Friday, 3 June 2016

घर, परिवार और बच्चे

अक्सर देखा जाता है कि जानवर और पक्षी   अपने बच्चों का पालन पोषण उसकी आत्म निर्भरता तक ही करते हैं । जब तक बड़े जानवरो तथा धुप छावं बरसात, आंधी से बचाव के लिया टेम्परेरी घर की व्यवस्था ं से सुरक्षा के लिये करते हैं  आवश्यकता अनुसार  बने उस घर में जरूरत मुताबिक़ ही खाना लाते हैं, ताकि अपने तथा अपने बच्चों की तब की भूख प्यास मिटा सकें ।बाद में इन जीवों का अपने बच्चों से कुदरती खत्म हो जाता है, और दोनों अपनी अपनी राह हो लेते हैं ।
परन्तु मनुष्य, प्रेम, स्नेह, डर तथा सुरक्षा के प्रभाव से अपने बच्चों के साथ परिवार के रूप में घर बनाता है और उनके जीवन के पालन पोषण के लिये अधिक से अधिक खाने, पहनने, ओढ़ने के अतिरिक्त स्टोर की व्यवस्था करता है ताकि अगले समय या कह लेते हैं बुरे वक्त में काम आ सके । इस माडर्न समाज में इन स्टोर की हुई व्यवस्था से बच्चों के स्कुल शिक्षा, मनोरंजन, कहीं आने जाने के लिये गाड़ी, उनके भविष्य, उच्च शिक्षा,कैरियर, सुख दुःख में काम आने वाला बैंक बैलेंस, शादी वगैरह आदि, कुल मिलाकर अच्छा ख़ासा इंतजाम करते हैं ।
बस, हमें परिवार दायित्व निभाते हुए  गुरु जी द्वारा  बताई गई इस जानकारी से बचते हैं कि
"गिरही महि सदा हरि जन उदासी गिआन तत बीचारी ।।
अर्थात प्रभु को याद करने वाले मनुष्य गुरबाणी रूपी सच्चे ज्ञान को समझ कर हमेशा परिवार में रहकर भी माया के प्रभाव से बच सकते है ।
पता नहीं क्यों हम यह मानने को तैयार नहीं कि जैसे हमें अपने परिवार के साथ जिनकी याद हमेशा हमारे दिल में है वैसे एक प्रभु भी है जो हमारे अंग संग है, जिसे हमारी चिंता है । वो सदैव

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