Monday, 10 December 2012

सो दर केहा, सो घरु केहा,,,(२७) जपु जी साहिब |

सो दर केहा, सो घरु केहा, जितु बहि सरब समाले ||
वाजे नाद अनेक असंखा, केते वावणहारे ||
केते राग परी सिउ कहिअनि, केते गावणहारे ||

हे निरंकार ! वह दर-घर बड़ा ही आश्चर्युक्त है जहाँ बैठ कर तू सारे जीवों को संभाल रहा है | तेरी इस रची हुई कुदरत में अनेक तथा अनगणित बाजे तथा राग हैं, अनन्त ही जीव उन बाजों को बजाने वाले हैं, रागनियों सहित अनन्त ही राग कहे जाते हैं तथा अनेक ही जीव इन रागों को गाने वाले है जो तुझे गा रहे हैं |

गावहि तुह्नो, पउणु पाणी बैसंतरु, गावै राजा धरमु दुआरे ||
गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि, लिखि लिखि धरमु वीचारे |


हे निरंकार ! पवन, पाणी, अग्नि तेरे गुण गा रहे हैं | धर्मराज तेरे दर -घर खड़ा होकर तेरी बडाई कर रहा है | वह चित्र गुप्त भी, जो जीवों के अच्छे बुरे कर्मों के लेखे लिखना जानते हैं तथा जिन के लिखे हुये को धर्मराज विचार करता है, तेरे गुण गा रहे हैं |


गावहि इसरू बरमा देवी, सोहनि सदा सवारे ||
गावहि इंद् इदासणि बैठे, देवतिआ दरि नाले ||



‎...हे परमात्मा ! देवियाँ, शिव तथा ब्रह्मा जो तेरे सँवारे हुये हैं, तुझे गा रहे हैं | कई इंद्र अपने तख़्त पर बैठे हुये देवताओं सहित तेरे दर पर तुझे सराह रहे हैं |...


गावहि सिध समाधी अंदरि, गावहि साध विचारे ||
गावानि जति सती संतोखी, गावहि वीर करारे ||

सिद्द लोग समाधियां लगा लगा कर तुझे गा रहे हैं, साधु विचार कर कर तुझे सराह रहे हैं | जती, दानी तथा संतोष युक्त मनुष्य तेरे गुण गा रगे हैं तथा अनन्त बलशाली शूरवीर तेरा गुणगान कर रहे हैं |



गावनि पंडित पढनि रखीसर, जुगु जुगु वेदा नाले ||
गावहि मोहणीआ मनु मोहनि, सुरगा मछ पइआले ||


हे परमात्मा ! पंडित तथा महा ऋषि, जो वेदों को पढते हैं, वेदों सहित तुम्हें गा रहे हैं | सुंदर स्त्रियाँ जो स्वर्ग, मात् लोक तथा पाताल में अर्थात प्रत्येक स्थान पर मनुष्य का मन मोह लेती हैं, तुम्हें गा रही हैं |

गावनि रतन उपाए तेरे, अठसठि तीरथ नाले ||
गावहि जोध महा बल सूरा, गावहि खाणी चारे ||
गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ||



हे परमात्मा ! तेरे पैदा किये हुये रत्न, अड़सठ (६८) तीर्थों सहित तुम्हें गा रहे हैं | महाबली योधा तथा शूरवीर तेरी सराहना कर रहे हैं |चारों ही खानों के जीव-जंतु तुझे गा रहे हैं | सारी सृष्टि, सृष्टि के सारे खंड तथा चक्र, जो तुम ने पैदा कर के टिकाये हुये हैं. तुझे गाते हैं |


सेई तुधनो गावहि, जो तुधु भावनि, रते तेरे भगत रसाले ||
होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि, नानक किआ वीचारे ||

हे परमात्मा ! असल में तो वही तेरे प्रेम में रत रसिक भक्त जन तुझे गाते हैं भाव, उनका गाना भी सफल है जो तुझे अच्छे लगते हैं | अनेक अन्य जीब तुझे गा रहे हैं, जो मुझ से गिने भी नहीं जा सकते | भला नानक बेचारा क्या विचार कर सकता है ?

सोई सोई सदा सचु, साहिबु साचा, साची नाई ||
है भी होसी, जाइ न जासी, रचना जिनि रचाई ||

जिस परमात्मा ने यह सृष्टि पैदा की है वह इस समय मौजूद है, सदा रहेगा, न वह पैदा हुआ है तथा न वह न ही मरेगा | वह परमात्मा सदा अटल है, वह स्वामी सच्चा है, उस का बडप्पन भी सदा अटल है |


रंगी रंगी भाती करि करि, जिनसी माइ़आ जिनि उपाई ||
करि करि वेखै कीता आपणा, जिव तिस दी वडिआई ||
जिस परमात्मा ने कई रंगो, किस्मों तथा जिन्सों कि माया रची है, वह जैसे उसकी रज़ा है भाव, जितना बड़ा आप है उतने बड़े दिल से जगत को रच कर अपने पैदा किये हुये की संभाल भी कर रहा है |
जो तिसु भावै सोई करसी, हुकमु न करणा जाई ||
सो पातसाहु, साहा पातसाहिबु, नानक रहणु रजाई ||२७||
जो कुछ परमात्मा को अच्छा लगता है, वही करेगा, किसी जीव द्वारा परमात्मा के आगे हुक्म नहीं किया जा सकता (उसको यह नहीं कह सकते --'ऐसा न कर, ऐसा कर') परमात्मा बादशाह है, बादशाहों का भी बादशाह है | हे नानक ! जीवों को उस की रज़ा में रहना ही जंचता है |२७|

भाव :- कई रंगों की, कई किस्मों की, कई पदार्थों की, अनन्त रचना परमात्मा ने रची है | इस असीम सृष्टि की संभाल भी स्वयं ही कर रहा है, क्योंकि वह स्वयं ही एक जैसा है जो सदा स्थिर रहने वाला है | जगत में ऐसा कौन है जो यह कह सके कि कैसे स्थान पर बैठ कर वह सर्जनहार इस अनन्त रचना कि संभाल करता है ? किसी मनुष्य की ऐसी सामर्थ्य ही नहीं | मनुष्य को तो केवल एक ही बात जचती है कि प्रभु कि रज़ा में ही रहे | यही है साधन प्रभु से दूरी मिटाने का तथा यही है इसके जीवन का मनोरथ | देखें ! हवा, पानी आदि तत्वों से लेकर उच्च जीवन वाले महापुरुष तक सब अपने अपने अस्तित्व के मनोरथ को सफल कर रहे हैं भाव, उस के हुक्म अनुसार कार्य कर रहे हैं |

[गुरू नानक कि वाणी जपु जी साहिब कि सताइसवीं पौड़ी के भावार्थ ]

गुरू नानक, जपु जी साहिब |२७|Cont...

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