Friday, 17 June 2016

मेरे मीत गुरदेव...

#मेरे_मीत_गुरदेव,
हे मेरे मित्र गुरदेव !
मुझे राम के नाम के साथ रोशन कर दो
गुरु उपदेश द्वारा मिला नाम,
मेरे प्राणों का मित्र है तथा
हरि का जस मेरी रीति है ।१।
हे हरी के भगत !
सच्चे गुरु व सच्चे पुरुष गुरदेव जी !
आपके पास विनती करता हूँ
कि मैं कीड़ा व नाचीज,
सतगुरु कि शरण ली है ।
कृपा कर के मुझे हरि के नाम की रोशनी दो । 1।
हरि के भक्तों के बड़े भाग्य हैं,
जिनको हरि,केवल हरि के ऊपर भरोसा है,
और हरि की ही प्यास है ।
ओह हरि !
जी हाँ हरि का 'नाम' मिलने से सभी तृप्त हो जाते हैं ।
सच्ची संगत में मिलने से अच्छे गुणों का प्रकाश होता है ।2।
जिन्हों ने हरि,
हरि का रस ,नाम नहीं पाया ,
वो अभाग्य यम के पास जाते हैं ।
धिक्कार है, जो सच्चे गुरु की शरण में नहीं आये ।
लानत है, उनकी जिंदगी को तथा उनके जीने को ।3।
जिन हरि के भक्तों को,
सच्चे गुरु की संगत प्राप्त हुई है ।
उनके मस्तिष्क ऊपर
धुर से ही उत्तम लेख लिखे हैं।
सच्ची संगत धन है ,
मुबारक है,
जहां से हरी का 'नाम' प्राप्त हुआ है ।
हे नानक !
हरि के भक्तों को मिल कर
हरि का नाम प्रकाश हुआ है ।4।
रचना: चोथी पातशाही श्री गुरु राम दास जी: राग:गुजरी,बाणी:रहरासि साहिब, अंक:10
*श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी*

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