांटकर छकने का उपदेश देती है। लेकिन हमने बांटकर छकने का मतलब निकाल लिया है की कुछ पैसे या पदार्थ किसी गुरद्वारे या किसी बाबा को भेंट करने हैं, हम सोचते हैं कि बांटकर खाने का मतलब है गुरद्वारे में भेंट करना और शायद इसी कारण से गुरद्वारों में सोने के चंवर, मंहगे रूमाले आदि भी दिये जाते हैं। लेकिन बांटकर छकने का मतलब है किसी जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करना (हम मरने के बाद अपने अंग आंखें, गुद्रे आदि भी तो किसी जरूरतमंद को दानकर सकते हैं, हम साल में 1-2 बार खुन भी तो दान कर सकते हैं)। आगे हम गुरबाणी की कुछ शिक्षाओं का विचार करेंगे की जीवन कैसे व्यतीत करना हैै।

रोसु न काहू संग करहु आपन आपु बीचारि ।। (259)
होइ निमाना जगि रहहु नानक नदरी पारि ।। 1।।

अर्थ- किसी के साथ (काहू संग) भी गुस्सा (रोसु) ना करो तथा स्वयं अपने अंदर (आपन आपु) देखो अर्थात अपनी गलती पहचानों (1)। संसार में विनम्र भाव (निभाना) से रहो और गुरू की कृपा (नदरी) से संसार रूपी भव सागर से पार निकल जाओ (2)।

प्रथमे तिआगी हउमै प्रीति ।। दुतीआ तिआगी लोगा रीति ।। (370)

अर्थ- सबसे पहले (प्रथमे) तो अहंकार (हउमै) और मोह रूपि प्रेम (प्रीति) को त्यागो (1)। फिर उसके बाद (दुतीआ) लोक दिखावे के कर्मों (लोगा रीति) को भी त्याग दो (2)।

काम क्रोध लोभ मोहु तजो ।। (241)
अर्थ- काम, क्रोध, लोभ, मोह को मन से निकाल (तजो) दो।

उठत बैठत सोवत धिआईऐ ।। मारगि चलत हरे हरि गाईऐ ।। 1।। (386)

अर्थ- उठते, बैठते, सोते समय प्रभु को याद (धिआईऐ) करो (1)। रास्ते (मारगि) में चलते समय भी प्रभु के नाम (हरे हरि) का गायन करो अर्थात हर समय प्रभु को याद रखो (2)।

मुख की बात सगल सिउ करता ।। जीउ संगि प्रभु अपुना धरता ।। 2।। (384)

अर्थ- (प्रभु को मन में बसाने वाला व्यक्ति) मुंह (मुख) से बातचीत तो सभी (सगल) के साथ (सिउ) करता है (1)। लेकिन (बातचीत करते समय भी) उसका मन (जीउ) अपने प्रभु के साथ (संगि) जुड़ा (धरता) रहता है अर्थात किसी के साथ बात करते समय भी उसको प्रभु याद रहता है (2)।

मेरा तेरा छोडीऐ भाई होईऐ सभ की धूरि ।। (640)

अर्थ- यह मेरा है और यह तेरा है कि भावना छोड़कर (अपने मन को) सभी के चरणों की धूल (धूरि) समझो अर्थात सभी के अंदर प्रभु को देखो।

प्रणवति नानक तिन्ह की सरणा जिन्ह तूं नाही वीसरिआ ।। 2।। 29।। (357)

अर्थ- गुरू साहेब समझाते हैं कि ऐसे (तिन्ह) व्यक्ति की संगत (सरणा) में रह जो (जिन्ह) प्रभु को कभी भी नहीं भुलाते (वीसरिआ) हैं अर्थात हमेशा अच्छी संगत में रहो।

उलटी रे मन उलटी रे ।। साकत सिउ करि उलटी रे ।। (535)

अर्थ- हे मेरे मन पलटकर (उलटी) वापिस आ जा (1)। प्रभु को भुलाने वाले बुरे मनुष्य (साकत) के पास से (सिउ) वापिस (उलटी) आ जा अर्थात प्रभु को भुलाने वालों की संगत से दुर रहो (2)।

सतिगुरु सिख के बंधन काटै।। गुर का सिखु बिकार ते हाटै ।। (286)

अर्थ- सच्चा गुरू अपने सिख के सभी बंधन दूर (काटै) कर देता है (1)। सच्चे गुरू का शिष्य (सिखु) भी विकारों से दूर रहता (हाटै) है (2)।

काहे जनमु गवावहु वैरि वादि ।। 2।। (1176)
अर्थ- अपना जन्म वैर तथा वाद-विवाद में क्यों (काहे) गंवा (गवावहु) रहे हो।

पर धन पर तन पर की निंदा इन सिउ प्रीति न लागै ।। (674)

अर्थ- पराये धन, पराया तन, किसी अन्य की निंदा इन सभी (सिउ) में अपना ध्यान (प्रीति) ना लगा।

हकु पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाइ।। (141)

अर्थ- पराया हक (रिश्वते लेना, दूसरों के पैसे, जमीन, पदार्थ बेइमानी से ले लेना) किसी मुस्लिम व्यक्ति (उसु) के लिए सूअर के मांस के समान तथा किसी हिन्दु व्यक्ति (उसु) के लिए गाय (गाइ)का मांस खाने के समान है (अर्थात हमें किसी दुसरे का हक नहीं लेना चाहिए)।

हमें गुरबाणी को प्रेम सहित सुनकर, पढ़कर तथा समझकर अपने जीवन का अंग बनाना है। अपने घर में गुरू ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश करना है तथा समझकर, विचारकर गुरबाणी की शिक्षाओं को जानना, समझना, मानना है। यदि घर में प्रकाश संभव नहीं है तो गुरबाणी को इंटरनैट से या फिर PDF रुप में भी विचारा जा सकता है। गुरबाणी को प्रो0 साहिब सिंह जी के गुरबाणी दर्पण को पढ़कर भी विचारा जा सकता है। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम गुरबाणी की शिक्षाओं को समझने, मानने को ज्यादा महत्व देते हैं या फिर गुरबाणी की शिक्षाओं के पास पंखे लगाना, ए.सी. लगाना, दीये लगाना, धूप लगाना, सुगंधी, व इत्र (perfume) के स्प्रे करना, खाने पीने योग्य दूध-दही से फर्श साफ करना तथा दीवारें धोना, फूल चढाना आदि को ज्यादा महत्व देते हैं।
    संम्पुर्ण गुरबाणी केवल एक प्रभु के साथ जोड़ती है। गुरबाणी में छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, ऊंचे-नीचे, जात-पात या स्त्री-पुरूष का कोई भी भेदभाव नहीं है। गुरबाणी केवल वास्तविकता, सच्चाई तथा अकाल पुरूख वाहेगुरू के साथ जोड़ती है। गुरबाणी की शिक्षाएं हमें सांसारिक भ्रमों, दुविधाओं, पाखंडों, कर्मकांडों, अंधविश्वासों, झूठ, मोह-माया, लालच, विकारों, अवगुणों, दिखावे आदि के दलदल से निकालकर सच्चाई, ईमानदारी, दया, धर्म, संतोष के साथ जोड़ती हैं। गुरबाणी को मन में बसाकर ही ये सभी गुण हमारे अंदर पैदा हो सकते हैं। सबसे पहले गुरबाणी को पढ़ना-सुनना है, विचारना-समझना है, फिर गुरबाणी को मन में बसाकर अपना जीवन बदलना है तथा उसके बाद गुरबाणी को महसूस करके गुरबाणी को जीवन से प्रकट भी करना है, अपने मन में प्रभु के प्रति असीम प्रेम, अटुट भरोसा व विश्वास तथा अनन्य श्रद्धा भी पैदा करनी है। सिख का जीवन ऐसा होना चाहिए कि सिख के जीवन को देखकर ही गुरबाणी नजर आये, हमें दुसरों को ये बताना ना पड़े की मैं भी गुरसिख हुं|

##Note:-यह लेख "सिखी: कल, आज और कल" पुस्तक के chapter 35 "क्या करें" का केवल कुछ भाग है। यहां पर पुरा लेख लिखना व गुरबाणी के अन्य फुरमान लिखने संभव नहीं है क्योंकि post बहुत लंबी हो जाएगी, पुरे लेख के लिए आप भी यह पुस्तक अवश्य ही मंगवाये। यदि हम अपने घरों में अच्छी पुस्तकें रखेंगे तो हमारे बच्चे उनको पढ़कर गुरमत के साथ अवश्य ही जुड़ेंगे क्योंकि जो कुछ भी घर में हो (फोन, लैपटॉप, कार, बाईक आदि) बच्चे उसके साथ स्वयं ही जुड़ जाते हैं, (अक्सर यह भी कहा जाता है कि सरदारों के बच्चे तो पढ़ते ही नहीं हैं लेकिन जब हमारे बच्चे  कार, मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर ,फोन, लैपटॉप आदि चलाना सीख जाते हैं  तो वे अच्छी पुस्तकें रखने पर उनको पढ़ेगें भी जरुर) इसलिये अपने घरों में अच्छी books जरुर रखो| इस पुस्तक के विषय में अधिक जानकारी के लिए या पुस्तक मंगवाने के लिये sikhikalaajkal@gmail.com पर email करें या 09050425013 पर whatsup करें या Facebook page https://www.facebook.com/sikhikalaajkal/ पर जाकर मैसेज करें)