तूँ सच्चा सर्जनहार मेरा मालिक है ।
वही होता है, जो तुझे अच्छा लगता है ।
मैं वही प्राप्त करता हूँ जो तूँ देता है ।1।
सारी रचना तेरी है,
सब ने तेरा सिमरन किया है ।
जिन पर तू कर्पा करता है ,
उन्हें 'नाम रत्न' प्राप्त होता है ।
गुरमुखों ने तुझे प्राप्त कर लिया है ।
मनमुखों ने तुझे खो दिया है ।
तूँ आप ही किसी को अपने से दूर करता है । आप ही अपने से मिला लेता है ।1।
तूँ दरिया जैसे विशाल है,
सभी तेरे में ही हैं ।
तेरे बगैर कोई दूसरा नहीं है ।
जीव-जंतु सब तेरे ही खेल हैं ।
जिन के भाग्य में दूरी है ,
वो मिल के भी बिछड़ जाते हैं ।
जिनके कर्मों में मिलना है,
उनका तेरे साथ मिलना होता है ।2।
जिसको तूँ अपनी हकीकत बताता है,
सिर्फ वही मनुष्य जानता है ।
वह सदा ही प्रभु के गुण वर्णन करता है ।
जिस ने हरि का सिमरन किया है,
उसको सुख मिला है ।
वह सहज ही हरि नाम में समां जाता है ।3।
तूँ आप ही रचना कर्ता है,
तेरे करने से ही सब कुछ होता है ।
तेरे बिना और कोई दूसरा नहीं है ।
तूँ रचना रच-रच कर देखता व,
उसकी जानकारी रखता है ।
हे दास नानक ! उस प्रभु का भेद,
गुरु द्वारा ही प्रकट होता है ।4।2।
SGGS रचना: चोथी पातशाही श्री गुरु राम दास जी, राग: आसा. बाणी: रहरासि साहिब (तूँ करता...)
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