Saturday, 25 June 2016

This is your chance to meet the Lord of Universe

*हे_जीव* !
इस समय तुम 
संसार-समुन्द्र को पार करने के प्रबंध
में लग जा ।
माया के स्वाद में
तेरा जीवन व्यर्थ  जा रहा है।
*pause* ।

*हे जीव*!
तुझे मनुष्य देह (शरीर) मिली है । यह अब
तेरी परमात्मा को मिलने की बारी (समय) है । और कार्य  तेरे किसी भी काम के नहीं
सत- संगत में  में मिल बैठ,
तथा प्रभु का 'नाम' सिमर ।1।

मैंने  सिमरन,जप- तप , (सख्त कर्म ) संजम, (स्वयं पर काबू ) तथा धर्म की कमाई  नहीं की सच्चे साधुओं की सेवा नहीं की ।
हरि प्रभु को नहीं जान पाए ।
*हे नानक* !
ऐसे कह लो कि ये मेरे नीच कर्म हैं ।
मैं आप कि शरण में हूँ ,
मेरी लाज रखो ।2।4।

*SGGS* , रचना: पांचवीं पातशाही श्री गुरु अर्जन देव जी, राग आसा, वाणी: *रहरासि साहिब #भई_परापत*.....

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