Wednesday, 26 December 2012

आखणि जोरू, चुपै नह जोरू...(३३) जपु जी साहिब |

आखणि जोरू, चुपै नह जोरू || जोरू न मंगणि, देणि न जोरू ||
जोरू न जीवणि, मरणि नह जोरू ||जोरू न राजि मालि मनि सोरू ||

बोलने में तथा चुप रहने में भी हमारा कोई अपना वश नहीं है | न ही मांगने में हमारी कोई मर्जी चलती है तथा न ही देने में | जीवन में तथा म्रत्यु में भी हमारी कोई सामर्थ्य काम नहीं आती | इस राज्य तथा माल (एश्वर्य आदि का सामान के प्राप्त करने में भी हमारा कोई जोर नहीं चलता जिस राज्य एश्वर्य के कारण हमारे मन में अहंकार का शोर होता है | 

जोरू न सुरती गिआनि वीचारि || जोरू न जुगती छुटै संसारू ||
जिसु हथि जोरू, करि वेखै सोइ || नानक, उतमु नीचु न कोइ ||३३||

आत्मक जाग्रति में, ज्ञान में तथा विचार में रहने की भी  हमारी सामर्थ्य नहीं है | उस युक्ति में रहने के लिये भी हमारा वश नहीं है, जिस कारण जन्म-मरण समाप्त हो जाता है | वही परमात्मा रचना रच कर उस कि हर तरह से संभाल करता है, जिस के हाथ में सामर्थ्य है |
हे नानक ! अपने आप में न कोई मनुष्य उत्तम है तथा न ही कोई नीच | भाव, म्नुशु को सदाचारी या दुराचारी बनाने वाला प्रभु आप ही है, यदि सिमरन कि बरकत से यह निश्चय बन जाये तो ही परमात्मा से जीव कि दूरी मिटती है |३३|

भाव:- सुमार्ग पर चलना या कुमार्ग पर चलना, जीवों के अपने वश कि बात नहीं | जिस प्रभु ने पैदा किये हैं, वही इन पुतलियों को खेल खिला रहा है | अत: यदि कोई जीव प्रभु का गुण-कीर्तन कर रहा है तो यह प्रभु कि अपनी कर्पा है; यदि कोई इस तरफ से हटा हुआ है तो भी यह स्वामी कि रज़ा है | यदि हम उसके दर से  देह पदार्थ मानते हैं तो यह प्रेरणा भी वह स्वयं ही करने वाला है, तथा फिर दढ पदार्थ देता भी आप ही है  | यदि कोई जीव राज्य तथा धन के नशे में मस्त पड़ा है, यह भी रज़ा प्रभु कि है | यदि किसी की चित्त्व्रती प्रभु के चरणों में है तथा जीवन-युक्ति निर्मल है, तो यह कर्पा भी प्रभु  की ही है |


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