Wednesday, 1 June 2016

काम (विकार)

#काम (विकार) (Chapter-20) 1516
               काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को विकार (अवगुण) माना जाता है । पर क्या वास्तव में इनको त्यागना असंभव है ?
               विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें तो सभी जीव इन विकारों से लिप्त हैं । यदि केवल मनुष्य की बात करें तो ये विकार अनुशासित नियम में बंधे होने चाहिये ।
यदि काम ना हो तो बच्चे का जन्म कैसे होगा । मानव जाति लुप्त हो जाएगी । यदि माता पिता व शिक्षक बच्चे को डांटेगा नहीं तो वे बिगड़ जाएंगे । लोभ मोह के कारण ही मां अपने बच्चों को पालती है । तो कुल मिलाकर हम मान कर चलते हैं कि इनसे बचना असंभव है  ।
                पर्भु ने काम को जीव के प्रजनन के लिये उतपन्न किया है, इसके बिना अगली उतपत्ति असंभव है । यही हाल बाकि सभी विकारों के लिये है, पर हमें अनुशासन की सीमा  में रहकर बुराई और पाप की अवस्था से बचना चाहिये।
                 गुरु ग्रन्थ साहिब जी में इस विषय पर क्या कहा है, इस से पहले हम ये जान लेते हैं कि गुरु साहिबानों ने परिवार में रहकर अपना गृहस्थ जीवन को निभाया । उन्होंने अपनी बाणी में अपनी नारी या अपने पुरुष को छोड़ कर पराये के संग, आनन्द, कामना,कु दृष्टि आदि को विकार और बुराई का दर्जा दिया है  । गुरमत अनुसार:-
"निमख काम सुआद कारणि कोटि दिनस दुखु पावहि ।।"
"इस्त्री तजि करि कामि विआपिआ, चितु लाइआ पर नारी ।।"
गुरु की शिक्षा है कि गुरु अंतर्यामी है और मन के अंदर के विचारों को जानता है । अपने काम की भावना को नियंत्रित करने के लिये प्रभु का नाम व ध्यान मात्र से ही संभव हो सकता है .

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