हे भाई !
किसी मनुष्य की उम्र दुनिया के रंग-तमाशों, दुनिया के सुंदर रूपों और पदार्थों के रसों-स्वादों में बीत रही है;
किसी मनुष्य की उम्र माँ पिता पुत्र आदि परिवार के मोह में गुजर रही है;
किसी मनुष्य की उम्र राज भोगने, भूमि की मालिकी, व्यापार आदि करने में निकल रही है ।
किसी मनुष्य की उम्र वेद आदि धर्म-पुस्तक पढ़ने और (धार्मिक) चर्चा में गुजर रही है;
किसी मनुष्य की जिंदगी जीब के स्वाद में बीत रही है;
किसी मनुष्य की उम्र स्त्री के साथ काम-पूर्ती में निकलती जाती है।
किसी मनुष्य की उम्र जूआ खेलते निकल जाती है;
कोई मनुष्य अफीम आदि नशे का आदी हो जाता है उस की उम्र नशों में ही गुजरती है;
किसी मनुष्य की उम्र पराया धन चुराते बीतती है;
किसी मनुष्य की उम्र योग-साधन करते हुए, किसी की धूणी तपाते, किसी की देव-पूजा करते हुए गुजरती है;
किसी मनुष्य की उम्र रोगों में, ग़मों में, अनेकों भटकन भटकने में बीतती है;
किसी मनुष्य की सारी उम्र प्राणायाम करते हुए निकल जाती है;
हे भाई !
सिर्फ सच्चे सन्त रूपी मनुष्य की उम्र परमात्मा के नाम के सहारे बीतती गुजरती है ।
परमात्मा सदा कायम रहने वाला है। यह सारी सृष्टि उसे की पैदा की हुई है। एक वही हरेक जीव का स्वामी है।1
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