सुणिऐ, सरा गुणा के गाह || सुणिऐ, सेख पीर पातसाह ||
सुणिऐ, अंधे पावहि राहु|| सुणिऐ, हाथ होवै असगाहु||
नानक, भगता सदा वीगासु|| सुणिऐ, दूख पाप का नासु ||११ ||
हे नानक ! परमात्मा के नाम में ध्यान जोड़ने वाले भक्त जनों के हृदय में सदा प्रफुल्लता बनी रहती है, क्योंकि
परमात्मा कागुण-कीर्तन सुन ने से मनुष्य के दुखों तथा पापों का नाश हो जाता है।
परमात्मा के नाम में ध्यान जोड़ने से साधारण मनुष्य अनन्त गुणों की सूझ वाले हो जाते हैं, शेख, पीर तथा
पातशाहों की पदवी प्राप्त कर लेते हैं/ यह नाम सुनने की ही बरकत है कि अन्धे ज्ञान हीन मनुष्य भी परमात्मा
के मिलन का रास्ता खोज लेते हैं/ अकाल पुरख परमात्मा के नाम से जुड़ने के परिणाम स्वरूप इस गहरे
संसार-समुन्द्र की असलियत समझ में आ जाती है /११/
जैसे-जैसे ध्यान नाम में जुडता है, मनुष्य दैवी गुणों के समुन्द्र में डुबकी लगाता है/ संसार अथाह समुन्द्र है,
जहाँ परमात्मा से बिछुड़ा हुआ जीव अन्धों की तरह हाथ पैर मारता है/ परन्तु नाम में जुड़ने से जीव जीवन का
सहि मार्ग खोजता है /११/
सुणिऐ, अंधे पावहि राहु|| सुणिऐ, हाथ होवै असगाहु||
नानक, भगता सदा वीगासु|| सुणिऐ, दूख पाप का नासु ||११ ||
हे नानक ! परमात्मा के नाम में ध्यान जोड़ने वाले भक्त जनों के हृदय में सदा प्रफुल्लता बनी रहती है, क्योंकि
परमात्मा कागुण-कीर्तन सुन ने से मनुष्य के दुखों तथा पापों का नाश हो जाता है।
परमात्मा के नाम में ध्यान जोड़ने से साधारण मनुष्य अनन्त गुणों की सूझ वाले हो जाते हैं, शेख, पीर तथा
पातशाहों की पदवी प्राप्त कर लेते हैं/ यह नाम सुनने की ही बरकत है कि अन्धे ज्ञान हीन मनुष्य भी परमात्मा
के मिलन का रास्ता खोज लेते हैं/ अकाल पुरख परमात्मा के नाम से जुड़ने के परिणाम स्वरूप इस गहरे
संसार-समुन्द्र की असलियत समझ में आ जाती है /११/
जैसे-जैसे ध्यान नाम में जुडता है, मनुष्य दैवी गुणों के समुन्द्र में डुबकी लगाता है/ संसार अथाह समुन्द्र है,
जहाँ परमात्मा से बिछुड़ा हुआ जीव अन्धों की तरह हाथ पैर मारता है/ परन्तु नाम में जुड़ने से जीव जीवन का
सहि मार्ग खोजता है /११/
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