प्रत्येक जीव की मूलभूत आवश्यकताऍ होती है। मनुष्य की भी कुछ प्राथमिक जरूरतें हैं, जैसे भोजन, पानी, आराम, नींद आदि । दूसरी जरूरते सुरक्षा के लिये हैं, जैसे डर, भय, स्नेह, प्रेम आदि। इन की पूर्ति के बाद व्यक्ति को मान सम्मान, पहचान, पदवी की चिंता होती है ।
फिर शुरू होती हैं, समस्याएं । जो एक दूसरे से क्लेश, निंदा, चुगली, झूठ, अपराध, नफरत की भावना बड़ने से उतपन्न होती हैं । वास्तव में सभी अपना मान सम्मान चाहते हैं, जो बुरी बात नहीं।
हमें भी अपने गुरुओं, धर्म, गुरु की बाणी, गुरु के जीवन, सिखों के इतिहास, देश पर बहुत मान है । इसलिये यह गल्त कैसे हो सकता है। परन्तु जब मान, अभिमान की सूरत अख्तियार कर लें, तो सोचने वाली बात है ।
मैं, मेरा सुंदर शरीर, मेरा बड़ा घर, मेरी प्रॉपर्टी, मेरी लम्बी कार, मेरी ऊँचे दर्जे की पढाई आदि जो दूसरे के पास न दिखे तो स्वबाविक अभिमान जागता है ।अधिक बलवान, अधिक धनवान, अधिक विद्धवान, रूपवान होना अक्सर अभिमान यानि अहंकार को जन्म दे देता है ।
हमारी प्राथमिक जरूरतें, जैसे रोटी, कपड़ा और मकान, जरूरतें ना रहकर दिखाने का सामान बन जाएं तो रूतबा, हैसियत के नाम याद आने लगते हैं । जो हमें परमात्मा से दूर ले जाते हैं । इसीलिये हमारे गुरु जी द्वारा दर्शाए गए पांच अवगुण यानि विकारों में एक नाम अहंकार है जिसे हम घमण्ड भी कहते हैं ।
कबीर गरबु न कीजिए, ऊचा देखि अवास ।।
आजु कल्हि भूइ लेटणा, ऊपरि जामै घासु ।।
बडे बडे अहंकारीआ नानक गरबि गले ।
मनुष्य का सारा जीवन अभिमान व अहंकार के कारण दिखावा, झूठ,झगड़े आदि में बीत जाता है । गुरमत अनुसार हमें संसार में मन निवां मत उची की प्रेणना और प्रेम के साथ रहने का का सन्देश मिला है ।
मानु अभिमानु मोह तजि नानक संतह संगि उधारी ।।
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