*In Your mind,You Do Not Remember, The Lord is One*
*हे_मन!*
हे मुर्ख मन !
तुम एक को नहीं सिमरते ।
हरि को भुलने से तुम्हारे गुण नाश हो जाते हैं ।
*Pause*
मनुष्य का उस संसार-समुन्द्र में निवास है,
जहाँ जल और अग्नि उसी प्रभू ने बनाए है ।
जहाँ मोह का रूप धारण किए
किचड़ में फ़स कर
मेरे पैर आगे नहीं बढ़ पा रहे,
मैं उनको उस के अंदर डूबते हुए देखता हूँ ।
ना मैं जती-सती हूँ
तथा ना ही इस बारे में पढ़ा है,
मुर्ख व अज्ञानता वाला जन्म हुआ है ।
नानक उनकी शरण में रहने का ईच्छुक है, जिन्होंने तुम्हें भुलाया नहीं है ।2।3।
*SGGS* रचना: क्षी गुरु नानक देव जी, राग: आसा, वाणी: *रहरासि_साहिब*
*तित॒_सरवरड़ै......।*
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