गावै को ताणु हौवै किसै ताणु ।।
गावै को दाति जाणै नीसाणु ।।
गावै को दाति जाणै नीसाणु ।।
जिस किसी मनुष्य में सामर्थ्य होती है वह परमात्मा के बल का गायन करता है (भाव, उसका गुण-कीर्तन करता है, उसके उन कार्यों का कथन करता है जिनसे उसकी अपार शक्ति प्रकट हो) । कोई मनुष्य उसके द्वारा दिये गये पदार्थों का ही गुण-गान करता है (क्योंकि इन देय-पदार्थों को वह परमात्मा की कृपा का) निशान समझता है।
गावै को, जापै दिसै दूरि।।
गावै को, वेखै हादरा हदूरि।।
कोई मनुश्य कहता है.'अकाल पुरख (प्रभु) दूर प्रतीत होता है, दूर दिखता है',
पर कोई कहता है, '(कि नहीं पास है) सब स्थानों पर उपस्थित है, (सब को) देख रहा है।'
गावै को, वेखै हादरा हदूरि।।
कोई मनुश्य कहता है.'अकाल पुरख (प्रभु) दूर प्रतीत होता है, दूर दिखता है',
पर कोई कहता है, '(कि नहीं पास है) सब स्थानों पर उपस्थित है, (सब को) देख रहा है।'
कथना कथी न आवै तोटि।।
कथि कथि कथी, कोटी कोटि कोटि।।
करोड़ों ही जीवों ने अन्नत बार (अकाल पुरख के हुक्म का) वर्णन किया है, पर हुक्म करने में कमी नहीं आ सकी (भाव, वर्णन कर कर के हुक्म का अन्त नहीं हो सका, हुक्म का सही स्वरुप नहीं खोज़ा जा सका).
कथि कथि कथी, कोटी कोटि कोटि।।
करोड़ों ही जीवों ने अन्नत बार (अकाल पुरख के हुक्म का) वर्णन किया है, पर हुक्म करने में कमी नहीं आ सकी (भाव, वर्णन कर कर के हुक्म का अन्त नहीं हो सका, हुक्म का सही स्वरुप नहीं खोज़ा जा सका).
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